जन्म कुंडली में 2 या इससे अधिक ग्रहों के मेल से योग का निर्माण होता है।By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबजन्मकुंडली में शुभ और अशुभ दोनों तरह के योग होते हैं। यदि शुभ योगों की संख्या अधिक है तो साधारण परिस्थितियों में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी धनी, सुखी और पराक्रमी बनता है, लेकिन यदि अशुभ योग अधिक प्रबल हैं तो व्यक्ति लाख प्रयासों के बाद भी हमेशा संकटग्रस्त ही रहता है।जन्मकुंडली में शुभ और अशुभ दोनों योग के माध्यम से व्यक्ति के भाग्य का विश्लेषण किया जा सकता है। कुंडली में ग्रहों की युति या उनकी स्थितियों से योगों का निर्माण होता है। ये योग शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के होते हैं। जो योग शुभ होते हैं उनसे जातकों को अच्छे फल प्राप्त होते है। इन्हें राज योग कहते हैं। वहीं इसके विपरीत जो योग अशुभ होते हैं, उनके कारण व्यक्ति के जीवन में कई परेशानियां आती है।कुंडली के कुछ योग के बारे में मैं पहले भी बता चुकी हूं।ग्रहण योग :कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र के साथ राहु या केतु बैठे हों तो ग्रहण योग बनता है। यदि इस ग्रह स्थिति में सूर्य भी जुड़ जाए तो व्यक्ति की मानसिक स्थिति अत्यंत खराब रहती है। यानि उसका मस्तिष्क स्थिर नहीं रहता। उसके द्वारा किए गए कार्य में बार-बार बदलाव होता है। उस जातक को बार-बार नौकरी और शहर भी बदलना पड़ता है। कई बार देखा गया है । कुछ जातकों को दोरे भी पड़ते हैंउपाय : ग्रहण योग का प्रभाव कम करने के लिए सूर्य और चंद्र की आराधना लाभ देती है। आदित्यहृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करें। सूर्य को जल चढ़ाएं। शुक्ल पक्ष के चंद्रमा के नियमित दर्शन करें।धन भाव नाश योग :जन्मकुंडली में जब किसी भाव का स्वामी त्रिक स्थान यानी छठे, आठवें और 12वें भाव में बैठा हो तो उस भाव के सारे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। उदाहरण के लिए यदि धन स्थान की राशि कन्या और इसका स्वामी बुध छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो धन स्थान के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।उपाय : जिस ग्रह को लेकर भावनाशक योग बन रहा है, उससे संबंधित वार को गणपति की पूजा करें। इसके अलावा किसी जानकार की सलाह पर ही उस ग्रह से संबधित पूजा अनुष्ठान करके भाव का प्रभाव बढ़ाया जा सकता है।कर्ज योगजन्म कुंडली के आधार पर कर्ज के निम्न योग बनते हैंजन्म कुंडली के छठे व दूसरे स्थान के स्वामी ग्रह जब भी आपस संबंध बनाते हैं तो व्यक्ति के कर्ज लेने के योग बनते हैं।इसके अलावा किसी जानकार की सलाह पर ही उस ग्रह से संबधित पूजा अनुष्ठान करके भाव का प्रभाव बढ़ाया जा सकता है।कर्म और भाग्य को जोड़कर ही जीवन बनता है जीवन के लिए कर्म आवश्यक है बिना कर्म जीवन निरर्थक है।
जन्म कुंडली में 2 या इससे अधिक ग्रहों के मेल से योग का निर्माण होता है।
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब
जन्मकुंडली में शुभ और अशुभ दोनों तरह के योग होते हैं।
यदि शुभ योगों की संख्या अधिक है तो साधारण
परिस्थितियों में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी धनी, सुखी और पराक्रमी बनता है, लेकिन यदि अशुभ योग अधिक प्रबल हैं तो व्यक्ति लाख प्रयासों के बाद भी हमेशा संकटग्रस्त ही रहता है।
जन्मकुंडली में शुभ और अशुभ दोनों योग के माध्यम से व्यक्ति के भाग्य का विश्लेषण किया जा सकता है।
कुंडली में ग्रहों की युति या उनकी स्थितियों से योगों का निर्माण होता है। ये योग शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के होते हैं।
जो योग शुभ होते हैं उनसे जातकों को अच्छे फल प्राप्त होते है। इन्हें राज योग कहते हैं। वहीं इसके विपरीत जो योग अशुभ होते हैं, उनके कारण व्यक्ति के जीवन में कई परेशानियां आती है।
कुंडली के कुछ योग के बारे में मैं पहले भी बता चुकी हूं।
ग्रहण योग :
कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र के साथ राहु या केतु बैठे हों तो ग्रहण योग बनता है।
यदि इस ग्रह स्थिति में सूर्य भी जुड़ जाए तो व्यक्ति की मानसिक स्थिति अत्यंत खराब रहती है।
यानि उसका मस्तिष्क स्थिर नहीं रहता। उसके द्वारा किए गए कार्य में बार-बार बदलाव होता है।
उस जातक को बार-बार नौकरी और शहर भी बदलना पड़ता है। कई बार देखा गया है । कुछ जातकों को दोरे भी पड़ते हैं
उपाय : ग्रहण योग का प्रभाव कम करने के लिए सूर्य और चंद्र की आराधना लाभ देती है।
आदित्यहृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करें। सूर्य को जल चढ़ाएं। शुक्ल पक्ष के चंद्रमा के नियमित दर्शन करें।
धन भाव नाश योग :
जन्मकुंडली में जब किसी भाव का स्वामी त्रिक स्थान यानी छठे, आठवें और 12वें भाव में बैठा हो तो उस भाव के सारे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं।
उदाहरण के लिए यदि धन स्थान की राशि कन्या और इसका स्वामी बुध छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो धन स्थान के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।
उपाय : जिस ग्रह को लेकर भावनाशक योग बन रहा है, उससे संबंधित वार को गणपति की पूजा करें। इसके अलावा किसी जानकार की सलाह पर ही उस ग्रह से संबधित पूजा अनुष्ठान करके भाव का प्रभाव बढ़ाया जा सकता है।
कर्ज योग
जन्म कुंडली के आधार पर कर्ज के निम्न योग बनते हैं
जन्म कुंडली के छठे व दूसरे स्थान के स्वामी ग्रह जब भी आपस संबंध बनाते हैं तो व्यक्ति के कर्ज लेने के योग बनते हैं।
इसके अलावा किसी जानकार की सलाह पर ही उस ग्रह से संबधित पूजा अनुष्ठान करके भाव का प्रभाव बढ़ाया जा सकता है।
कर्म और भाग्य को जोड़कर ही जीवन बनता है जीवन के लिए कर्म आवश्यक है बिना कर्म जीवन निरर्थक है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें