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कौन बनता है भूत प्रेत?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰〰🌼〰〰🌼〰〰जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में अटका आत्मा भूत बन जाता है। जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है। जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है।आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं। जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं। भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि कहा जाता है।भूतों के प्रकार〰〰〰〰हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है। इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है।84 लाख योनियां〰〰〰〰〰पशुयोनि, पक्षीयोनि, मनुष्य योनि में जीवन यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चले जाते हैं। आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 लाख योनियां है, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं। प्रेतयोनि में जाने वाले लोग अदृश्य और बलवान हो जाते हैं। लेकिन सभी मरने वाले इसी योनि में नहीं जाते और सभी मरने वाले अदृश्य तो होते हैं लेकिन बलवान नहीं होते। यह आत्मा के कर्म और गति पर निर्भर करता है। बहुत से भूत या प्रेत योनि में न जाकर पुन: गर्भधारण कर मानव बन जाते हैं। पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों का तर्पण करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि पितरों का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत-प्रेत के रूप में होता है। गरुड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीमद्‍भागवत पुराण में भी धुंधकारी के प्रेत बन जाने का वर्णन आता है।अतृप्त आत्माएं बनती है भूत〰〰〰〰〰〰〰〰〰जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है। और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है वह भी भू‍त बनकर भटकता है। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं।यम नाम की वायु〰〰〰〰〰वेद अनुसार मृत्युकाल में 'यम' नामक वायु में कुछ काल तक आत्मा स्थिर रहने के बाद पुन: गर्भधारण करती है। जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है तब वह गहरी सुषुप्ति अवस्था में होती है। जन्म से पूर्व भी वह इसी अवस्था में ही रहती है। जो आत्मा ज्यादा स्मृतिवान या ध्यानी है उसे ही अपने मरने का ज्ञान होता है और वही भूत बनती है।जन्म मरण का चक्र〰〰〰〰〰〰जिस तरह सुषुप्ति से स्वप्न और स्वप्न से आत्मा जाग्रति में जाती हैं उसी तरह मृत्युकाल में वह जाग्रति से स्वप्न और स्वप्न से सु‍षुप्ति में चली जाती हैं फिर सुषुप्ति से गहन सुषुप्ति में। यह चक्र चलता रहता है।भूत की भावना〰〰〰〰〰भूतों को खाने की इच्छा अधिक रहती है। इन्हें प्यास भी अधिक लगती है, लेकिन तृप्ति नहीं मिल पाती है। ये बहुत दुखी और चिड़चिड़ा होते हैं। यह हर समय इस बात की खोज करते रहते हैं कि कोई मुक्ति देने वाला मिले। ये कभी घर में तो कभी जंगल में भटकते रहते हैं।भूत की स्थिति〰〰〰〰ज्यादा शोर, उजाला और मंत्र उच्चारण से यह दूर रहते हैं। इसीलिए इन्हें कृष्ण पक्ष ज्यादा पसंद है और तेरस, चौदस तथा अमावस्या को यह मजबूत स्थिति में रहकर सक्रिय रहते हैं। भूत-प्रेत प्रायः उन स्थानों में दृष्टिगत होते हैं जिन स्थानों से मृतक का अपने जीवनकाल में संबंध रहा है या जो एकांत में स्थित है। बहुत दिनों से खाली पड़े घर या बंगले में भी भूतों का वास हो जाता है।भूत की ताकत〰〰〰〰भूत अदृश्य होते हैं। भूत-प्रेतों के शरीर धुंधलके तथा वायु से बने होते हैं अर्थात् वे शरीर-विहीन होते हैं। इसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। आयुर्वेद अनुसार यह 17 तत्वों से बना होता है। कुछ भूत अपने इस शरीर की ताकत को समझ कर उसका इस्तेमाल करना जानते हैं तो कुछ नहीं। कुछ भूतों में स्पर्श करने की ताकत होती है तो कुछ में नहीं। जो भूत स्पर्श करने की ताकत रखता है वह बड़े से बड़े पेड़ों को भी उखाड़ कर फेंक सकता है। ऐसे भूत यदि बुरे हैं तो खतरनाक होते हैं। यह किसी भी देहधारी (व्यक्ति) को अपने होने का अहसास करा देते हैं। इस तरह के भूतों की मानसिक शक्ति इतनी बलशाली होती है कि यह किसी भी व्यक्ति का दिमाग पलट कर उससे अच्छा या बुरा कार्य करा सकते हैं। यह भी कि यह किसी भी व्यक्ति के शरीर का इस्तेमाल करना भी जानते हैं। ठोसपन न होने के कारण ही भूत को यदि गोली, तलवार, लाठी आदि मारी जाए तो उस पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता। भूत में सुख-दुःख अनुभव करने की क्षमता अवश्य होती है। क्योंकि उनके वाह्यकरण में वायु तथा आकाश और अंतःकरण में मन, बुद्धि और चित्त संज्ञाशून्य होती है इसलिए वह केवल सुख-दुःख का ही अनुभव कर सकते हैं।अच्‍छी और बुरी आत्मा〰〰〰〰〰〰〰वासना के अच्छे और बुरे भाव के कारण मृतात्माओं को भी अच्छा और बुरा माना गया है। जहां अच्छी मृतात्माओं का वास होता है उसे पितृलोक तथा बुरी आत्मा का वास होता है उसे प्रेतलोक आदि कहते हैं। अच्छे और बुरे स्वभाव की आत्माएं ऐसे लोगों को तलाश करती है जो उनकी वासनाओं की पूर्ति कर सकता है। बुरी आत्माएं उन लोगों को तलाश करती हैं जो कुकर्मी, अधर्मी, वासनामय जीवन जीने वाले लोग हैं। फिर वह आत्माएं उन लोगों के गुण-कर्म, स्वभाव के अनुसार अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती है। जिस मानसिकता, प्रवृत्ति, कुकर्म, सत्कर्मों आदि के लोग होते हैं उसी के अनुरूप आत्मा उनमें प्रवेश करती है। अधिकांशतः लोगों को इसका पता नहीं चल पाता। अच्छी आत्माएं अच्छे कर्म करने वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे भी तृप्त करती है और बुरी आत्माएं बुरे कर्म वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे बुराई के लिए और प्रेरित करती है। इसीलिए धर्म अनुसार अच्छे कर्म के अलावा धार्मिकता और ईश्वर भक्ति होना जरूरी है तभी आप दोनों ही प्रकार की आत्मा से बचे रहेंगे।कौन बनता है भूत का शिकार〰〰〰〰〰〰〰〰〰धर्म के नियम अनुसार जो लोग तिथि और पवित्रता को नहीं मानते हैं, जो ईश्वर, देवता और गुरु का अपमान करते हैं और जो पाप कर्म में ही सदा रत रहते हैं ऐसे लोग आसानी से भूतों के चंगुल में आ सकते हैं। इनमें से कुछ लोगों को पता ही नहीं चल पाता है कि हम पर शासन करने वाला कोई भूत है। जिन लोगों की मानसिक शक्ति बहुत कमजोर होती है उन पर ये भूत सीधे-सीधे शासन करते हैं। बाल वनिता महिला आश्रमजो लोग रात्रि के कर्म और अनुष्ठान करते हैं और जो निशाचारी हैं वह आसानी से भूतों के शिकार बन जाते हैं। हिन्दू धर्म अनुसार किसी भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात्रि में नहीं किया जाता। रात्रि के कर्म करने वाले भूत, पिशाच, राक्षस और प्रेतयोनि के होते हैं।〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

कौन बनता है भूत प्रेत?
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब
〰〰🌼〰〰🌼〰〰
जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में अटका आत्मा भूत बन जाता है। जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है। जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है।

आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं। जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं। 

भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि कहा जाता है।

भूतों के प्रकार
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हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है। 

इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है।

84 लाख योनियां
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पशुयोनि, पक्षीयोनि, मनुष्य योनि में जीवन यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चले जाते हैं। आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 लाख योनियां है, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं। 

प्रेतयोनि में जाने वाले लोग अदृश्य और बलवान हो जाते हैं। लेकिन सभी मरने वाले इसी योनि में नहीं जाते और सभी मरने वाले अदृश्य तो होते हैं लेकिन बलवान नहीं होते। यह आत्मा के कर्म और गति पर निर्भर करता है। बहुत से भूत या प्रेत योनि में न जाकर पुन: गर्भधारण कर मानव बन जाते हैं। 

पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों का तर्पण करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि पितरों का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत-प्रेत के रूप में होता है। गरुड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीमद्‍भागवत पुराण में भी धुंधकारी के प्रेत बन जाने का वर्णन आता है।

अतृप्त आत्माएं बनती है भूत
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जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है। और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है वह भी भू‍त बनकर भटकता है। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं।

यम नाम की वायु
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वेद अनुसार मृत्युकाल में 'यम' नामक वायु में कुछ काल तक आत्मा स्थिर रहने के बाद पुन: गर्भधारण करती है। जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है तब वह गहरी सुषुप्ति अवस्था में होती है। जन्म से पूर्व भी वह इसी अवस्था में ही रहती है। जो आत्मा ज्यादा स्मृतिवान या ध्यानी है उसे ही अपने मरने का ज्ञान होता है और वही भूत बनती है।

जन्म मरण का चक्र
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जिस तरह सुषुप्ति से स्वप्न और स्वप्न से आत्मा जाग्रति में जाती हैं उसी तरह मृत्युकाल में वह जाग्रति से स्वप्न और स्वप्न से सु‍षुप्ति में चली जाती हैं फिर सुषुप्ति से गहन सुषुप्ति में। यह चक्र चलता रहता है।

भूत की भावना
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भूतों को खाने की इच्छा अधिक रहती है। इन्हें प्यास भी अधिक लगती है, लेकिन तृप्ति नहीं मिल पाती है। ये बहुत दुखी और चिड़चिड़ा होते हैं। यह हर समय इस बात की खोज करते रहते हैं कि कोई मुक्ति देने वाला मिले। ये कभी घर में तो कभी जंगल में भटकते रहते हैं।

भूत की स्थिति
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ज्यादा शोर, उजाला और मंत्र उच्चारण से यह दूर रहते हैं। इसीलिए इन्हें कृष्ण पक्ष ज्यादा पसंद है और तेरस, चौदस तथा अमावस्या को यह मजबूत स्थिति में रहकर सक्रिय रहते हैं। भूत-प्रेत प्रायः उन स्थानों में दृष्टिगत होते हैं जिन स्थानों से मृतक का अपने जीवनकाल में संबंध रहा है या जो एकांत में स्थित है। बहुत दिनों से खाली पड़े घर या बंगले में भी भूतों का वास हो जाता है।

भूत की ताकत
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भूत अदृश्य होते हैं। भूत-प्रेतों के शरीर धुंधलके तथा वायु से बने होते हैं अर्थात् वे शरीर-विहीन होते हैं। इसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। आयुर्वेद अनुसार यह 17 तत्वों से बना होता है। कुछ भूत अपने इस शरीर की ताकत को समझ कर उसका इस्तेमाल करना जानते हैं तो कुछ नहीं। 

कुछ भूतों में स्पर्श करने की ताकत होती है तो कुछ में नहीं। जो भूत स्पर्श करने की ताकत रखता है वह बड़े से बड़े पेड़ों को भी उखाड़ कर फेंक सकता है। ऐसे भूत यदि बुरे हैं तो खतरनाक होते हैं। यह किसी भी देहधारी (व्यक्ति) को अपने होने का अहसास करा देते हैं। 

इस तरह के भूतों की मानसिक शक्ति इतनी बलशाली होती है कि यह किसी भी व्यक्ति का दिमाग पलट कर उससे अच्छा या बुरा कार्य करा सकते हैं। यह भी कि यह किसी भी व्यक्ति के शरीर का इस्तेमाल करना भी जानते हैं। 

ठोसपन न होने के कारण ही भूत को यदि गोली, तलवार, लाठी आदि मारी जाए तो उस पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता। भूत में सुख-दुःख अनुभव करने की क्षमता अवश्य होती है। क्योंकि उनके वाह्यकरण में वायु तथा आकाश और अंतःकरण में मन, बुद्धि और चित्त संज्ञाशून्य होती है इसलिए वह केवल सुख-दुःख का ही अनुभव कर सकते हैं।

अच्‍छी और बुरी आत्मा
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वासना के अच्छे और बुरे भाव के कारण मृतात्माओं को भी अच्छा और बुरा माना गया है। जहां अच्छी मृतात्माओं का वास होता है उसे पितृलोक तथा बुरी आत्मा का वास होता है उसे प्रेतलोक आदि कहते हैं। 

अच्छे और बुरे स्वभाव की आत्माएं ऐसे लोगों को तलाश करती है जो उनकी वासनाओं की पूर्ति कर सकता है। बुरी आत्माएं उन लोगों को तलाश करती हैं जो कुकर्मी, अधर्मी, वासनामय जीवन जीने वाले लोग हैं। फिर वह आत्माएं उन लोगों के गुण-कर्म, स्वभाव के अनुसार अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती है। 

जिस मानसिकता, प्रवृत्ति, कुकर्म, सत्कर्मों आदि के लोग होते हैं उसी के अनुरूप आत्मा उनमें प्रवेश करती है। अधिकांशतः लोगों को इसका पता नहीं चल पाता। अच्छी आत्माएं अच्छे कर्म करने वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे भी तृप्त करती है और बुरी आत्माएं बुरे कर्म वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे बुराई के लिए और प्रेरित करती है। इसीलिए धर्म अनुसार अच्छे कर्म के अलावा धार्मिकता और ईश्वर भक्ति होना जरूरी है तभी आप दोनों ही प्रकार की आत्मा से बचे रहेंगे।

कौन बनता है भूत का शिकार
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धर्म के नियम अनुसार जो लोग तिथि और पवित्रता को नहीं मानते हैं, जो ईश्वर, देवता और गुरु का अपमान करते हैं और जो पाप कर्म में ही सदा रत रहते हैं ऐसे लोग आसानी से भूतों के चंगुल में आ सकते हैं। 

इनमें से कुछ लोगों को पता ही नहीं चल पाता है कि हम पर शासन करने वाला कोई भूत है। जिन लोगों की मानसिक शक्ति बहुत कमजोर होती है उन पर ये भूत सीधे-सीधे शासन करते हैं। 

जो लोग रात्रि के कर्म और अनुष्ठान करते हैं और जो निशाचारी हैं वह आसानी से भूतों के शिकार बन जाते हैं। हिन्दू धर्म अनुसार किसी भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात्रि में नहीं किया जाता। रात्रि के कर्म करने वाले भूत, पिशाच, राक्षस और प्रेतयोनि के होते हैं।
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*बुरी नज़र उतारने के ज्योतिषीय उपाय-*By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️यदि किसी घर को नज़र लग जाए तो उस घर में क्लेश पैदा हो जाता है। घर में चोरी-चकारी की घटना होती है और उस घर में अशांति का माहौल बना रहता है। घर के सदस्य किसी न किसी रोग से पीड़ित होने लगते हैं। उस घर में दरिद्रता आने लगती है।यदि काम-धंधे को नज़र लग जाए तो व्यापार ठप होने लगता है। बिज़नेस में उसे लाभ की बजाय हानि होती है।यदि किसी व्यक्ति को नज़र लग जाए तो वह रोगी अथवा किसी बुरी संगति में फंस जाता है जिससे समाज में उसकी प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है अथवा उसके बने बनाए काम बिगड़ जाते हैं।यदि किसी शिशु को नज़र लग जाए तो वह बीमार पड़ जाता है अथवा वह बिना बात के ज़ोर-ज़ोर से रोता है।नज़र उतारने के ज्योतिषीय उपाय-〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ज्योतिष के अनुसार यदि किसी जातक की कुंडली में लग्नेश और चंद्रमा राहु से पीड़ित हों तो आपको नज़र दोष का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा जन्मकुंडली में नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो। इस स्थिति में उस जातक को किसी की बुरी नज़र लग सकती है। अतः कुंडली में राहु ग्रह के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए उपाय करने चाहिए। इसके अलावा सूर्य को क्रूर ग्रह माना जाता है। इसलिए सूर्य के उपाय भी ज़रुरी है। इसमें आपके लिए शनि ग्रह के उपाय भी ज़रुरी है। जैसे -👉 बुधवार के दिन सप्त धान्य (सात प्रकार के अनाज) का दान करें।👉 बुधवार के दिन नागरमोथा की जड़ धारण करें।👉 राहु यंत्र की स्थापना कर उसी पूजा करें।👉 नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।बुरी नज़र उतारने के उपाय-〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️निम्न टोटकों को अपनाकर भी आप अपने व्यापार में बढ़ोत्तरी ला सकते हैंः👉 पंचमुखी का हनुमान जी का लॉकेट धारण करें।👉 हनुमान चालीसा एवं बजरंग बाण का नित्य जापा करें।👉 हनुमान जी के मंदिर जाकर उसके कंधों का सिंदूर माथे पर लगाएँ।👉 यदि कोई व्यक्ति बुरी नज़र से प्रभावित है तो उसे भैरो बाबा के मंदिर से मिलने वाला काला धागा धारण करना चाहिए। इससे उप पर लगी बुरी नज़र उतर जाएगी।👉 यदि बार-बार धन हानि हो रही है तो लाल कपड़े में दो कौड़ियां बांधकर तिजोरी में रख दे।👉 एक रोटी बनाएं और उसे केवल एक तरफ़ से ही सेंकें। अब सिके हुए भाग पर तेल लगाकर उसमें लाल मिर्च एवं नमक दो डेली रखें। अब नज़र दोष से पीड़ित व्यक्ति के ऊपर सात बार इसे फिराकर चुपचाप से इसे किसी चौराह पर रखें।बच्चों की नजर उतारने के उपाय〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️👉 बच्चों की बुरी नजर उतारने के उपाय हेतूु बचपन में हमारी दादी, नानी या माँ के द्वारा सूखी लाल मिर्च, फिटकरी, मुठ्ठी भर नमक या फिर नीम की टहनी आदि के टोटके से हमारी नज़र उतारी गई होगी। नज़र उतारने के दादी मां के घरेलू नुस्खे होते हैं। इसके अलावा जानते हैं अन्य टोटके।👉 पीली कौड़ी में छेद करके उसे बच्चे को पहनाना चाहिए।👉 बच्चों को मोती चांद का लॉकेट पहनाएं या काले-सफेद मोती जड़ित नज़रबंद का ब्रेसलेट पहनाएं।👉 यदि बच्चा दूध पीने में आनाकानी कर रहा है तो उसके ऊपर से दूध को उसारकर कुत्ते को पिला दें।👉यदि आप किसी को शक़ है कि बच्चे को उसी की नज़र लगी है तो उसका हाथ बच्चे के ऊपर फिरवाएं।दो लाल सूखी मिर्च, थोड़ा सेंधा नमक, थोड़े सरसो के बीज लें। इसके बाद बच्चे के उपर से नीचे, आगे और पीछे तीन बार घुमाए अब एक गर्म पर यह सब डाल दें। धुआं उठने के बाद कुछ ही देर में बुरी नजर उतर जाएगी।बाल वनिता महिला आश्रम〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️नोट; अधिक जानकारी अथवा कुंडली विश्लेषण के लिए मैसेंजर पर संपर्क करें।धन्यवाद#बाल_वनिता_महिला_आश्रम.

*बुरी नज़र उतारने के ज्योतिषीय उपाय-* By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ यदि किसी घर को नज़र लग जाए तो उस घर में क्लेश पैदा हो जाता है। घर में चोरी-चकारी की घटना होती है और उस घर में अशांति का माहौल बना रहता है। घर के सदस्य किसी न किसी रोग से पीड़ित होने लगते हैं। उस घर में दरिद्रता आने लगती है। यदि काम-धंधे को नज़र लग जाए तो व्यापार ठप होने लगता है। बिज़नेस में उसे लाभ की बजाय हानि होती है। यदि किसी व्यक्ति को नज़र लग जाए तो वह रोगी अथवा किसी बुरी संगति में फंस जाता है जिससे समाज में उसकी प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है अथवा उसके बने बनाए काम बिगड़ जाते हैं। यदि किसी शिशु को नज़र लग जाए तो वह बीमार पड़ जाता है अथवा वह बिना बात के ज़ोर-ज़ोर से रोता है। नज़र उतारने के ज्योतिषीय उपाय- 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ज्योतिष के अनुसार यदि किसी जातक की कुंडली में लग्नेश और चंद्रमा राहु से पीड़ित हों तो आपको नज़र दोष का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा जन्मकुंडली में नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो। इस स्थिति में उस जातक को किसी की बुरी नज़र ...

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अपनी जन्म कुंडली से मालदार होने के लक्षण कैसे जाने ? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब श्रीमान जी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मालदार या संपन्नता के लिए लक्षण जन्म कुंडली मे विद्यमान ग्रहो के संयोजन से जाना जा सकता है कुछ योग जिनके जन्म कुंडली मे होने पर व्यक्ति अवश्य मालदार या धनी होगा जो इस प्रकार से हैं - ● जन्म कुंडली मे द्वितीय व एकादश भाव के स्वामी एक दूसरे के भाव मे विद्यमान हो अथवा दोनो एक साथ किसी भी केंद्र ( प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम)अथवा त्रिकोण स्थान ( पंचम, नवम) मे स्थित होने पर जातक अवश्य ही मालदार होगा । ● यदि धन भाव का स्वामी पंचम मे हो तो जातक मालदार होगा यदि धनेश होकर गुरु पंचम भाव मे विद्यमान हो तो विशेष फल एवं शीघ्र प्रभावकारी योग बनता है । ● यदि द्वितीय व चतुर्थ भाव के स्वामी नवम भाव मे हो तथा लग्नेश उच्च राशि का होकर एकादश भाव मे विद्यमान हो तथा नवम भाव का स्वामी भी बली होकर द्वितीय भाव मे स्थित हो तो जातक अत्यन्त मालदार एवं धनी होगा । ● जन्म कुंडली मे द्वितीय भाव मे चन्द्र, गुरु ,शुक्र हो तथा नवम के स्वामी की तीनो पर द्रष्टि हो तो जातक आवश्यक रूप से मालदार होगा । ● क...

कुंडली

*अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳* *क्रमांक =०४* *🚩आइए जानते हैं सनातन धर्म में 16 संस्कार को🙏🏻*   By वनिता कासनियां पंजाब *👉🏻जो माता बहन परिवार नियोजन (family planning)  कर रहे हैं ये वो ज़रूर पढ़ें👇🏻* *1.* गर्भाधान संस्कार,  *2.* पुंसवन संस्कार.  *3.* सीमन्तोन्नयन संस्कार,  *4.* जातकर्म संस्कार,  *5.* नामकरण संस्कार,  *6.* निष्क्रमण संस्कार,  *7.* अन्नप्राशन संस्कार,  *8.* चूड़ाकर्म संस्कार,  *9.* विद्यारम्भ संस्कार,  *10.* कर्णवेध संस्कार,  *11.* यज्ञोपवीत संस्कार,  *12.* वेदारम्भ संस्कार,  *13.* केशान्त संस्कार,  *14.* समावर्तन संस्कार,  *15.* विवाह संस्कार,  *16.* अंत्येष्टि संस्कार। *🚩🤰🏻गर्भाधान संस्कार :* गर्भाधान संस्कार के माध्यम से हिन्दू धर्म सन्देश देता है कि स्त्री-पुरुष संबंध पशुवत न होकर केवल वंशवृद्धि के लिए होना चाहिए। मानसिक और शारीरिक  रूप से स्वस्थ होने, मन प्रसन्न होने पर गर्भधारण करने से संतति स्वस्थ और बुद्धिमान होती है। *🚩पुंसवन संस्कार :* गर्भ धारण के तीन माह बाद गर्भ में...