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वर कन्या चयन शुभ-अशुभ योग के By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब01. वर के सप्तमेश की राशि में कन्या की राशि हो तो शुभफल प्रद । -02. कन्या की राशि वर के सप्तमेश का उच्च स्थान हो ।03. वर के सप्तमेश के नीच राशि में कन्या की राशि हो ।04. वर का शुक्र जिस राशि में हो। वही राशि कन्या की हो ।05. वर का लग्नेश जिस राशि में हो वही राशि कन्या की हो ।06. वर की जन्म राशि से सप्तम स्थान में जो राशि पड़े वही राशि कन्या की हो । 07. इन योगों में दाम्पत्य जीवन सुखमय व्यतीत होता है। सप्तमेश 6, 8, 12 भाव में होऔर शुभ ग्रह से दृष्टि नहीं हो। सप्तमेश नीच का हो। सप्तमेश अस्तंगत हो इन 3 योगों में स्त्री सुख में बाधा होती है ।०८. यदि सप्तमेश द्वादश भाव में हो और लग्नेश व जन्म राशीश सप्तम भाव में हो तब या तो अविवाहित जीवन बने अथवा दाम्पत्य जीवन दुखमय हो ।09. चन्द्र और शुक्र पर शनि मंगल की दृष्टि भी विवाह सम्बन्ध में बाधक होती है ।10. 1,7,12 भाव में पाप ग्रह हो चन्द्रमा 5वें निर्वली हो तो अविवाहित जीवन ।11. श+चं सप्तम में होने से स्त्री बन्ध्या होती है। 12. बु+शु सप्तम में स्त्री सुख में बाधा ।13. शु+मं ७वें या त्रिकोण में शु+ मं नवम में शु मं पञ्चम में होने से दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं होता। + से14. पापयुक्त शुक्र 5,7,9 वे भाव होने पर भी स्त्री का वियोग रहता है ।15. लग्न सप्तम और चन्द्र तीनों लग्न द्विस्वभाव राशि में अथवा लग्नेश सप्तमेश, जन्मराशीश तीनों द्विस्वभाव राशि में हो अथवा शुक्र द्विस्वभाव राशि में (3,6, 9, 12) हो तो 2 विवाह होते हैं।16. सप्तमेश शुभ ग्रह सहित 6, 8, 12 वें भाव में और सप्तम में पापग्रह के होने से 2 विवाह होते हैं।17. यदि शुक्र पापग्रह के साथ हो । शुक्र नीच राशि का हो । शुक्र नीच नवांश का हो ।18. शुक्र अस्त हो पापाक्रान्त हो तो 2 विवाह होते हैं।19. सप्तमेश की दृष्टि रहित मंगल 7, 8, 12वें भाव में होने से 2 विवाह होते हैं। यदि 1,2,7 भाव में कोई एक पापग्रह स्थिति हो और सप्तमेश नीच राशिगत हो तो अथवा अस्त हो तो 3 विवाह होते हैं। 20. सप्तमेश एकादशेश का दृष्टि सम्बंध हो और बली त्रिशांश में हो तो अधिक स्त्रियाँ होती हैं।21. चं+श सप्तम में बहुपत्नी योग बनाते हैं ।22. गुरु अपने उच्च नवमांश का हो तो बहुपत्नी योग बनाता है। 23. 1,7 भाव के स्वामी और जन्म राशि के स्वामी तथा शुक्र उच्च राशि के होने पर बहुदारा योग बनाता है।24. बलवान् बुध लग्नेश से दशमस्थ हो और चन्द्रमा लग्न से तीसरे या सातवें हो तो जातक स्त्री समूह से घिरा हुआ रहता है। 25. सप्तमेश दशम में दशमेश सप्तम में द्वितीयेश 7वें या 10वें हो तो अनेक स्त्रियों का योग बनता है।26. लग्नेश दशम में बली बुध के साथ सप्तमेश चन्द्र के साथ तृतीय भाव में होने से स्त्रियों का शिकार बनकर जीवनयापन करता है ।27. सप्तम स्थान का शुक्र द्विस्वभाव राशि में स्थित होकर पापग्रह से द्रष्ट हो तो एक सेअधिक विवाह होते हैं, शुक्र सप्तम में स्वराशि का भी हो तो यह कल घटित होगा। 28. सप्तम स्थान में कोई क्लीव (नपुंसक) ग्रह हो और एकादश में 2 ग्रह स्थित हो तो स्त्री के जीवित रहने पर ही दूसरी स्त्री होती है।स्त्री के गुणदोषादि का विचार 01. शुक्र चर राशि में हो, गुरु सप्तमस्थ हो लग्नेश बली हो तो स्त्री पतिव्रता होती है ।02. सप्तमेश या शुक्र गुरु से युत या द्रष्ट होने पर शुभ लक्षण स्त्री |03. गुरु सप्तमस्थ हो या सप्तमेश हो उस पर बुध शुक्र की दृष्टि से स्त्री सुलक्षणा । 04. सप्तमेश केन्द्रस्थ शुभग्रह के साथ हो अथवा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो स्त्री सुलक्षणा तथा स्वयं धनी व अधिकारी होती है ।05. गुरु से द्रष्ट सप्तम भाव होने पर भी स्त्री दयालु सुन्दरी व चरित्रवान् होती है ।06. सप्तमेश शनि सप्तमस्थ हो तो स्त्री झगड़ालू होते हुए भी सुलक्षणा होती है। 07. लग्नाधिपति सप्तम में सप्तमेश पंचम में होने से पति स्त्री का आज्ञाकारी होता है।08. लग्न में राहु व केतु रहने से स्त्री पति के वशीभूत होती है । 09. यदि शुक्र उच्च हो या शुभ नवमांश में हो अथवा सप्तमेश ग्रह से युक्त द्रष्ट हो अथवा सप्तमेश शुभग्रह के साथ हो तो स्त्री अच्छी मिलती है।10. सप्तमेश सूर्य शुभ ग्रहयुक्त दृष्ट हो अथवा शुभराशि गत हो या शुभ नवमांश में हो तो स्त्री आज्ञाकारी होती है।11. सप्तमस्थ चन्द्र पापयुत दृष्ट या पाप राशिगत या पाप नवमांश में हो तो कुटिल स्वभाव की स्त्री होती है। यदि चन्द्रशुभ ग्रहयुत दृष्ट या शुभ नवमांश में हो तो श्रेष्ठ स्वभाव वाली चंचल स्त्री होती है।12. सप्तमस्थ मंगल उच्चस्थ व शुभयुत दृष्ट हो तो स्त्री निर्दयी परन्तु आज्ञाकारी। 13. सप्तमेश बुध नीचस्थ, पापयुत द्रष्ट, अष्टम द्वादश भावगत, अस्तगंत, पापक्रान्त आदि हो तो स्त्री पति की जानलेवा होती है।14. शुक्र सप्तमेश पापयुक्तदृश्य नीचस्थ अस्तंगत, शत्रु राशिगत आदि हो तो स्त्री (व्यभिचारिणी) होती है।15. ससमेश शनि भी शुक्र जैसी स्थिति में हो तो स्त्री कुल्टा होती है । 16. राहु केतु सप्तमस्थ होने से उस पर पाप ग्रह की दृष्टि भी हो तो स्त्री पति को विषपान कराने वाली होती है ।17. सप्तमेश 6, 8, 12 भाव में शुक्र निर्बली से उसकी स्त्री अच्छी नहीं होती ।विवाह समय01. सप्तमेश जिस राशि व नवमांश में हो, दोनों में जो बलवान् हो उसके दशाकाल मेंजब गोचर में गुरु सप्तमेश स्थित राशि से त्रिकोण में आने पर विवाह होता है।02. चन्द्र और शुक्र में जो बली हो उसकी महादशा या अन्तर्दशा काल में बली ग्रह से त्रिकोण में गुरु आने पर विवाह होता है ।03. यदि सप्तेश शुक्र के साथ बैठा हो तो सप्तमेश की दशा व अन्तर्दशा में विवाह होता है। इसी प्रकार द्वितीयेश जिस राशि में बैठा हो उस राशि के स्वामी की दशा अन्तदर्शा में अथवा नवमेश दशमेश की दशादि में अथवा सप्तमस्थ ग्रह के दशादि अथवा सप्तमेश के साथ जो ग्रह बैठा हो उसकी दशा अन्तर्दशा में विवाह होता है ।04. जब लग्नेश गोचर में ससमस्थ राशि में अथवा सप्तमेश व शुक्र लग्नेश की राशि या नवमांश में आनेपर अथवा सप्तमस्थ ग्रह की दशादि में अथवा सप्तम को देखने से ग्रह की दशा अन्तर्दशा में विवाह होता है।05. शुक्र चन्द्रमा और लग्न से सप्तमाधि पति की दशादि में विवाह होता है। 06. विवाह कारक ग्रह शुभ ग्रह शुभ राशिगत से दशा व अन्तर्दशा में आदि में यदि वह ग्रह शुभ तो हो किन्तु पापराशि में स्थित हो, दशादि के मध्यम में यदि वह ग्रह पापी हो और पापग्रह की राशि में होतो दशादि के अन्तिम समय में विवाह काल समझना चाहिये।07. यदि लग्नेश व सप्तमेश समीपवर्ती हों तो विवाह कम अवस्था में, यदि दूरी अधिक हो तो विलम्ब से विवाह होता है।08. 1,2,7 वे भाव में शुभग्रह स्थित हो या शुभग्रह की दृष्टि हो तो कम अवस्था में विवाह योग बन जाता है।09. सप्तमेश बलवान् होकर केन्द्रस्थ हो या त्रिकोण में हो तो बाल्य काल में विवाह होता है ।10. 1,2,7 वे भाव शुक्र के पापयुत द्रष्ट होने से विवाह विलम्ब से होता है। के11. शुक्र से सप्तमेश की दिशा में अथवा सप्तमस्थ ग्रह की दिशा में अथवा सप्तम कोदेखने वाली की दिशा में विवाह होता है। शीघ्र वैधव्य योगद्वितीय भाव और द्वितीयेश, बुध तथा गुरु पर मंश, के, श. का प्रभाव होने पर शीघ्र ही वैधव्य योग प्राप्त हो जाता है। स्त्री की कुण्डली वृषलग्न की है दूसरे भाव में शुक्र 12 वें में राहु तीसरे में सूर्य 4थे में बुध, गुरु, षष्ठ में केतु मंगल, सप्तम में चन्द्र और नवम में शनि स्थित है। यहाँ द्वितीय भावेश बुध और सप्तम भाव के कारक गुरु पर राहु की पंचम दृष्टि पड़ रही है तथा द्वितीय भाव पर केतु की नवम दृष्टि पड़ रही है अत- द्वितीय भाव तथा भावेश बुध एवं सप्तम का कारक गुरु तीनों पर पापदृष्टि होने से वैधव्य योग बन रहा है, किन्तु शीघ्र वैधव्य योग को बुध प्रदर्शित कर रहा है। क्योंकि बुध की कुमार अवस्था होती है तो जो जीवन के बाल्यकाल में ही प्रभावित होता है। अतः विवाह के अतिशीघ्र वैधव्य की प्राप्ति करवाता है सुन्दर पति, पत्नि प्राप्ति योगयदि सप्तम भाव में समराशि हो तथा सप्तमेश और शुक्र भी समराशि में होने पर और अष्टम अष्टमेश शनि की दृष्टि में नहीं होने पर सुन्दर स्त्री की प्राप्ति होती है स्त्री की कुण्डली में सप्तम भाव और भावेश पुरुष राशि में होकर गुरु आदि शुभ पुरुष राशि ग्रह से दृष्ट होने पर सुन्दर पति की प्राप्ति होती है। पति त्याग योगसप्तम भाव और भावेश एवं स्त्री भाव कारक ग्रह पर जब सूर्य मंगल राहु क्षीणचन्द्र, इन पापी ग्रहों की युति दृष्टि हो या ये पापीग्रह जिन राशियों में स्थित हों उनके स्वामियों की दृष्टि युति हो, तो पुरुष का उसकी स्त्री से वियोग होता है।बाल वनिता महिला आश्रमकन्या लग्न की कुण्डली में, सूर्य, बुध, गुरु, शुक्र पंचम में, शनि की राशि में है। चन्द्र चतुर्थ भाव में, राहु षष्ठ में, शनि नवम में, मंगल दशम में तथा केतु व्यय में है। यहाँ सप्तमेश शुक्र सप्तम का कारक गुरु सूर्य, जो पृथकता जनक है उसके साथ स्थित है। व्ययेश सूर्य शत्रु क्षेत्र जो भी पृथकता जनक है पंचम भाव पापाक्रान्त राहु और क्षीण चन्द्र से है तथा दशमस्थ मंगल पापग्रह से पंचम भाव दृष्ट है।

वर कन्या चयन शुभ-अशुभ योग के 
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब
01. वर के सप्तमेश की राशि में कन्या की राशि हो तो शुभफल प्रद । -

02. कन्या की राशि वर के सप्तमेश का उच्च स्थान हो ।

03. वर के सप्तमेश के नीच राशि में कन्या की राशि हो ।

04. वर का शुक्र जिस राशि में हो। वही राशि कन्या की हो ।

05. वर का लग्नेश जिस राशि में हो वही राशि कन्या की हो ।

06. वर की जन्म राशि से सप्तम स्थान में जो राशि पड़े वही राशि कन्या की हो । 07. इन योगों में दाम्पत्य जीवन सुखमय व्यतीत होता है। सप्तमेश 6, 8, 12 भाव में हो

और शुभ ग्रह से दृष्टि नहीं हो। सप्तमेश नीच का हो। सप्तमेश अस्तंगत हो इन 3 योगों में स्त्री सुख में बाधा होती है ।

०८. यदि सप्तमेश द्वादश भाव में हो और लग्नेश व जन्म राशीश सप्तम भाव में हो तब या तो अविवाहित जीवन बने अथवा दाम्पत्य जीवन दुखमय हो ।

09. चन्द्र और शुक्र पर शनि मंगल की दृष्टि भी विवाह सम्बन्ध में बाधक होती है ।

10. 1,7,12 भाव में पाप ग्रह हो चन्द्रमा 5वें निर्वली हो तो अविवाहित जीवन ।

11. श+चं सप्तम में होने से स्त्री बन्ध्या होती है। 12. बु+शु सप्तम में स्त्री सुख में बाधा ।

13. शु+मं ७वें या त्रिकोण में शु+ मं नवम में शु मं पञ्चम में होने से दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं होता। + से

14. पापयुक्त शुक्र 5,7,9 वे भाव होने पर भी स्त्री का वियोग रहता है ।

15. लग्न सप्तम और चन्द्र तीनों लग्न द्विस्वभाव राशि में अथवा लग्नेश सप्तमेश, जन्मराशीश तीनों द्विस्वभाव राशि में हो अथवा शुक्र द्विस्वभाव राशि में (3,6, 9, 12) हो तो 2 विवाह होते हैं।

16. सप्तमेश शुभ ग्रह सहित 6, 8, 12 वें भाव में और सप्तम में पापग्रह के होने से 2 विवाह होते हैं।

17. यदि शुक्र पापग्रह के साथ हो । शुक्र नीच राशि का हो । शुक्र नीच नवांश का हो ।

18. शुक्र अस्त हो पापाक्रान्त हो तो 2 विवाह होते हैं।

19. सप्तमेश की दृष्टि रहित मंगल 7, 8, 12वें भाव में होने से 2 विवाह होते हैं। यदि 1,2,7 भाव में कोई एक पापग्रह स्थिति हो और सप्तमेश नीच राशिगत हो तो अथवा अस्त हो तो 3 विवाह होते हैं।
 20. सप्तमेश एकादशेश का दृष्टि सम्बंध हो और बली त्रिशांश में हो तो अधिक स्त्रियाँ होती हैं।

