वर कन्या चयन शुभ-अशुभ योग के By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब01. वर के सप्तमेश की राशि में कन्या की राशि हो तो शुभफल प्रद । -02. कन्या की राशि वर के सप्तमेश का उच्च स्थान हो ।03. वर के सप्तमेश के नीच राशि में कन्या की राशि हो ।04. वर का शुक्र जिस राशि में हो। वही राशि कन्या की हो ।05. वर का लग्नेश जिस राशि में हो वही राशि कन्या की हो ।06. वर की जन्म राशि से सप्तम स्थान में जो राशि पड़े वही राशि कन्या की हो । 07. इन योगों में दाम्पत्य जीवन सुखमय व्यतीत होता है। सप्तमेश 6, 8, 12 भाव में होऔर शुभ ग्रह से दृष्टि नहीं हो। सप्तमेश नीच का हो। सप्तमेश अस्तंगत हो इन 3 योगों में स्त्री सुख में बाधा होती है ।०८. यदि सप्तमेश द्वादश भाव में हो और लग्नेश व जन्म राशीश सप्तम भाव में हो तब या तो अविवाहित जीवन बने अथवा दाम्पत्य जीवन दुखमय हो ।09. चन्द्र और शुक्र पर शनि मंगल की दृष्टि भी विवाह सम्बन्ध में बाधक होती है ।10. 1,7,12 भाव में पाप ग्रह हो चन्द्रमा 5वें निर्वली हो तो अविवाहित जीवन ।11. श+चं सप्तम में होने से स्त्री बन्ध्या होती है। 12. बु+शु सप्तम में स्त्री सुख में बाधा ।13. शु+मं ७वें या त्रिकोण में शु+ मं नवम में शु मं पञ्चम में होने से दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं होता। + से14. पापयुक्त शुक्र 5,7,9 वे भाव होने पर भी स्त्री का वियोग रहता है ।15. लग्न सप्तम और चन्द्र तीनों लग्न द्विस्वभाव राशि में अथवा लग्नेश सप्तमेश, जन्मराशीश तीनों द्विस्वभाव राशि में हो अथवा शुक्र द्विस्वभाव राशि में (3,6, 9, 12) हो तो 2 विवाह होते हैं।16. सप्तमेश शुभ ग्रह सहित 6, 8, 12 वें भाव में और सप्तम में पापग्रह के होने से 2 विवाह होते हैं।17. यदि शुक्र पापग्रह के साथ हो । शुक्र नीच राशि का हो । शुक्र नीच नवांश का हो ।18. शुक्र अस्त हो पापाक्रान्त हो तो 2 विवाह होते हैं।19. सप्तमेश की दृष्टि रहित मंगल 7, 8, 12वें भाव में होने से 2 विवाह होते हैं। यदि 1,2,7 भाव में कोई एक पापग्रह स्थिति हो और सप्तमेश नीच राशिगत हो तो अथवा अस्त हो तो 3 विवाह होते हैं। 20. सप्तमेश एकादशेश का दृष्टि सम्बंध हो और बली त्रिशांश में हो तो अधिक स्त्रियाँ होती हैं।21. चं+श सप्तम में बहुपत्नी योग बनाते हैं ।22. गुरु अपने उच्च नवमांश का हो तो बहुपत्नी योग बनाता है। 23. 1,7 भाव के स्वामी और जन्म राशि के स्वामी तथा शुक्र उच्च राशि के होने पर बहुदारा योग बनाता है।24. बलवान् बुध लग्नेश से दशमस्थ हो और चन्द्रमा लग्न से तीसरे या सातवें हो तो जातक स्त्री समूह से घिरा हुआ रहता है। 25. सप्तमेश दशम में दशमेश सप्तम में द्वितीयेश 7वें या 10वें हो तो अनेक स्त्रियों का योग बनता है।26. लग्नेश दशम में बली बुध के साथ सप्तमेश चन्द्र के साथ तृतीय भाव में होने से स्त्रियों का शिकार बनकर जीवनयापन करता है ।27. सप्तम स्थान का शुक्र द्विस्वभाव राशि में स्थित होकर पापग्रह से द्रष्ट हो तो एक सेअधिक विवाह होते हैं, शुक्र सप्तम में स्वराशि का भी हो तो यह कल घटित होगा। 28. सप्तम स्थान में कोई क्लीव (नपुंसक) ग्रह हो और एकादश में 2 ग्रह स्थित हो तो स्त्री के जीवित रहने पर ही दूसरी स्त्री होती है।स्त्री के गुणदोषादि का विचार 01. शुक्र चर राशि में हो, गुरु सप्तमस्थ हो लग्नेश बली हो तो स्त्री पतिव्रता होती है ।02. सप्तमेश या शुक्र गुरु से युत या द्रष्ट होने पर शुभ लक्षण स्त्री |03. गुरु सप्तमस्थ हो या सप्तमेश हो उस पर बुध शुक्र की दृष्टि से स्त्री सुलक्षणा । 04. सप्तमेश केन्द्रस्थ शुभग्रह के साथ हो अथवा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो स्त्री सुलक्षणा तथा स्वयं धनी व अधिकारी होती है ।05. गुरु से द्रष्ट सप्तम भाव होने पर भी स्त्री दयालु सुन्दरी व चरित्रवान् होती है ।06. सप्तमेश शनि सप्तमस्थ हो तो स्त्री झगड़ालू होते हुए भी सुलक्षणा होती है। 07. लग्नाधिपति सप्तम में सप्तमेश पंचम में होने से पति स्त्री का आज्ञाकारी होता है।08. लग्न में राहु व केतु रहने से स्त्री पति के वशीभूत होती है । 09. यदि शुक्र उच्च हो या शुभ नवमांश में हो अथवा सप्तमेश ग्रह से युक्त द्रष्ट हो अथवा सप्तमेश शुभग्रह के साथ हो तो स्त्री अच्छी मिलती है।10. सप्तमेश सूर्य शुभ ग्रहयुक्त दृष्ट हो अथवा शुभराशि गत हो या शुभ नवमांश में हो तो स्त्री आज्ञाकारी होती है।11. सप्तमस्थ चन्द्र पापयुत दृष्ट या पाप राशिगत या पाप नवमांश में हो तो कुटिल स्वभाव की स्त्री होती है। यदि चन्द्रशुभ ग्रहयुत दृष्ट या शुभ नवमांश में हो तो श्रेष्ठ स्वभाव वाली चंचल स्त्री होती है।12. सप्तमस्थ मंगल उच्चस्थ व शुभयुत दृष्ट हो तो स्त्री निर्दयी परन्तु आज्ञाकारी। 13. सप्तमेश बुध नीचस्थ, पापयुत द्रष्ट, अष्टम द्वादश भावगत, अस्तगंत, पापक्रान्त आदि हो तो स्त्री पति की जानलेवा होती है।14. शुक्र सप्तमेश पापयुक्तदृश्य नीचस्थ अस्तंगत, शत्रु राशिगत आदि हो तो स्त्री (व्यभिचारिणी) होती है।15. ससमेश शनि भी शुक्र जैसी स्थिति में हो तो स्त्री कुल्टा होती है । 16. राहु केतु सप्तमस्थ होने से उस पर पाप ग्रह की दृष्टि भी हो तो स्त्री पति को विषपान कराने वाली होती है ।17. सप्तमेश 6, 8, 12 भाव में शुक्र निर्बली से उसकी स्त्री अच्छी नहीं होती ।विवाह समय01. सप्तमेश जिस राशि व नवमांश में हो, दोनों में जो बलवान् हो उसके दशाकाल मेंजब गोचर में गुरु सप्तमेश स्थित राशि से त्रिकोण में आने पर विवाह होता है।02. चन्द्र और शुक्र में जो बली हो उसकी महादशा या अन्तर्दशा काल में बली ग्रह से त्रिकोण में गुरु आने पर विवाह होता है ।03. यदि सप्तेश शुक्र के साथ बैठा हो तो सप्तमेश की दशा व अन्तर्दशा में विवाह होता है। इसी प्रकार द्वितीयेश जिस राशि में बैठा हो उस राशि के स्वामी की दशा अन्तदर्शा में अथवा नवमेश दशमेश की दशादि में अथवा सप्तमस्थ ग्रह के दशादि अथवा सप्तमेश के साथ जो ग्रह बैठा हो उसकी दशा अन्तर्दशा में विवाह होता है ।04. जब लग्नेश गोचर में ससमस्थ राशि में अथवा सप्तमेश व शुक्र लग्नेश की राशि या नवमांश में आनेपर अथवा सप्तमस्थ ग्रह की दशादि में अथवा सप्तम को देखने से ग्रह की दशा अन्तर्दशा में विवाह होता है।05. शुक्र चन्द्रमा और लग्न से सप्तमाधि पति की दशादि में विवाह होता है। 06. विवाह कारक ग्रह शुभ ग्रह शुभ राशिगत से दशा व अन्तर्दशा में आदि में यदि वह ग्रह शुभ तो हो किन्तु पापराशि में स्थित हो, दशादि के मध्यम में यदि वह ग्रह पापी हो और पापग्रह की राशि में होतो दशादि के अन्तिम समय में विवाह काल समझना चाहिये।07. यदि लग्नेश व सप्तमेश समीपवर्ती हों तो विवाह कम अवस्था में, यदि दूरी अधिक हो तो विलम्ब से विवाह होता है।08. 1,2,7 वे भाव में शुभग्रह स्थित हो या शुभग्रह की दृष्टि हो तो कम अवस्था में विवाह योग बन जाता है।09. सप्तमेश बलवान् होकर केन्द्रस्थ हो या त्रिकोण में हो तो बाल्य काल में विवाह होता है ।10. 1,2,7 वे भाव शुक्र के पापयुत द्रष्ट होने से विवाह विलम्ब से होता है। के11. शुक्र से सप्तमेश की दिशा में अथवा सप्तमस्थ ग्रह की दिशा में अथवा सप्तम कोदेखने वाली की दिशा में विवाह होता है। शीघ्र वैधव्य योगद्वितीय भाव और द्वितीयेश, बुध तथा गुरु पर मंश, के, श. का प्रभाव होने पर शीघ्र ही वैधव्य योग प्राप्त हो जाता है। स्त्री की कुण्डली वृषलग्न की है दूसरे भाव में शुक्र 12 वें में राहु तीसरे में सूर्य 4थे में बुध, गुरु, षष्ठ में केतु मंगल, सप्तम में चन्द्र और नवम में शनि स्थित है। यहाँ द्वितीय भावेश बुध और सप्तम भाव के कारक गुरु पर राहु की पंचम दृष्टि पड़ रही है तथा द्वितीय भाव पर केतु की नवम दृष्टि पड़ रही है अत- द्वितीय भाव तथा भावेश बुध एवं सप्तम का कारक गुरु तीनों पर पापदृष्टि होने से वैधव्य योग बन रहा है, किन्तु शीघ्र वैधव्य योग को बुध प्रदर्शित कर रहा है। क्योंकि बुध की कुमार अवस्था होती है तो जो जीवन के बाल्यकाल में ही प्रभावित होता है। अतः विवाह के अतिशीघ्र वैधव्य की प्राप्ति करवाता है सुन्दर पति, पत्नि प्राप्ति योगयदि सप्तम भाव में समराशि हो तथा सप्तमेश और शुक्र भी समराशि में होने पर और अष्टम अष्टमेश शनि की दृष्टि में नहीं होने पर सुन्दर स्त्री की प्राप्ति होती है स्त्री की कुण्डली में सप्तम भाव और भावेश पुरुष राशि में होकर गुरु आदि शुभ पुरुष राशि ग्रह से दृष्ट होने पर सुन्दर पति की प्राप्ति होती है। पति त्याग योगसप्तम भाव और भावेश एवं स्त्री भाव कारक ग्रह पर जब सूर्य मंगल राहु क्षीणचन्द्र, इन पापी ग्रहों की युति दृष्टि हो या ये पापीग्रह जिन राशियों में स्थित हों उनके स्वामियों की दृष्टि युति हो, तो पुरुष का उसकी स्त्री से वियोग होता है।बाल वनिता महिला आश्रमकन्या लग्न की कुण्डली में, सूर्य, बुध, गुरु, शुक्र पंचम में, शनि की राशि में है। चन्द्र चतुर्थ भाव में, राहु षष्ठ में, शनि नवम में, मंगल दशम में तथा केतु व्यय में है। यहाँ सप्तमेश शुक्र सप्तम का कारक गुरु सूर्य, जो पृथकता जनक है उसके साथ स्थित है। व्ययेश सूर्य शत्रु क्षेत्र जो भी पृथकता जनक है पंचम भाव पापाक्रान्त राहु और क्षीण चन्द्र से है तथा दशमस्थ मंगल पापग्रह से पंचम भाव दृष्ट है।
वर कन्या चयन शुभ-अशुभ योग के
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब
01. वर के सप्तमेश की राशि में कन्या की राशि हो तो शुभफल प्रद । -
02. कन्या की राशि वर के सप्तमेश का उच्च स्थान हो ।
03. वर के सप्तमेश के नीच राशि में कन्या की राशि हो ।
04. वर का शुक्र जिस राशि में हो। वही राशि कन्या की हो ।
05. वर का लग्नेश जिस राशि में हो वही राशि कन्या की हो ।
06. वर की जन्म राशि से सप्तम स्थान में जो राशि पड़े वही राशि कन्या की हो । 07. इन योगों में दाम्पत्य जीवन सुखमय व्यतीत होता है। सप्तमेश 6, 8, 12 भाव में हो
और शुभ ग्रह से दृष्टि नहीं हो। सप्तमेश नीच का हो। सप्तमेश अस्तंगत हो इन 3 योगों में स्त्री सुख में बाधा होती है ।
०८. यदि सप्तमेश द्वादश भाव में हो और लग्नेश व जन्म राशीश सप्तम भाव में हो तब या तो अविवाहित जीवन बने अथवा दाम्पत्य जीवन दुखमय हो ।
09. चन्द्र और शुक्र पर शनि मंगल की दृष्टि भी विवाह सम्बन्ध में बाधक होती है ।
10. 1,7,12 भाव में पाप ग्रह हो चन्द्रमा 5वें निर्वली हो तो अविवाहित जीवन ।
11. श+चं सप्तम में होने से स्त्री बन्ध्या होती है। 12. बु+शु सप्तम में स्त्री सुख में बाधा ।
13. शु+मं ७वें या त्रिकोण में शु+ मं नवम में शु मं पञ्चम में होने से दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं होता। + से
14. पापयुक्त शुक्र 5,7,9 वे भाव होने पर भी स्त्री का वियोग रहता है ।
15. लग्न सप्तम और चन्द्र तीनों लग्न द्विस्वभाव राशि में अथवा लग्नेश सप्तमेश, जन्मराशीश तीनों द्विस्वभाव राशि में हो अथवा शुक्र द्विस्वभाव राशि में (3,6, 9, 12) हो तो 2 विवाह होते हैं।
16. सप्तमेश शुभ ग्रह सहित 6, 8, 12 वें भाव में और सप्तम में पापग्रह के होने से 2 विवाह होते हैं।
17. यदि शुक्र पापग्रह के साथ हो । शुक्र नीच राशि का हो । शुक्र नीच नवांश का हो ।
18. शुक्र अस्त हो पापाक्रान्त हो तो 2 विवाह होते हैं।
19. सप्तमेश की दृष्टि रहित मंगल 7, 8, 12वें भाव में होने से 2 विवाह होते हैं। यदि 1,2,7 भाव में कोई एक पापग्रह स्थिति हो और सप्तमेश नीच राशिगत हो तो अथवा अस्त हो तो 3 विवाह होते हैं।
20. सप्तमेश एकादशेश का दृष्टि सम्बंध हो और बली त्रिशांश में हो तो अधिक स्त्रियाँ होती हैं।
21. चं+श सप्तम में बहुपत्नी योग बनाते हैं ।
22. गुरु अपने उच्च नवमांश का हो तो बहुपत्नी योग बनाता है।
23. 1,7 भाव के स्वामी और जन्म राशि के स्वामी तथा शुक्र उच्च राशि के होने पर बहुदारा योग बनाता है।
24. बलवान् बुध लग्नेश से दशमस्थ हो और चन्द्रमा लग्न से तीसरे या सातवें हो तो जातक स्त्री समूह से घिरा हुआ रहता है।
25. सप्तमेश दशम में दशमेश सप्तम में द्वितीयेश 7वें या 10वें हो तो अनेक स्त्रियों का योग बनता है।
26. लग्नेश दशम में बली बुध के साथ सप्तमेश चन्द्र के साथ तृतीय भाव में होने से स्त्रियों का शिकार बनकर जीवनयापन करता है ।
27. सप्तम स्थान का शुक्र द्विस्वभाव राशि में स्थित होकर पापग्रह से द्रष्ट हो तो एक से
अधिक विवाह होते हैं, शुक्र सप्तम में स्वराशि का भी हो तो यह कल घटित होगा।
