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कुंडली द्वारा फलित कथन करते समय कुछ सामान्य नियमों की जानकारी होना भी आवश्यक है। उन्हीं के आधार पर ग्रहों के बलाबल का निर्णय लेकर सटीक कथन (फलादेश) किया जा सकता है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब- जो ग्रह शत्रु क्षेत्री, पापी अथवा अस्त हो, वे अशुभ फल प्रदान करते हैं। यदि पापी ग्रह स्वराशि के हों, उच्च हों या योगकारक ग्रह से संबंध करते हों, तो अशुभ नहीं होते।- जो भाव न तो किसी ग्रह द्वारा देखा जा रहा हो, न ही उसमें कोई ग्रह बैठा हो तो उस भाव का फल मध्यम मिलता है।- शुभ भावों के स्वामी ग्रह यदि मित्र क्षेत्री स्वग्रही, मूल त्रिकोणी या उच्च के हों तो भावों की वृद्धि करते हैं ।- जो भाव अपने स्वामी से युक्त अथवा दृष्ट होता है, उसकी वृद्धि होती है।- जो भाव किसी पापी ग्रह से युक्त या दृष्ट हो (6, 8, 12 को छोड़) उसकी हानि होती है।- कोई ग्रह कुंडली में उच्च का हो, मगर नवांश में नीच या पापी हो, तो वह लग्नेश होने पर भी शुभ फल नहीं देता ।- केंद्र व त्रिकोण के स्वामी शुभ होते हैं। इनका परस्परसंबंध योगकारक होता है। इनके संपर्क में आया अन्य ग्रह भी शुभफल प्रदान करता है।- यदि भावेश लग्न से केंद्र, त्रिकोण या लाभ में हो तो शुभ होता है।- यदि दुष्ट स्थान (6, 8, 12) का अधिपति ग्रह दूसरे दुष्ट स्थान में हो, तो शुभ फल देता है । कुंडली द्वारा फलित कथन करते समय कुछ सामान्य नियमों की जानकारी होना भी आवश्यक है। उन्हीं के आधार पर ग्रहों के बलाबल का निर्णय लेकर सटीक कथन (फलादेश) किया जा सकता है। 👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻किस व्यक्ति का भाग्योदय कब, कहाँ और कैसे होगा यह कोई नहीं जानता। एक मामूली व्यक्ति भी निम्न स्थान से उठकर उच्च स्थान पर पहुंच जाता है। इन का कारण उसके मजबूत ग्रह है। कभी-कभी किसी को थोड़े समय के लिए लाभ एवं प्रगति होती है। कुछ लम्बे समय तक सुख भोगते हैं। इसे हम विवेचन द्वारा समझ सकते हैं।जातक की कुंडली में उसके जन्म लग्न तथा चन्द्र लग्न में एक या दो ग्रह अवश्य कारक होता है। कारक का अर्थ केवल शुभ ग्रह ही नहीं, बल्कि क्रूर ग्रह भी हो सकते हैं। जैसे कर्क लग्न में मंगल एवं बृषभ लग्न में शनि जैसे ग्रहों को भी हम कारक कह सकते हैं, क्योंकि यह जहाँ भी बैठेगे वहीं शुभ फल प्रदान करेंगे। इसकी दशा भी अच्छी जाती है। अतः कुंडली में कारक ग्रह की शुभ स्थिति जातक को अपनी दश में अक्सर उपर उठा देती है। चाहें वह ग्रह नीचे के ही क्यों न हो। हाँ, अपवाद में ऐसे वक्री ग्रह कभी-कभी प्रगति में व्यवधान देते हैं।यदि कुंडली में किसी कारक ग्रहों की स्थिति शुभ हो तो गोचर वश अपने भ्रमण के दौरान यह ग्रह जिन-जिन राशियों से गुजरेगा, वहाँ-वहाँ शुभ फल प्रदान करेगा। जैसे कर्क लग्न में मंगल और कुंभ लग्न में शुक्र ग्रह कारक है। यह ग्रह गोचर में भ्रमण के दौरान कुंडली में जिन-जिन राशियों से गुजरेगा, वहीं लाभ एवं प्रगति देता जायेगा। यदि यह ग्रह स्वग्रही या उच्च के या किसी शुभ स्थान में बैठे हो तो अवश्य गोचर भ्रमण के दौरान उस भाव संबंधी फल में लाभ देता रहेगा। चन्द्र, बुध, शुक्र, सूर्य, मंगल जैसे ग्रह अधिक समय तक किसी राशि में नहीं बैठते, अतः वह भाव संबंधी विशेष फल कुछ समय के लिए ही प्राप्त होता है।यहाँ एक बात बहुत महत्वपूर्ण है। कुंडली के कारक ग्रह गोचर वश जब-जब शुभ भाव से गुजरेगे तो शुभ फल प्रदान करते हैं। इसी प्रकार अशुभ भाव (3.6.8.12) से जब भी भ्रमण के दौरान पारित होगे तो उस भाव संबंधी फल में असर करेगे। यदि कारक की स्थिति शुभ न हो, वक्री हों या अकारक दशा चल रही हो तो तृतिये में परेशानी, षष्ठ भाव में शत्रु तथा रोग भय, द्वादश में खर्च एं झंझट होती है। कई बार कुंडली का कारक ग्रह बहुत अधिक या कम अंश का हो तो भी कई बार निष्फल हो जाता है।कुंडली में अकारक ग्रह की दशा अच्छी नहीं जाती। गोचर भ्रमण के दौरान यह शुभ भावों से गुजरते वख्त अशुभ तथा परेशानी वाला फल देता है। परन्तु यही ग्रह गोचर भ्रमण में यदि त्रिक स्थानों (3,6, 8, 12) से गुजरे तो बूरा फल नहीं मिलता इस विषय में अनुसंधान एवं अनुभव की आवश्यकता है।अब भाग्योदय का एक और पहलू को देखे दशम भी कर्म भाव है। इस भाव में यदि कोई ग्रह उच्च का स्वग्रही या शुभ अवस्था में कोई ग्रह बैठा हो तो उसकी दशा अच्छी जाती है। दशमेश यदि उच्च का होकर एकादश लग्न या द्वितीय भाव में बैठे तो भी दशा अच्छी जाती है। दशम भाव चूंकि कर्म संबंधी भाव है। अतः इसकी दशा में व्यक्ति कार्य करके प्रगति करता है। परन्तु इसके लिए दशम या दशमेश पाप प्रभाव में न हो, यह देखना चाहिए ।सप्तम स्थान पत्नी भवन है। इसके साथ-साथ यह एक गुप्त स्थान भी है। एक अदृष्य और रहस्यमय शक्ति को अन्दर में छुपाया हुआ स्थान है। सप्तम भाव का संबंध जब दशम भाव से किसी भी प्रकार से हो तो राजयोग प्रदान करता है। यह संबंध युति प्रतियुति या दृष्टि संबंधी कहं भी किसी भी भाव में हो सकता है। ठीक इसी तरह सप्तम भाव का संबंध यदि लग्न से किसी भी प्रकार से हो तो भी उसकी दशा अन्तर्दशा में राजयोग प्राप्त होता है।उदाहरण स्वरूप हम इंन्दिरा गांधी की कुंडली की कुंडली को ले सकते हैं। इनका कर्क लग्न है। लग्नेश चन्द्रमा सप्तम भाव में बैठा है और सप्तम भाव का स्वामी शनि लग्न में बैठा है। इस तरह दोनों ग्रह (चन्द्र और शनि) एक दूसरे के घर में बैठ कर एक दूसरे को देख भी रहे है। शनि की महादशा भी इनकी कुछ वर्षों से चल रही है। अतः यह राजयोग प्रदान करती है। ऐसे अनेको उदाहरण सप्तम और लग्न से सम्बन्धित मिल सकते है। सप्तम तथा दशम का सम्बंध भी राजयोग वाली कुण्डलियों में मिलेगें ।परन्तु सप्तम स्थान का सम्बन्ध यदि चतुर्थ से हो। यह सम्बन्ध युति प्रति युति या दृष्टि सम्बन्ध भी हो सकता है। तब वह अच्छा नहीं। बूरा फल प्राप्त होता है। विशेष कर उसकी दशा में व्यक्ति को बदनामी तथा अपयश मिलता है। बदनामी का कारण कोई भी स्त्री पक्ष हो सकता है। इसी प्रकार सप्तम का सम्बन्ध द्वादश भाव के साथ भी ठीक नहीं।अब हम ग्रहों से सम्बन्धित भाग्योदय वर्ष पर ध्यान दे। हर ग्रह की अपनी विशेषता होती है। प्रत्येक कुण्डली में कोई एक यह आवश्य कारक या आलकारक होता है। उसी प्रकार कोई एक ग्रह आलकारक हो, भाग्येश हो, लग्नेश हो या कर्मेश हो उसी ग्रह के अनुरूप वह कार्य करता है। जैसे सूर्य ग्रह 22 वर्ष की उम्र में भाग्योदय देता है। उसी प्रकार अन्य ग्रहों में चन्द्रमा 24 वर्ष की उम्र में शुक्र 25 वर्ष, शुरू 18 वर्ष, बुध 32, मंगल 28, शनि 36 वर्ष, राहु 42 वर्ष तथा केतु 48 वर्ष में भाग्योदय देता है। भाग्योदय वर्ष से सम्बंधित ग्रह की यदि दशा भी चल रही हो तो शुभ फल प्राप्त होता है। परन्तु इसके लिए यह आवश्यक है कि सम्बंधित ग्रह किसी पाप ग्रह से पीड़ित न हो तथा शुभ स्थान में बैठा हो ।जैसे चन्द्रमा किसी शुभ कारक या उच्च ग्रह के साथ या अकेले ही दशम भाव में बैठा हो तो उस व्यक्ति को 24 वर्ष की उम्र में कोई कर्म (चन्द्रमा से सम्बंधित) लाभ होता है। ऐसे में यदि चन्द्रमा की महादशा भी चल रही हो तो बहुत शुभ फल मिलता है परन्तु यहाँ दो शर्त भी है। प्रथम तो चन्द्रमा किसी पाप ग्रह से पीड़ित न हो। दूसरा चन्द्रमा उस लग्न कुंडली में अकारक ग्रह न हो। इसकी दशम भाव में स्थिति भी अपने घर से तृतिये, षष्ठ, अष्ठम तथा द्वादश की न हो। तब ही यह शुभ फल देगा।इसी प्रकार यदि नवम भाव में राहु हो तो 42 वर्ष की उम्र में भाग्योदय होगा अर्थात उस समय कुछ विशेष आर्थिक लाभ होता है। एक कुंडली (बृश्चिक लग्न) में नवम स्थान में शुरू उच्च का होकर बैठा है। नवम भाव का स्वामी मंगल लग्न में बैठा है। इस जातक को 19 वर्ष की उम्र से शुरू की महादशा शुरू हुई। गुरू वक्री है। गुरु 18 वर्ष में भाग्योदय देता है। अतः वह व्यक्ति अधिक पढ़ा लिखा न होते हुए भी 18 वर्ष की उम्र से कमाने लगा। इसका शुरू चूंकि वक्री है अतः 19 वर्ष में जब शुरू की दशा शुरू हुई तो उस धंधे में भी इसने बहुत रूपये कमाये। उस समय गोचर में शुरू की स्थिति भी शुभ थी। यदि इस जातक का शुरू वक्री न होता तो यह गलत ढंग से आर्थिक प्रगति न करता बल्कि अच्छे ढंग आगे बढ़ते ।बाल वनिता महिला आश्रम -----*****----

कुंडली द्वारा फलित कथन करते समय कुछ सामान्य नियमों की जानकारी होना भी आवश्यक है। उन्हीं के आधार पर ग्रहों के बलाबल का निर्णय लेकर सटीक कथन (फलादेश) किया जा सकता है।
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब

- जो ग्रह शत्रु क्षेत्री, पापी अथवा अस्त हो, वे अशुभ फल प्रदान करते हैं। यदि पापी ग्रह स्वराशि के हों, उच्च हों या योगकारक ग्रह से संबंध करते हों, तो अशुभ नहीं होते।
- जो भाव न तो किसी ग्रह द्वारा देखा जा रहा हो, न ही उसमें कोई ग्रह बैठा हो तो उस भाव का फल मध्यम मिलता है।
- शुभ भावों के स्वामी ग्रह यदि मित्र क्षेत्री स्वग्रही, मूल त्रिकोणी या उच्च के हों तो भावों की वृद्धि करते हैं ।

- जो भाव अपने स्वामी से युक्त अथवा दृष्ट होता है, उसकी वृद्धि होती है।
- जो भाव किसी पापी ग्रह से युक्त या दृष्ट हो (6, 8, 12 को छोड़) उसकी हानि होती है।
- कोई ग्रह कुंडली में उच्च का हो, मगर नवांश में नीच या पापी हो, तो वह लग्नेश होने पर भी शुभ फल नहीं देता ।

- केंद्र व त्रिकोण के स्वामी शुभ होते हैं। इनका परस्परसंबंध योगकारक होता है। इनके संपर्क में आया अन्य ग्रह भी शुभफल प्रदान करता है।
- यदि भावेश लग्न से केंद्र, त्रिकोण या लाभ में हो तो शुभ होता है।
- यदि दुष्ट स्थान (6, 8, 12) का अधिपति ग्रह दूसरे दुष्ट स्थान में हो, तो शुभ फल देता है ।
  कुंडली द्वारा फलित कथन करते समय कुछ सामान्य नियमों की जानकारी होना भी आवश्यक है। उन्हीं के आधार पर ग्रहों के बलाबल का निर्णय लेकर सटीक कथन (फलादेश) किया जा सकता है।   
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किस व्यक्ति का भाग्योदय कब, कहाँ और कैसे होगा यह कोई नहीं जानता। एक मामूली व्यक्ति भी निम्न स्थान से उठकर उच्च स्थान पर पहुंच जाता है। इन का कारण उसके मजबूत ग्रह है। कभी-कभी किसी को थोड़े समय के लिए लाभ एवं प्रगति होती है। कुछ लम्बे समय तक सुख भोगते हैं। इसे हम विवेचन द्वारा समझ सकते हैं।

जातक की कुंडली में उसके जन्म लग्न तथा चन्द्र लग्न में एक या दो ग्रह अवश्य कारक होता है। कारक का अर्थ केवल शुभ ग्रह ही नहीं, बल्कि क्रूर ग्रह भी हो सकते हैं। जैसे कर्क लग्न में मंगल एवं बृषभ लग्न में शनि जैसे ग्रहों को भी हम कारक कह सकते हैं, क्योंकि यह जहाँ भी बैठेगे वहीं शुभ फल प्रदान करेंगे। इसकी दशा भी अच्छी जाती है। अतः कुंडली में कारक ग्रह की शुभ स्थिति जातक को अपनी दश में अक्सर उपर उठा देती है। चाहें वह ग्रह नीचे के ही क्यों न हो। हाँ, अपवाद में ऐसे वक्री ग्रह कभी-कभी प्रगति में व्यवधान देते हैं।

यदि कुंडली में किसी कारक ग्रहों की स्थिति शुभ हो तो गोचर वश अपने भ्रमण के दौरान यह ग्रह जिन-जिन राशियों से गुजरेगा, वहाँ-वहाँ शुभ फल प्रदान करेगा। जैसे कर्क लग्न में मंगल और कुंभ लग्न में शुक्र ग्रह कारक है। यह ग्रह गोचर में भ्रमण के दौरान कुंडली में जिन-जिन राशियों से गुजरेगा, वहीं लाभ एवं प्रगति देता जायेगा। यदि यह ग्रह स्वग्रही या उच्च के या किसी शुभ स्थान में बैठे हो तो अवश्य गोचर भ्रमण के दौरान उस भाव संबंधी फल में लाभ देता रहेगा। चन्द्र, बुध, शुक्र, सूर्य, मंगल जैसे ग्रह अधिक समय तक किसी राशि में नहीं बैठते, अतः वह भाव संबंधी विशेष फल कुछ समय के लिए ही प्राप्त होता है।

यहाँ एक बात बहुत महत्वपूर्ण है। कुंडली के कारक ग्रह गोचर वश जब-जब शुभ भाव से गुजरेगे तो शुभ फल प्रदान करते हैं। इसी प्रकार अशुभ भाव (3.6.8.12) से जब भी भ्रमण के दौरान पारित होगे तो उस भाव संबंधी फल में असर करेगे। यदि कारक की स्थिति शुभ न हो, वक्री हों या अकारक दशा चल रही हो तो तृतिये में परेशानी, षष्ठ भाव में शत्रु तथा रोग भय, द्वादश में खर्च एं झंझट होती है। कई बार कुंडली का कारक ग्रह बहुत अधिक या कम अंश का हो तो भी कई बार निष्फल हो जाता है।

कुंडली में अकारक ग्रह की दशा अच्छी नहीं जाती। गोचर भ्रमण के दौरान यह शुभ भावों से गुजरते वख्त अशुभ तथा परेशानी वाला फल देता है। परन्तु यही ग्रह गोचर भ्रमण में यदि त्रिक स्थानों (3,6, 8, 12) से गुजरे तो बूरा फल नहीं मिलता इस विषय में अनुसंधान एवं अनुभव की आवश्यकता है।

अब भाग्योदय का एक और पहलू को देखे दशम भी कर्म भाव है। इस भाव में यदि कोई ग्रह उच्च का स्वग्रही या शुभ अवस्था में कोई ग्रह बैठा हो तो उसकी दशा अच्छी जाती है। दशमेश यदि उच्च का होकर एकादश लग्न या द्वितीय भाव में बैठे तो भी दशा अच्छी जाती है। दशम भाव चूंकि कर्म संबंधी भाव है। अतः इसकी दशा में व्यक्ति कार्य करके प्रगति करता है। परन्तु इसके लिए दशम या दशमेश पाप प्रभाव में न हो, यह देखना चाहिए ।

सप्तम स्थान पत्नी भवन है। इसके साथ-साथ यह एक गुप्त स्थान भी है। एक अदृष्य और रहस्यमय शक्ति को अन्दर में छुपाया हुआ स्थान है। सप्तम भाव का संबंध जब दशम भाव से किसी भी प्रकार से हो तो राजयोग प्रदान करता है। यह संबंध युति प्रतियुति या दृष्टि संबंधी कहं भी किसी भी भाव में हो सकता है। ठीक इसी तरह सप्तम भाव का संबंध यदि लग्न से किसी भी प्रकार से हो तो भी उसकी दशा अन्तर्दशा में राजयोग प्राप्त होता है।

उदाहरण स्वरूप हम इंन्दिरा गांधी की कुंडली की कुंडली को ले सकते हैं। इनका कर्क लग्न है। लग्नेश चन्द्रमा सप्तम भाव में बैठा है और सप्तम भाव का स्वामी शनि लग्न में बैठा है। इस तरह दोनों ग्रह (चन्द्र और शनि) एक दूसरे के घर में बैठ कर एक दूसरे को देख भी रहे है। शनि की महादशा भी इनकी कुछ वर्षों से चल रही है। अतः यह राजयोग प्रदान करती है। ऐसे अनेको उदाहरण सप्तम और लग्न से सम्बन्धित मिल सकते है। सप्तम तथा दशम का सम्बंध भी राजयोग वाली कुण्डलियों में मिलेगें ।

परन्तु सप्तम स्थान का सम्बन्ध यदि चतुर्थ से हो। यह सम्बन्ध युति प्रति युति या दृष्टि सम्बन्ध भी हो सकता है। तब वह अच्छा नहीं। बूरा फल प्राप्त होता है। विशेष कर उसकी दशा में व्यक्ति को बदनामी तथा अपयश मिलता है। बदनामी का कारण कोई भी स्त्री पक्ष हो सकता है। इसी प्रकार सप्तम का सम्बन्ध द्वादश भाव के साथ भी ठीक नहीं।

अब हम ग्रहों से सम्बन्धित भाग्योदय वर्ष पर ध्यान दे। हर ग्रह की अपनी विशेषता होती है। प्रत्येक कुण्डली में कोई एक यह आवश्य कारक या आलकारक होता है। उसी प्रकार कोई एक ग्रह आलकारक हो, भाग्येश हो, लग्नेश हो या कर्मेश हो उसी ग्रह के अनुरूप वह कार्य करता है। जैसे सूर्य ग्रह 22 वर्ष की उम्र में भाग्योदय देता है। उसी प्रकार अन्य ग्रहों में चन्द्रमा 24 वर्ष की उम्र में शुक्र 25 वर्ष, शुरू 18 वर्ष, बुध 32, मंगल 28, शनि 36 वर्ष, राहु 42 वर्ष तथा केतु 48 वर्ष में भाग्योदय देता है। भाग्योदय वर्ष से सम्बंधित ग्रह की यदि दशा भी चल रही हो तो शुभ फल प्राप्त होता है। परन्तु इसके लिए यह आवश्यक है कि सम्बंधित ग्रह किसी पाप ग्रह से पीड़ित न हो तथा शुभ स्थान में बैठा हो ।

जैसे चन्द्रमा किसी शुभ कारक या उच्च ग्रह के साथ या अकेले ही दशम भाव में बैठा हो तो उस व्यक्ति को 24 वर्ष की उम्र में कोई कर्म (चन्द्रमा से सम्बंधित) लाभ होता है। ऐसे में यदि चन्द्रमा की महादशा भी चल रही हो तो बहुत शुभ फल मिलता है परन्तु यहाँ दो शर्त भी है। प्रथम तो चन्द्रमा किसी पाप ग्रह से पीड़ित न हो। दूसरा चन्द्रमा उस लग्न कुंडली में अकारक ग्रह न हो। इसकी दशम भाव में स्थिति भी अपने घर से तृतिये, षष्ठ, अष्ठम तथा द्वादश की न हो। तब ही यह शुभ फल देगा।

इसी प्रकार यदि नवम भाव में राहु हो तो 42 वर्ष की उम्र में भाग्योदय होगा अर्थात उस समय कुछ विशेष आर्थिक लाभ होता है। एक कुंडली (बृश्चिक लग्न) में नवम स्थान में शुरू उच्च का होकर बैठा है। नवम भाव का स्वामी मंगल लग्न में बैठा है। इस जातक को 19 वर्ष की उम्र से शुरू की महादशा शुरू हुई। गुरू वक्री है। गुरु 18 वर्ष में भाग्योदय देता है। अतः वह व्यक्ति अधिक पढ़ा लिखा न होते हुए भी 18 वर्ष की उम्र से कमाने लगा। इसका शुरू चूंकि वक्री है अतः 19 वर्ष में जब शुरू की दशा शुरू हुई तो उस धंधे में भी इसने बहुत रूपये कमाये। उस समय गोचर में शुरू की स्थिति भी शुभ थी। यदि इस जातक का शुरू वक्री न होता तो यह गलत ढंग से आर्थिक प्रगति न करता बल्कि अच्छे ढंग आगे बढ़ते ।
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*बुरी नज़र उतारने के ज्योतिषीय उपाय-*By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️यदि किसी घर को नज़र लग जाए तो उस घर में क्लेश पैदा हो जाता है। घर में चोरी-चकारी की घटना होती है और उस घर में अशांति का माहौल बना रहता है। घर के सदस्य किसी न किसी रोग से पीड़ित होने लगते हैं। उस घर में दरिद्रता आने लगती है।यदि काम-धंधे को नज़र लग जाए तो व्यापार ठप होने लगता है। बिज़नेस में उसे लाभ की बजाय हानि होती है।यदि किसी व्यक्ति को नज़र लग जाए तो वह रोगी अथवा किसी बुरी संगति में फंस जाता है जिससे समाज में उसकी प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है अथवा उसके बने बनाए काम बिगड़ जाते हैं।यदि किसी शिशु को नज़र लग जाए तो वह बीमार पड़ जाता है अथवा वह बिना बात के ज़ोर-ज़ोर से रोता है।नज़र उतारने के ज्योतिषीय उपाय-〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ज्योतिष के अनुसार यदि किसी जातक की कुंडली में लग्नेश और चंद्रमा राहु से पीड़ित हों तो आपको नज़र दोष का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा जन्मकुंडली में नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो। इस स्थिति में उस जातक को किसी की बुरी नज़र लग सकती है। अतः कुंडली में राहु ग्रह के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए उपाय करने चाहिए। इसके अलावा सूर्य को क्रूर ग्रह माना जाता है। इसलिए सूर्य के उपाय भी ज़रुरी है। इसमें आपके लिए शनि ग्रह के उपाय भी ज़रुरी है। जैसे -👉 बुधवार के दिन सप्त धान्य (सात प्रकार के अनाज) का दान करें।👉 बुधवार के दिन नागरमोथा की जड़ धारण करें।👉 राहु यंत्र की स्थापना कर उसी पूजा करें।👉 नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।बुरी नज़र उतारने के उपाय-〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️निम्न टोटकों को अपनाकर भी आप अपने व्यापार में बढ़ोत्तरी ला सकते हैंः👉 पंचमुखी का हनुमान जी का लॉकेट धारण करें।👉 हनुमान चालीसा एवं बजरंग बाण का नित्य जापा करें।👉 हनुमान जी के मंदिर जाकर उसके कंधों का सिंदूर माथे पर लगाएँ।👉 यदि कोई व्यक्ति बुरी नज़र से प्रभावित है तो उसे भैरो बाबा के मंदिर से मिलने वाला काला धागा धारण करना चाहिए। इससे उप पर लगी बुरी नज़र उतर जाएगी।👉 यदि बार-बार धन हानि हो रही है तो लाल कपड़े में दो कौड़ियां बांधकर तिजोरी में रख दे।👉 एक रोटी बनाएं और उसे केवल एक तरफ़ से ही सेंकें। अब सिके हुए भाग पर तेल लगाकर उसमें लाल मिर्च एवं नमक दो डेली रखें। अब नज़र दोष से पीड़ित व्यक्ति के ऊपर सात बार इसे फिराकर चुपचाप से इसे किसी चौराह पर रखें।बच्चों की नजर उतारने के उपाय〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️👉 बच्चों की बुरी नजर उतारने के उपाय हेतूु बचपन में हमारी दादी, नानी या माँ के द्वारा सूखी लाल मिर्च, फिटकरी, मुठ्ठी भर नमक या फिर नीम की टहनी आदि के टोटके से हमारी नज़र उतारी गई होगी। नज़र उतारने के दादी मां के घरेलू नुस्खे होते हैं। इसके अलावा जानते हैं अन्य टोटके।👉 पीली कौड़ी में छेद करके उसे बच्चे को पहनाना चाहिए।👉 बच्चों को मोती चांद का लॉकेट पहनाएं या काले-सफेद मोती जड़ित नज़रबंद का ब्रेसलेट पहनाएं।👉 यदि बच्चा दूध पीने में आनाकानी कर रहा है तो उसके ऊपर से दूध को उसारकर कुत्ते को पिला दें।👉यदि आप किसी को शक़ है कि बच्चे को उसी की नज़र लगी है तो उसका हाथ बच्चे के ऊपर फिरवाएं।दो लाल सूखी मिर्च, थोड़ा सेंधा नमक, थोड़े सरसो के बीज लें। इसके बाद बच्चे के उपर से नीचे, आगे और पीछे तीन बार घुमाए अब एक गर्म पर यह सब डाल दें। धुआं उठने के बाद कुछ ही देर में बुरी नजर उतर जाएगी।बाल वनिता महिला आश्रम〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️नोट; अधिक जानकारी अथवा कुंडली विश्लेषण के लिए मैसेंजर पर संपर्क करें।धन्यवाद#बाल_वनिता_महिला_आश्रम.

*बुरी नज़र उतारने के ज्योतिषीय उपाय-* By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ यदि किसी घर को नज़र लग जाए तो उस घर में क्लेश पैदा हो जाता है। घर में चोरी-चकारी की घटना होती है और उस घर में अशांति का माहौल बना रहता है। घर के सदस्य किसी न किसी रोग से पीड़ित होने लगते हैं। उस घर में दरिद्रता आने लगती है। यदि काम-धंधे को नज़र लग जाए तो व्यापार ठप होने लगता है। बिज़नेस में उसे लाभ की बजाय हानि होती है। यदि किसी व्यक्ति को नज़र लग जाए तो वह रोगी अथवा किसी बुरी संगति में फंस जाता है जिससे समाज में उसकी प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है अथवा उसके बने बनाए काम बिगड़ जाते हैं। यदि किसी शिशु को नज़र लग जाए तो वह बीमार पड़ जाता है अथवा वह बिना बात के ज़ोर-ज़ोर से रोता है। नज़र उतारने के ज्योतिषीय उपाय- 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ज्योतिष के अनुसार यदि किसी जातक की कुंडली में लग्नेश और चंद्रमा राहु से पीड़ित हों तो आपको नज़र दोष का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा जन्मकुंडली में नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो। इस स्थिति में उस जातक को किसी की बुरी नज़र ...

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अपनी जन्म कुंडली से मालदार होने के लक्षण कैसे जाने ? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब श्रीमान जी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मालदार या संपन्नता के लिए लक्षण जन्म कुंडली मे विद्यमान ग्रहो के संयोजन से जाना जा सकता है कुछ योग जिनके जन्म कुंडली मे होने पर व्यक्ति अवश्य मालदार या धनी होगा जो इस प्रकार से हैं - ● जन्म कुंडली मे द्वितीय व एकादश भाव के स्वामी एक दूसरे के भाव मे विद्यमान हो अथवा दोनो एक साथ किसी भी केंद्र ( प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम)अथवा त्रिकोण स्थान ( पंचम, नवम) मे स्थित होने पर जातक अवश्य ही मालदार होगा । ● यदि धन भाव का स्वामी पंचम मे हो तो जातक मालदार होगा यदि धनेश होकर गुरु पंचम भाव मे विद्यमान हो तो विशेष फल एवं शीघ्र प्रभावकारी योग बनता है । ● यदि द्वितीय व चतुर्थ भाव के स्वामी नवम भाव मे हो तथा लग्नेश उच्च राशि का होकर एकादश भाव मे विद्यमान हो तथा नवम भाव का स्वामी भी बली होकर द्वितीय भाव मे स्थित हो तो जातक अत्यन्त मालदार एवं धनी होगा । ● जन्म कुंडली मे द्वितीय भाव मे चन्द्र, गुरु ,शुक्र हो तथा नवम के स्वामी की तीनो पर द्रष्टि हो तो जातक आवश्यक रूप से मालदार होगा । ● क...

कुंडली

*अखण्ड सनातन समिति🚩🇮🇳* *क्रमांक =०४* *🚩आइए जानते हैं सनातन धर्म में 16 संस्कार को🙏🏻*   By वनिता कासनियां पंजाब *👉🏻जो माता बहन परिवार नियोजन (family planning)  कर रहे हैं ये वो ज़रूर पढ़ें👇🏻* *1.* गर्भाधान संस्कार,  *2.* पुंसवन संस्कार.  *3.* सीमन्तोन्नयन संस्कार,  *4.* जातकर्म संस्कार,  *5.* नामकरण संस्कार,  *6.* निष्क्रमण संस्कार,  *7.* अन्नप्राशन संस्कार,  *8.* चूड़ाकर्म संस्कार,  *9.* विद्यारम्भ संस्कार,  *10.* कर्णवेध संस्कार,  *11.* यज्ञोपवीत संस्कार,  *12.* वेदारम्भ संस्कार,  *13.* केशान्त संस्कार,  *14.* समावर्तन संस्कार,  *15.* विवाह संस्कार,  *16.* अंत्येष्टि संस्कार। *🚩🤰🏻गर्भाधान संस्कार :* गर्भाधान संस्कार के माध्यम से हिन्दू धर्म सन्देश देता है कि स्त्री-पुरुष संबंध पशुवत न होकर केवल वंशवृद्धि के लिए होना चाहिए। मानसिक और शारीरिक  रूप से स्वस्थ होने, मन प्रसन्न होने पर गर्भधारण करने से संतति स्वस्थ और बुद्धिमान होती है। *🚩पुंसवन संस्कार :* गर्भ धारण के तीन माह बाद गर्भ में...