21. चं+श सप्तम में बहुपत्नी योग बनाते हैं ।

22. गुरु अपने उच्च नवमांश का हो तो बहुपत्नी योग बनाता है।
 23. 1,7 भाव के स्वामी और जन्म राशि के स्वामी तथा शुक्र उच्च राशि के होने पर बहुदारा योग बनाता है।

24. बलवान् बुध लग्नेश से दशमस्थ हो और चन्द्रमा लग्न से तीसरे या सातवें हो तो जातक स्त्री समूह से घिरा हुआ रहता है।
 25. सप्तमेश दशम में दशमेश सप्तम में द्वितीयेश 7वें या 10वें हो तो अनेक स्त्रियों का योग बनता है।

26. लग्नेश दशम में बली बुध के साथ सप्तमेश चन्द्र के साथ तृतीय भाव में होने से स्त्रियों का शिकार बनकर जीवनयापन करता है ।

27. सप्तम स्थान का शुक्र द्विस्वभाव राशि में स्थित होकर पापग्रह से द्रष्ट हो तो एक से

अधिक विवाह होते हैं, शुक्र सप्तम में स्वराशि का भी हो तो यह कल घटित होगा। 
28. सप्तम स्थान में कोई क्लीव (नपुंसक) ग्रह हो और एकादश में 2 ग्रह स्थित हो तो स्त्री के जीवित रहने पर ही दूसरी स्त्री होती है।

स्त्री के गुणदोषादि का विचार 01. शुक्र चर राशि में हो, गुरु सप्तमस्थ हो लग्नेश बली हो तो स्त्री पतिव्रता होती है ।

02. सप्तमेश या शुक्र गुरु से युत या द्रष्ट होने पर शुभ लक्षण स्त्री |

03. गुरु सप्तमस्थ हो या सप्तमेश हो उस पर बुध शुक्र की दृष्टि से स्त्री सुलक्षणा । 
04. सप्तमेश केन्द्रस्थ शुभग्रह के साथ हो अथवा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो स्त्री सुलक्षणा तथा स्वयं धनी व अधिकारी होती है ।

05. गुरु से द्रष्ट सप्तम भाव होने पर भी स्त्री दयालु सुन्दरी व चरित्रवान् होती है ।

06. सप्तमेश शनि सप्तमस्थ हो तो स्त्री झगड़ालू होते हुए भी सुलक्षणा होती है। 
07. लग्नाधिपति सप्तम में सप्तमेश पंचम में होने से पति स्त्री का आज्ञाकारी होता है।

08. लग्न में राहु व केतु रहने से स्त्री पति के वशीभूत होती है ।
 09. यदि शुक्र उच्च हो या शुभ नवमांश में हो अथवा सप्तमेश ग्रह से युक्त द्रष्ट हो अथवा सप्तमेश शुभग्रह के साथ हो तो स्त्री अच्छी मिलती है।

10. सप्तमेश सूर्य शुभ ग्रहयुक्त दृष्ट हो अथवा शुभराशि गत हो या शुभ नवमांश में हो तो स्त्री आज्ञाकारी होती है।
11. सप्तमस्थ चन्द्र पापयुत दृष्ट या पाप राशिगत या पाप नवमांश में हो तो कुटिल स्वभाव की स्त्री होती है। यदि चन्द्रशुभ ग्रहयुत दृष्ट या शुभ नवमांश में हो तो श्रेष्ठ स्वभाव वाली चंचल स्त्री होती है।

12. सप्तमस्थ मंगल उच्चस्थ व शुभयुत दृष्ट हो तो स्त्री निर्दयी परन्तु आज्ञाकारी। 
13. सप्तमेश बुध नीचस्थ, पापयुत द्रष्ट, अष्टम द्वादश भावगत, अस्तगंत, पापक्रान्त आदि हो तो स्त्री पति की जानलेवा होती है।

14. शुक्र सप्तमेश पापयुक्तदृश्य नीचस्थ अस्तंगत, शत्रु राशिगत आदि हो तो स्त्री (व्यभिचारिणी) होती है।

15. ससमेश शनि भी शुक्र जैसी स्थिति में हो तो स्त्री कुल्टा होती है । 
16. राहु केतु सप्तमस्थ होने से उस पर पाप ग्रह की दृष्टि भी हो तो स्त्री पति को विषपान कराने वाली होती है ।

17. सप्तमेश 6, 8, 12 भाव में शुक्र निर्बली से उसकी स्त्री अच्छी नहीं होती ।

विवाह समय

01. सप्तमेश जिस राशि व नवमांश में हो, दोनों में जो बलवान् हो उसके दशाकाल में

जब गोचर में गुरु सप्तमेश स्थित राशि से त्रिकोण में आने पर विवाह होता है।

02. चन्द्र और शुक्र में जो बली हो उसकी महादशा या अन्तर्दशा काल में बली ग्रह से त्रिकोण में गुरु आने पर विवाह होता है ।

03. यदि सप्तेश शुक्र के साथ बैठा हो तो सप्तमेश की दशा व अन्तर्दशा में विवाह होता है। इसी प्रकार द्वितीयेश जिस राशि में बैठा हो उस राशि के स्वामी की दशा अन्तदर्शा में अथवा नवमेश दशमेश की दशादि में अथवा सप्तमस्थ ग्रह के दशादि अथवा सप्तमेश के साथ जो ग्रह बैठा हो उसकी दशा अन्तर्दशा में विवाह होता है ।

04. जब लग्नेश गोचर में ससमस्थ राशि में अथवा सप्तमेश व शुक्र लग्नेश की राशि या नवमांश में आनेपर अथवा सप्तमस्थ ग्रह की दशादि में अथवा सप्तम को देखने से ग्रह की दशा अन्तर्दशा में विवाह होता है।

05. शुक्र चन्द्रमा और लग्न से सप्तमाधि पति की दशादि में विवाह होता है।
 06. विवाह कारक ग्रह शुभ ग्रह शुभ राशिगत से दशा व अन्तर्दशा में आदि में यदि वह ग्रह शुभ तो हो किन्तु पापराशि में स्थित हो, दशादि के मध्यम में यदि वह ग्रह पापी हो और पापग्रह की राशि में होतो दशादि के अन्तिम समय में विवाह काल समझना चाहिये।

07. यदि लग्नेश व सप्तमेश समीपवर्ती हों तो विवाह कम अवस्था में, यदि दूरी अधिक हो तो विलम्ब से विवाह होता है।

08. 1,2,7 वे भाव में शुभग्रह स्थित हो या शुभग्रह की दृष्टि हो तो कम अवस्था में विवाह योग बन जाता है।

09. सप्तमेश बलवान् होकर केन्द्रस्थ हो या त्रिकोण में हो तो बाल्य काल में विवाह होता है ।

10. 1,2,7 वे भाव शुक्र के पापयुत द्रष्ट होने से विवाह विलम्ब से होता है। के

11. शुक्र से सप्तमेश की दिशा में अथवा सप्तमस्थ ग्रह की दिशा में अथवा सप्तम को

देखने वाली की दिशा में विवाह होता है। शीघ्र वैधव्य योग

द्वितीय भाव और द्वितीयेश, बुध तथा गुरु पर मंश, के, श. का प्रभाव होने पर शीघ्र ही वैधव्य योग प्राप्त हो जाता है। स्त्री की कुण्डली वृषलग्न की है दूसरे भाव में शुक्र 12 वें में राहु तीसरे में सूर्य 4थे में बुध, गुरु, षष्ठ में केतु मंगल, सप्तम में चन्द्र और नवम में शनि स्थित है। यहाँ द्वितीय भावेश बुध और सप्तम भाव के कारक गुरु पर राहु की पंचम दृष्टि पड़ रही है तथा द्वितीय भाव पर केतु की नवम दृष्टि पड़ रही है अत- द्वितीय भाव तथा भावेश बुध एवं सप्तम का कारक गुरु तीनों पर पापदृष्टि होने से वैधव्य योग बन रहा है, किन्तु शीघ्र वैधव्य योग को बुध प्रदर्शित कर रहा है। क्योंकि बुध की कुमार अवस्था होती है तो जो जीवन के बाल्यकाल में ही प्रभावित होता है। अतः विवाह के अतिशीघ्र वैधव्य की प्राप्ति करवाता है सुन्दर पति, पत्नि प्राप्ति योग

यदि सप्तम भाव में समराशि हो तथा सप्तमेश और शुक्र भी समराशि में होने पर और अष्टम अष्टमेश शनि की दृष्टि में नहीं होने पर सुन्दर स्त्री की प्राप्ति होती है स्त्री की कुण्डली में सप्तम भाव और भावेश पुरुष राशि में होकर गुरु आदि शुभ पुरुष राशि ग्रह से दृष्ट होने पर सुन्दर पति की प्राप्ति होती है। पति त्याग योग

सप्तम भाव और भावेश एवं स्त्री भाव कारक ग्रह पर जब सूर्य मंगल राहु क्षीणचन्द्र, इन पापी ग्रहों की युति दृष्टि हो या ये पापीग्रह जिन राशियों में स्थित हों उनके स्वामियों की दृष्टि युति हो, तो पुरुष का उसकी स्त्री से वियोग होता है।

कन्या लग्न की कुण्डली में, सूर्य, बुध, गुरु, शुक्र पंचम में, शनि की राशि में है। चन्द्र चतुर्थ भाव में, राहु षष्ठ में, शनि नवम में, मंगल दशम में तथा केतु व्यय में है। यहाँ सप्तमेश शुक्र सप्तम का कारक गुरु सूर्य, जो पृथकता जनक है उसके साथ स्थित है। व्ययेश सूर्य शत्रु क्षेत्र जो भी पृथकता जनक है पंचम भाव पापाक्रान्त राहु और क्षीण चन्द्र से है तथा दशमस्थ मंगल पापग्रह से पंचम भाव दृष्ट है।

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कौन बनता है भूत प्रेत?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰〰🌼〰〰🌼〰〰जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में अटका आत्मा भूत बन जाता है। जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है। जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है।आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं। जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं। भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि कहा जाता है।भूतों के प्रकार〰〰〰〰हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है। इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है।84 लाख योनियां〰〰〰〰〰पशुयोनि, पक्षीयोनि, मनुष्य योनि में जीवन यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चले जाते हैं। आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 लाख योनियां है, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं। प्रेतयोनि में जाने वाले लोग अदृश्य और बलवान हो जाते हैं। लेकिन सभी मरने वाले इसी योनि में नहीं जाते और सभी मरने वाले अदृश्य तो होते हैं लेकिन बलवान नहीं होते। यह आत्मा के कर्म और गति पर निर्भर करता है। बहुत से भूत या प्रेत योनि में न जाकर पुन: गर्भधारण कर मानव बन जाते हैं। पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों का तर्पण करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि पितरों का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत-प्रेत के रूप में होता है। गरुड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीमद्‍भागवत पुराण में भी धुंधकारी के प्रेत बन जाने का वर्णन आता है।अतृप्त आत्माएं बनती है भूत〰〰〰〰〰〰〰〰〰जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है। और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है वह भी भू‍त बनकर भटकता है। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं।यम नाम की वायु〰〰〰〰〰वेद अनुसार मृत्युकाल में 'यम' नामक वायु में कुछ काल तक आत्मा स्थिर रहने के बाद पुन: गर्भधारण करती है। जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है तब वह गहरी सुषुप्ति अवस्था में होती है। जन्म से पूर्व भी वह इसी अवस्था में ही रहती है। जो आत्मा ज्यादा स्मृतिवान या ध्यानी है उसे ही अपने मरने का ज्ञान होता है और वही भूत बनती है।जन्म मरण का चक्र〰〰〰〰〰〰जिस तरह सुषुप्ति से स्वप्न और स्वप्न से आत्मा जाग्रति में जाती हैं उसी तरह मृत्युकाल में वह जाग्रति से स्वप्न और स्वप्न से सु‍षुप्ति में चली जाती हैं फिर सुषुप्ति से गहन सुषुप्ति में। यह चक्र चलता रहता है।भूत की भावना〰〰〰〰〰भूतों को खाने की इच्छा अधिक रहती है। इन्हें प्यास भी अधिक लगती है, लेकिन तृप्ति नहीं मिल पाती है। ये बहुत दुखी और चिड़चिड़ा होते हैं। यह हर समय इस बात की खोज करते रहते हैं कि कोई मुक्ति देने वाला मिले। ये कभी घर में तो कभी जंगल में भटकते रहते हैं।भूत की स्थिति〰〰〰〰ज्यादा शोर, उजाला और मंत्र उच्चारण से यह दूर रहते हैं। इसीलिए इन्हें कृष्ण पक्ष ज्यादा पसंद है और तेरस, चौदस तथा अमावस्या को यह मजबूत स्थिति में रहकर सक्रिय रहते हैं। भूत-प्रेत प्रायः उन स्थानों में दृष्टिगत होते हैं जिन स्थानों से मृतक का अपने जीवनकाल में संबंध रहा है या जो एकांत में स्थित है। बहुत दिनों से खाली पड़े घर या बंगले में भी भूतों का वास हो जाता है।भूत की ताकत〰〰〰〰भूत अदृश्य होते हैं। भूत-प्रेतों के शरीर धुंधलके तथा वायु से बने होते हैं अर्थात् वे शरीर-विहीन होते हैं। इसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। आयुर्वेद अनुसार यह 17 तत्वों से बना होता है। कुछ भूत अपने इस शरीर की ताकत को समझ कर उसका इस्तेमाल करना जानते हैं तो कुछ नहीं। कुछ भूतों में स्पर्श करने की ताकत होती है तो कुछ में नहीं। जो भूत स्पर्श करने की ताकत रखता है वह बड़े से बड़े पेड़ों को भी उखाड़ कर फेंक सकता है। ऐसे भूत यदि बुरे हैं तो खतरनाक होते हैं। यह किसी भी देहधारी (व्यक्ति) को अपने होने का अहसास करा देते हैं। इस तरह के भूतों की मानसिक शक्ति इतनी बलशाली होती है कि यह किसी भी व्यक्ति का दिमाग पलट कर उससे अच्छा या बुरा कार्य करा सकते हैं। यह भी कि यह किसी भी व्यक्ति के शरीर का इस्तेमाल करना भी जानते हैं। ठोसपन न होने के कारण ही भूत को यदि गोली, तलवार, लाठी आदि मारी जाए तो उस पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता। भूत में सुख-दुःख अनुभव करने की क्षमता अवश्य होती है। क्योंकि उनके वाह्यकरण में वायु तथा आकाश और अंतःकरण में मन, बुद्धि और चित्त संज्ञाशून्य होती है इसलिए वह केवल सुख-दुःख का ही अनुभव कर सकते हैं।अच्‍छी और बुरी आत्मा〰〰〰〰〰〰〰वासना के अच्छे और बुरे भाव के कारण मृतात्माओं को भी अच्छा और बुरा माना गया है। जहां अच्छी मृतात्माओं का वास होता है उसे पितृलोक तथा बुरी आत्मा का वास होता है उसे प्रेतलोक आदि कहते हैं। अच्छे और बुरे स्वभाव की आत्माएं ऐसे लोगों को तलाश करती है जो उनकी वासनाओं की पूर्ति कर सकता है। बुरी आत्माएं उन लोगों को तलाश करती हैं जो कुकर्मी, अधर्मी, वासनामय जीवन जीने वाले लोग हैं। फिर वह आत्माएं उन लोगों के गुण-कर्म, स्वभाव के अनुसार अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती है। जिस मानसिकता, प्रवृत्ति, कुकर्म, सत्कर्मों आदि के लोग होते हैं उसी के अनुरूप आत्मा उनमें प्रवेश करती है। अधिकांशतः लोगों को इसका पता नहीं चल पाता। अच्छी आत्माएं अच्छे कर्म करने वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे भी तृप्त करती है और बुरी आत्माएं बुरे कर्म वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे बुराई के लिए और प्रेरित करती है। इसीलिए धर्म अनुसार अच्छे कर्म के अलावा धार्मिकता और ईश्वर भक्ति होना जरूरी है तभी आप दोनों ही प्रकार की आत्मा से बचे रहेंगे।कौन बनता है भूत का शिकार〰〰〰〰〰〰〰〰〰धर्म के नियम अनुसार जो लोग तिथि और पवित्रता को नहीं मानते हैं, जो ईश्वर, देवता और गुरु का अपमान करते हैं और जो पाप कर्म में ही सदा रत रहते हैं ऐसे लोग आसानी से भूतों के चंगुल में आ सकते हैं। इनमें से कुछ लोगों को पता ही नहीं चल पाता है कि हम पर शासन करने वाला कोई भूत है। जिन लोगों की मानसिक शक्ति बहुत कमजोर होती है उन पर ये भूत सीधे-सीधे शासन करते हैं। बाल वनिता महिला आश्रमजो लोग रात्रि के कर्म और अनुष्ठान करते हैं और जो निशाचारी हैं वह आसानी से भूतों के शिकार बन जाते हैं। हिन्दू धर्म अनुसार किसी भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात्रि में नहीं किया जाता। रात्रि के कर्म करने वाले भूत, पिशाच, राक्षस और प्रेतयोनि के होते हैं।〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

कौन बनता है भूत प्रेत? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰〰🌼〰〰🌼〰〰 जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में अटका आत्मा भूत बन जाता है। जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है। जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है। आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं। जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं।  भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि कहा जाता है। भूतों के प्रकार 〰〰〰〰 हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक...

मनो वैज्ञानिक तथ्य क्या हैं जो लोग नहीं जानते हैं? By वनिता कासनियां पंजाब नफरत करने वाले आपसे वास्तव में नफरत नहीं करते हैं, वास्तव में वे खुद से नफरत करते हैं क्योंकि आप जो चाहते हैं उसका प्रतिबिंब हैं।2. एक व्यक्ति दूसरे लोगों के बारे में आपसे कैसे बात करता है, इसे ध्यान से सुनना सुनिश्चित करें। इस तरह वे आपके बारे में दूसरे लोगों से बात करते हैं।3. हमें केवल दो करीबी दोस्त चाहिए जिन पर हम भरोसा कर सकें। बहुत सारे दोस्त अवसाद और तनाव से जुड़े हुए हैं।4. जो लोग ज्यादा मेलजोल नहीं करते वे असल में असामाजिक नहीं होते, उनमें ड्रामा और नकली लोगों को बर्दाश्त नहीं होता।5. अपनी समस्याओं को दूसरों को बताना बंद करें, 20% परवाह नहीं है और अन्य 80% खुश हैं कि आपके पास यह है।6. पढ़ाई के दौरान चॉकलेट खाने से मस्तिष्क को नई जानकारी बनाए रखने में मदद मिलती है और यह उच्च परीक्षण स्कोर से जुड़ा होता है।7. जिसे आप नापसंद करते हैं उसके साथ अच्छा होने का मतलब यह नहीं है कि आप नकली हैं, इसका आम तौर पर मतलब है कि आप उस व्यक्ति को सहन करने के लिए पर्याप्त परिपक्व हैं।8. किसी को अपने दिमाग से निकालना मुश्किल है, इसका कारण यह है कि वे आपके बारे में भी सोच रहे हैं।9. जो लोग कटाक्ष को अच्छी तरह समझते हैं वे अक्सर लोगों के मन को पढ़ने में अच्छे होते हैं।10. यदि आपका मन बार-बार भटकता है, तो 85% संभावना है कि आप अवचेतन रूप से अपने जीवन से नाखुश हैं।11. माता-पिता अपने बच्चों से जिस तरह से बात करते हैं, वह उनकी अंतरात्मा की आवाज बन जाती है।12. अपने नकारात्मक विचारों को लिखना और उन्हें कूड़ेदान में फेंक देना आपके मूड को बेहतर बना सकता है। (मैंने कोशिश की और यह वास्तव में काम करता है :)13. ध्यान मात्र 8 सप्ताह में मस्तिष्क की संरचना को बदल सकता है। यह सीखने से जुड़े मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में ग्रे मैटर को भी बढ़ाता है।मनोविज्ञान कहता है कि जो लोग अच्छी सामग्री लिखते हैं और अपने उत्तरों में स्क्रीनशॉट पोस्ट नहीं करते हैं, उन्हें कम व्यू और कम अपवोट मिलते हैं

मनो वैज्ञानिक तथ्य क्या हैं जो लोग नहीं जानते हैं? By वनिता कासनियां पंजाब नफरत करने वाले आपसे वास्तव में नफरत नहीं करते हैं, वास्तव में वे खुद से नफरत करते हैं क्योंकि आप जो चाहते हैं उसका प्रतिबिंब हैं। 2. एक व्यक्ति दूसरे लोगों के बारे में आपसे कैसे बात करता है, इसे ध्यान से सुनना सुनिश्चित करें। इस तरह वे आपके बारे में दूसरे लोगों से बात करते हैं। 3. हमें केवल दो करीबी दोस्त चाहिए जिन पर हम भरोसा कर सकें। बहुत सारे दोस्त अवसाद और तनाव से जुड़े हुए हैं। 4. जो लोग ज्यादा मेलजोल नहीं करते वे असल में असामाजिक नहीं होते, उनमें ड्रामा और नकली लोगों को बर्दाश्त नहीं होता। 5. अपनी समस्याओं को दूसरों को बताना बंद करें, 20% परवाह नहीं है और अन्य 80% खुश हैं कि आपके पास यह है। 6. पढ़ाई के दौरान चॉकलेट खाने से मस्तिष्क को नई जानकारी बनाए रखने में मदद मिलती है और यह उच्च परीक्षण स्कोर से जुड़ा होता है। 7. जिसे आप नापसंद करते हैं उसके साथ अच्छा होने का मतलब यह नहीं है कि आप नकली हैं, इसका आम तौर पर मतलब है कि आप उस व्यक्ति को सहन करने के लिए पर्याप्त परिपक्व हैं। 8. किसी को अपने दिमाग से निकालना...

मानव गजब के मनोवैज्ञानिक तथ्य कौन से हैं? By वनिता कासनियां पंजाब सबसे पहले जवाब दिया गया: गजब के साइक्लोजिकल तथ्य कौन से हैं? 1. अगर आप अपने आप को 1 हफ्ते के लिए पूरे समाज से अपने परिवार से अपने दोस्तों से दूर कर लेते हो अक्सर तो आप इस दुनिया के दो % बुद्धिमान लोगों में से एक व्यक्ति में से एक हैं।2. जब भी आपको दुविधा महसूस हो तो आप एक पेपर पर अपने विचारों को लिखना शुरू करते हैं। लिखते लिखते आपकी सारी की सारी दुविधा साफ होनी शुरू हो जाएगी।3. अगर आप किसी सवाल का जवाब ढूंढना चाहते हैं आप किसी दुविधा में है तो सोने से पहले उस दुविधा के बारे में सोच कर सोए आपको कुछ दिनों में अपनी दुविधा का जवाब खुद ब खुद मिल जाएगा।4. अगर आप सामने वाले व्यक्ति के बारे में जानना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने बारे में कुछ थोड़ा बताइए था कि आप सामने वाले व्यक्ति के इंटरेस्ट के बारे में जान सकें।5. अगर आप नीले रंग के कपड़े पहनकर अपने कॉलेज या फिर अपने ऑफिस में जाते हैं तो आप पर लोग ज्यादा विश्वास करेंगे।6. कुछ चीज में पाया गया है कि रात को देर में सोने वाले व्यक्ति अक्सर जल्दी सोने वाले व्यक्ति से ज्यादा दिमागदार होता है।7. अगर आप चाहते हैं कि कोई व्यक्ति आपसे प्यार करने लगे तो आप उस व्यक्ति का ज्यादा से ज्यादा टाइम लेने की कोशिश करें परंतु उस व्यक्ति से चिपके नहीं। ऐसा भी ना हो कि वह व्यक्ति आपके समय की कीमत ना करें।8. अगर आप किसी व्यक्ति से उसके दाहिने कान की तरफ बोल कर उससे मदद मांगेंगे तो संभावना ज्यादा है कि व्यक्ति आपकी मदद करेगा।मैं आशा करती हूं कि आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आ

मानव गजब के मनोवैज्ञानिक तथ्य कौन से हैं? By वनिता कासनियां पंजाब सबसे पहले जवाब दिया गया: गजब के साइक्लोजिकल तथ्य कौन से हैं? 1. अगर आप अपने आप को 1 हफ्ते के लिए पूरे समाज से अपने परिवार से अपने दोस्तों से दूर कर लेते हो अक्सर तो आप इस दुनिया के दो % बुद्धिमान लोगों में से एक व्यक्ति में से एक हैं। 2. जब भी आपको दुविधा महसूस हो तो आप एक पेपर पर अपने विचारों को लिखना शुरू करते हैं। लिखते लिखते आपकी सारी की सारी दुविधा साफ होनी शुरू हो जाएगी। 3. अगर आप किसी सवाल का जवाब ढूंढना चाहते हैं आप किसी दुविधा में है तो सोने से पहले उस दुविधा के बारे में सोच कर सोए आपको कुछ दिनों में अपनी दुविधा का जवाब खुद ब खुद मिल जाएगा। 4. अगर आप सामने वाले व्यक्ति के बारे में जानना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने बारे में कुछ थोड़ा बताइए था कि आप सामने वाले व्यक्ति के इंटरेस्ट के बारे में जान सकें। 5. अगर आप नीले रंग के कपड़े पहनकर अपने कॉलेज या फिर अपने ऑफिस में जाते हैं तो आप पर लोग ज्यादा विश्वास करेंगे। 6. कुछ चीज में पाया गया है कि रात को देर में सोने वाले व्यक्ति अक्सर जल्दी सोने वाले व्यक्ति से ज्याद...