28. सप्तम स्थान में कोई क्लीव (नपुंसक) ग्रह हो और एकादश में 2 ग्रह स्थित हो तो स्त्री के जीवित रहने पर ही दूसरी स्त्री होती है।
स्त्री के गुणदोषादि का विचार 01. शुक्र चर राशि में हो, गुरु सप्तमस्थ हो लग्नेश बली हो तो स्त्री पतिव्रता होती है ।
02. सप्तमेश या शुक्र गुरु से युत या द्रष्ट होने पर शुभ लक्षण स्त्री |
03. गुरु सप्तमस्थ हो या सप्तमेश हो उस पर बुध शुक्र की दृष्टि से स्त्री सुलक्षणा ।
04. सप्तमेश केन्द्रस्थ शुभग्रह के साथ हो अथवा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो स्त्री सुलक्षणा तथा स्वयं धनी व अधिकारी होती है ।
05. गुरु से द्रष्ट सप्तम भाव होने पर भी स्त्री दयालु सुन्दरी व चरित्रवान् होती है ।
06. सप्तमेश शनि सप्तमस्थ हो तो स्त्री झगड़ालू होते हुए भी सुलक्षणा होती है।
07. लग्नाधिपति सप्तम में सप्तमेश पंचम में होने से पति स्त्री का आज्ञाकारी होता है।
08. लग्न में राहु व केतु रहने से स्त्री पति के वशीभूत होती है ।
09. यदि शुक्र उच्च हो या शुभ नवमांश में हो अथवा सप्तमेश ग्रह से युक्त द्रष्ट हो अथवा सप्तमेश शुभग्रह के साथ हो तो स्त्री अच्छी मिलती है।
10. सप्तमेश सूर्य शुभ ग्रहयुक्त दृष्ट हो अथवा शुभराशि गत हो या शुभ नवमांश में हो तो स्त्री आज्ञाकारी होती है।
11. सप्तमस्थ चन्द्र पापयुत दृष्ट या पाप राशिगत या पाप नवमांश में हो तो कुटिल स्वभाव की स्त्री होती है। यदि चन्द्रशुभ ग्रहयुत दृष्ट या शुभ नवमांश में हो तो श्रेष्ठ स्वभाव वाली चंचल स्त्री होती है।
12. सप्तमस्थ मंगल उच्चस्थ व शुभयुत दृष्ट हो तो स्त्री निर्दयी परन्तु आज्ञाकारी।
13. सप्तमेश बुध नीचस्थ, पापयुत द्रष्ट, अष्टम द्वादश भावगत, अस्तगंत, पापक्रान्त आदि हो तो स्त्री पति की जानलेवा होती है।
14. शुक्र सप्तमेश पापयुक्तदृश्य नीचस्थ अस्तंगत, शत्रु राशिगत आदि हो तो स्त्री (व्यभिचारिणी) होती है।
15. ससमेश शनि भी शुक्र जैसी स्थिति में हो तो स्त्री कुल्टा होती है ।
16. राहु केतु सप्तमस्थ होने से उस पर पाप ग्रह की दृष्टि भी हो तो स्त्री पति को विषपान कराने वाली होती है ।
17. सप्तमेश 6, 8, 12 भाव में शुक्र निर्बली से उसकी स्त्री अच्छी नहीं होती ।
विवाह समय
01. सप्तमेश जिस राशि व नवमांश में हो, दोनों में जो बलवान् हो उसके दशाकाल में
जब गोचर में गुरु सप्तमेश स्थित राशि से त्रिकोण में आने पर विवाह होता है।
02. चन्द्र और शुक्र में जो बली हो उसकी महादशा या अन्तर्दशा काल में बली ग्रह से त्रिकोण में गुरु आने पर विवाह होता है ।
03. यदि सप्तेश शुक्र के साथ बैठा हो तो सप्तमेश की दशा व अन्तर्दशा में विवाह होता है। इसी प्रकार द्वितीयेश जिस राशि में बैठा हो उस राशि के स्वामी की दशा अन्तदर्शा में अथवा नवमेश दशमेश की दशादि में अथवा सप्तमस्थ ग्रह के दशादि अथवा सप्तमेश के साथ जो ग्रह बैठा हो उसकी दशा अन्तर्दशा में विवाह होता है ।
04. जब लग्नेश गोचर में ससमस्थ राशि में अथवा सप्तमेश व शुक्र लग्नेश की राशि या नवमांश में आनेपर अथवा सप्तमस्थ ग्रह की दशादि में अथवा सप्तम को देखने से ग्रह की दशा अन्तर्दशा में विवाह होता है।
05. शुक्र चन्द्रमा और लग्न से सप्तमाधि पति की दशादि में विवाह होता है।
06. विवाह कारक ग्रह शुभ ग्रह शुभ राशिगत से दशा व अन्तर्दशा में आदि में यदि वह ग्रह शुभ तो हो किन्तु पापराशि में स्थित हो, दशादि के मध्यम में यदि वह ग्रह पापी हो और पापग्रह की राशि में होतो दशादि के अन्तिम समय में विवाह काल समझना चाहिये।
07. यदि लग्नेश व सप्तमेश समीपवर्ती हों तो विवाह कम अवस्था में, यदि दूरी अधिक हो तो विलम्ब से विवाह होता है।
08. 1,2,7 वे भाव में शुभग्रह स्थित हो या शुभग्रह की दृष्टि हो तो कम अवस्था में विवाह योग बन जाता है।
09. सप्तमेश बलवान् होकर केन्द्रस्थ हो या त्रिकोण में हो तो बाल्य काल में विवाह होता है ।
10. 1,2,7 वे भाव शुक्र के पापयुत द्रष्ट होने से विवाह विलम्ब से होता है। के
11. शुक्र से सप्तमेश की दिशा में अथवा सप्तमस्थ ग्रह की दिशा में अथवा सप्तम को
देखने वाली की दिशा में विवाह होता है। शीघ्र वैधव्य योग
द्वितीय भाव और द्वितीयेश, बुध तथा गुरु पर मंश, के, श. का प्रभाव होने पर शीघ्र ही वैधव्य योग प्राप्त हो जाता है। स्त्री की कुण्डली वृषलग्न की है दूसरे भाव में शुक्र 12 वें में राहु तीसरे में सूर्य 4थे में बुध, गुरु, षष्ठ में केतु मंगल, सप्तम में चन्द्र और नवम में शनि स्थित है। यहाँ द्वितीय भावेश बुध और सप्तम भाव के कारक गुरु पर राहु की पंचम दृष्टि पड़ रही है तथा द्वितीय भाव पर केतु की नवम दृष्टि पड़ रही है अत- द्वितीय भाव तथा भावेश बुध एवं सप्तम का कारक गुरु तीनों पर पापदृष्टि होने से वैधव्य योग बन रहा है, किन्तु शीघ्र वैधव्य योग को बुध प्रदर्शित कर रहा है। क्योंकि बुध की कुमार अवस्था होती है तो जो जीवन के बाल्यकाल में ही प्रभावित होता है। अतः विवाह के अतिशीघ्र वैधव्य की प्राप्ति करवाता है सुन्दर पति, पत्नि प्राप्ति योग
यदि सप्तम भाव में समराशि हो तथा सप्तमेश और शुक्र भी समराशि में होने पर और अष्टम अष्टमेश शनि की दृष्टि में नहीं होने पर सुन्दर स्त्री की प्राप्ति होती है स्त्री की कुण्डली में सप्तम भाव और भावेश पुरुष राशि में होकर गुरु आदि शुभ पुरुष राशि ग्रह से दृष्ट होने पर सुन्दर पति की प्राप्ति होती है। पति त्याग योग
सप्तम भाव और भावेश एवं स्त्री भाव कारक ग्रह पर जब सूर्य मंगल राहु क्षीणचन्द्र, इन पापी ग्रहों की युति दृष्टि हो या ये पापीग्रह जिन राशियों में स्थित हों उनके स्वामियों की दृष्टि युति हो, तो पुरुष का उसकी स्त्री से वियोग होता है।
कन्या लग्न की कुण्डली में, सूर्य, बुध, गुरु, शुक्र पंचम में, शनि की राशि में है। चन्द्र चतुर्थ भाव में, राहु षष्ठ में, शनि नवम में, मंगल दशम में तथा केतु व्यय में है। यहाँ सप्तमेश शुक्र सप्तम का कारक गुरु सूर्य, जो पृथकता जनक है उसके साथ स्थित है। व्ययेश सूर्य शत्रु क्षेत्र जो भी पृथकता जनक है पंचम भाव पापाक्रान्त राहु और क्षीण चन्द्र से है तथा दशमस्थ मंगल पापग्रह से पंचम भाव दृष्ट है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें