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कुंडली द्वारा फलित कथन करते समय कुछ सामान्य नियमों की जानकारी होना भी आवश्यक है। उन्हीं के आधार पर ग्रहों के बलाबल का निर्णय लेकर सटीक कथन (फलादेश) किया जा सकता है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब- जो ग्रह शत्रु क्षेत्री, पापी अथवा अस्त हो, वे अशुभ फल प्रदान करते हैं। यदि पापी ग्रह स्वराशि के हों, उच्च हों या योगकारक ग्रह से संबंध करते हों, तो अशुभ नहीं होते।- जो भाव न तो किसी ग्रह द्वारा देखा जा रहा हो, न ही उसमें कोई ग्रह बैठा हो तो उस भाव का फल मध्यम मिलता है।- शुभ भावों के स्वामी ग्रह यदि मित्र क्षेत्री स्वग्रही, मूल त्रिकोणी या उच्च के हों तो भावों की वृद्धि करते हैं ।- जो भाव अपने स्वामी से युक्त अथवा दृष्ट होता है, उसकी वृद्धि होती है।- जो भाव किसी पापी ग्रह से युक्त या दृष्ट हो (6, 8, 12 को छोड़) उसकी हानि होती है।- कोई ग्रह कुंडली में उच्च का हो, मगर नवांश में नीच या पापी हो, तो वह लग्नेश होने पर भी शुभ फल नहीं देता ।- केंद्र व त्रिकोण के स्वामी शुभ होते हैं। इनका परस्परसंबंध योगकारक होता है। इनके संपर्क में आया अन्य ग्रह भी शुभफल प्रदान करता है।- यदि भावेश लग्न से केंद्र, त्रिकोण या लाभ में हो तो शुभ होता है।- यदि दुष्ट स्थान (6, 8, 12) का अधिपति ग्रह दूसरे दुष्ट स्थान में हो, तो शुभ फल देता है । कुंडली द्वारा फलित कथन करते समय कुछ सामान्य नियमों की जानकारी होना भी आवश्यक है। उन्हीं के आधार पर ग्रहों के बलाबल का निर्णय लेकर सटीक कथन (फलादेश) किया जा सकता है। 👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻किस व्यक्ति का भाग्योदय कब, कहाँ और कैसे होगा यह कोई नहीं जानता। एक मामूली व्यक्ति भी निम्न स्थान से उठकर उच्च स्थान पर पहुंच जाता है। इन का कारण उसके मजबूत ग्रह है। कभी-कभी किसी को थोड़े समय के लिए लाभ एवं प्रगति होती है। कुछ लम्बे समय तक सुख भोगते हैं। इसे हम विवेचन द्वारा समझ सकते हैं।जातक की कुंडली में उसके जन्म लग्न तथा चन्द्र लग्न में एक या दो ग्रह अवश्य कारक होता है। कारक का अर्थ केवल शुभ ग्रह ही नहीं, बल्कि क्रूर ग्रह भी हो सकते हैं। जैसे कर्क लग्न में मंगल एवं बृषभ लग्न में शनि जैसे ग्रहों को भी हम कारक कह सकते हैं, क्योंकि यह जहाँ भी बैठेगे वहीं शुभ फल प्रदान करेंगे। इसकी दशा भी अच्छी जाती है। अतः कुंडली में कारक ग्रह की शुभ स्थिति जातक को अपनी दश में अक्सर उपर उठा देती है। चाहें वह ग्रह नीचे के ही क्यों न हो। हाँ, अपवाद में ऐसे वक्री ग्रह कभी-कभी प्रगति में व्यवधान देते हैं।यदि कुंडली में किसी कारक ग्रहों की स्थिति शुभ हो तो गोचर वश अपने भ्रमण के दौरान यह ग्रह जिन-जिन राशियों से गुजरेगा, वहाँ-वहाँ शुभ फल प्रदान करेगा। जैसे कर्क लग्न में मंगल और कुंभ लग्न में शुक्र ग्रह कारक है। यह ग्रह गोचर में भ्रमण के दौरान कुंडली में जिन-जिन राशियों से गुजरेगा, वहीं लाभ एवं प्रगति देता जायेगा। यदि यह ग्रह स्वग्रही या उच्च के या किसी शुभ स्थान में बैठे हो तो अवश्य गोचर भ्रमण के दौरान उस भाव संबंधी फल में लाभ देता रहेगा। चन्द्र, बुध, शुक्र, सूर्य, मंगल जैसे ग्रह अधिक समय तक किसी राशि में नहीं बैठते, अतः वह भाव संबंधी विशेष फल कुछ समय के लिए ही प्राप्त होता है।यहाँ एक बात बहुत महत्वपूर्ण है। कुंडली के कारक ग्रह गोचर वश जब-जब शुभ भाव से गुजरेगे तो शुभ फल प्रदान करते हैं। इसी प्रकार अशुभ भाव (3.6.8.12) से जब भी भ्रमण के दौरान पारित होगे तो उस भाव संबंधी फल में असर करेगे। यदि कारक की स्थिति शुभ न हो, वक्री हों या अकारक दशा चल रही हो तो तृतिये में परेशानी, षष्ठ भाव में शत्रु तथा रोग भय, द्वादश में खर्च एं झंझट होती है। कई बार कुंडली का कारक ग्रह बहुत अधिक या कम अंश का हो तो भी कई बार निष्फल हो जाता है।कुंडली में अकारक ग्रह की दशा अच्छी नहीं जाती। गोचर भ्रमण के दौरान यह शुभ भावों से गुजरते वख्त अशुभ तथा परेशानी वाला फल देता है। परन्तु यही ग्रह गोचर भ्रमण में यदि त्रिक स्थानों (3,6, 8, 12) से गुजरे तो बूरा फल नहीं मिलता इस विषय में अनुसंधान एवं अनुभव की आवश्यकता है।अब भाग्योदय का एक और पहलू को देखे दशम भी कर्म भाव है। इस भाव में यदि कोई ग्रह उच्च का स्वग्रही या शुभ अवस्था में कोई ग्रह बैठा हो तो उसकी दशा अच्छी जाती है। दशमेश यदि उच्च का होकर एकादश लग्न या द्वितीय भाव में बैठे तो भी दशा अच्छी जाती है। दशम भाव चूंकि कर्म संबंधी भाव है। अतः इसकी दशा में व्यक्ति कार्य करके प्रगति करता है। परन्तु इसके लिए दशम या दशमेश पाप प्रभाव में न हो, यह देखना चाहिए ।सप्तम स्थान पत्नी भवन है। इसके साथ-साथ यह एक गुप्त स्थान भी है। एक अदृष्य और रहस्यमय शक्ति को अन्दर में छुपाया हुआ स्थान है। सप्तम भाव का संबंध जब दशम भाव से किसी भी प्रकार से हो तो राजयोग प्रदान करता है। यह संबंध युति प्रतियुति या दृष्टि संबंधी कहं भी किसी भी भाव में हो सकता है। ठीक इसी तरह सप्तम भाव का संबंध यदि लग्न से किसी भी प्रकार से हो तो भी उसकी दशा अन्तर्दशा में राजयोग प्राप्त होता है।उदाहरण स्वरूप हम इंन्दिरा गांधी की कुंडली की कुंडली को ले सकते हैं। इनका कर्क लग्न है। लग्नेश चन्द्रमा सप्तम भाव में बैठा है और सप्तम भाव का स्वामी शनि लग्न में बैठा है। इस तरह दोनों ग्रह (चन्द्र और शनि) एक दूसरे के घर में बैठ कर एक दूसरे को देख भी रहे है। शनि की महादशा भी इनकी कुछ वर्षों से चल रही है। अतः यह राजयोग प्रदान करती है। ऐसे अनेको उदाहरण सप्तम और लग्न से सम्बन्धित मिल सकते है। सप्तम तथा दशम का सम्बंध भी राजयोग वाली कुण्डलियों में मिलेगें ।परन्तु सप्तम स्थान का सम्बन्ध यदि चतुर्थ से हो। यह सम्बन्ध युति प्रति युति या दृष्टि सम्बन्ध भी हो सकता है। तब वह अच्छा नहीं। बूरा फल प्राप्त होता है। विशेष कर उसकी दशा में व्यक्ति को बदनामी तथा अपयश मिलता है। बदनामी का कारण कोई भी स्त्री पक्ष हो सकता है। इसी प्रकार सप्तम का सम्बन्ध द्वादश भाव के साथ भी ठीक नहीं।अब हम ग्रहों से सम्बन्धित भाग्योदय वर्ष पर ध्यान दे। हर ग्रह की अपनी विशेषता होती है। प्रत्येक कुण्डली में कोई एक यह आवश्य कारक या आलकारक होता है। उसी प्रकार कोई एक ग्रह आलकारक हो, भाग्येश हो, लग्नेश हो या कर्मेश हो उसी ग्रह के अनुरूप वह कार्य करता है। जैसे सूर्य ग्रह 22 वर्ष की उम्र में भाग्योदय देता है। उसी प्रकार अन्य ग्रहों में चन्द्रमा 24 वर्ष की उम्र में शुक्र 25 वर्ष, शुरू 18 वर्ष, बुध 32, मंगल 28, शनि 36 वर्ष, राहु 42 वर्ष तथा केतु 48 वर्ष में भाग्योदय देता है। भाग्योदय वर्ष से सम्बंधित ग्रह की यदि दशा भी चल रही हो तो शुभ फल प्राप्त होता है। परन्तु इसके लिए यह आवश्यक है कि सम्बंधित ग्रह किसी पाप ग्रह से पीड़ित न हो तथा शुभ स्थान में बैठा हो ।जैसे चन्द्रमा किसी शुभ कारक या उच्च ग्रह के साथ या अकेले ही दशम भाव में बैठा हो तो उस व्यक्ति को 24 वर्ष की उम्र में कोई कर्म (चन्द्रमा से सम्बंधित) लाभ होता है। ऐसे में यदि चन्द्रमा की महादशा भी चल रही हो तो बहुत शुभ फल मिलता है परन्तु यहाँ दो शर्त भी है। प्रथम तो चन्द्रमा किसी पाप ग्रह से पीड़ित न हो। दूसरा चन्द्रमा उस लग्न कुंडली में अकारक ग्रह न हो। इसकी दशम भाव में स्थिति भी अपने घर से तृतिये, षष्ठ, अष्ठम तथा द्वादश की न हो। तब ही यह शुभ फल देगा।इसी प्रकार यदि नवम भाव में राहु हो तो 42 वर्ष की उम्र में भाग्योदय होगा अर्थात उस समय कुछ विशेष आर्थिक लाभ होता है। एक कुंडली (बृश्चिक लग्न) में नवम स्थान में शुरू उच्च का होकर बैठा है। नवम भाव का स्वामी मंगल लग्न में बैठा है। इस जातक को 19 वर्ष की उम्र से शुरू की महादशा शुरू हुई। गुरू वक्री है। गुरु 18 वर्ष में भाग्योदय देता है। अतः वह व्यक्ति अधिक पढ़ा लिखा न होते हुए भी 18 वर्ष की उम्र से कमाने लगा। इसका शुरू चूंकि वक्री है अतः 19 वर्ष में जब शुरू की दशा शुरू हुई तो उस धंधे में भी इसने बहुत रूपये कमाये। उस समय गोचर में शुरू की स्थिति भी शुभ थी। यदि इस जातक का शुरू वक्री न होता तो यह गलत ढंग से आर्थिक प्रगति न करता बल्कि अच्छे ढंग आगे बढ़ते ।बाल वनिता महिला आश्रम -----*****----

कुंडली द्वारा फलित कथन करते समय कुछ सामान्य नियमों की जानकारी होना भी आवश्यक है। उन्हीं के आधार पर ग्रहों के बलाबल का निर्णय लेकर सटीक कथन (फलादेश) किया जा सकता है।
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब

- जो ग्रह शत्रु क्षेत्री, पापी अथवा अस्त हो, वे अशुभ फल प्रदान करते हैं। यदि पापी ग्रह स्वराशि के हों, उच्च हों या योगकारक ग्रह से संबंध करते हों, तो अशुभ नहीं होते।
- जो भाव न तो किसी ग्रह द्वारा देखा जा रहा हो, न ही उसमें कोई ग्रह बैठा हो तो उस भाव का फल मध्यम मिलता है।
- शुभ भावों के स्वामी ग्रह यदि मित्र क्षेत्री स्वग्रही, मूल त्रिकोणी या उच्च के हों तो भावों की वृद्धि करते हैं ।

- जो भाव अपने स्वामी से युक्त अथवा दृष्ट होता है, उसकी वृद्धि होती है।
- जो भाव किसी पापी ग्रह से युक्त या दृष्ट हो (6, 8, 12 को छोड़) उसकी हानि होती है।
- कोई ग्रह कुंडली में उच्च का हो, मगर नवांश में नीच या पापी हो, तो वह लग्नेश होने पर भी शुभ फल नहीं देता ।

- केंद्र व त्रिकोण के स्वामी शुभ होते हैं। इनका परस्परसंबंध योगकारक होता है। इनके संपर्क में आया अन्य ग्रह भी शुभफल प्रदान करता है।
- यदि भावेश लग्न से केंद्र, त्रिकोण या लाभ में हो तो शुभ होता है।
- यदि दुष्ट स्थान (6, 8, 12) का अधिपति ग्रह दूसरे दुष्ट स्थान में हो, तो शुभ फल देता है ।
  कुंडली द्वारा फलित कथन करते समय कुछ सामान्य नियमों की जानकारी होना भी आवश्यक है। उन्हीं के आधार पर ग्रहों के बलाबल का निर्णय लेकर सटीक कथन (फलादेश) किया जा सकता है।   
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किस व्यक्ति का भाग्योदय कब, कहाँ और कैसे होगा यह कोई नहीं जानता। एक मामूली व्यक्ति भी निम्न स्थान से उठकर उच्च स्थान पर पहुंच जाता है। इन का कारण उसके मजबूत ग्रह है। कभी-कभी किसी को थोड़े समय के लिए लाभ एवं प्रगति होती है। कुछ लम्बे समय तक सुख भोगते हैं। इसे हम विवेचन द्वारा समझ सकते हैं।

जातक की कुंडली में उसके जन्म लग्न तथा चन्द्र लग्न में एक या दो ग्रह अवश्य कारक होता है। कारक का अर्थ केवल शुभ ग्रह ही नहीं, बल्कि क्रूर ग्रह भी हो सकते हैं। जैसे कर्क लग्न में मंगल एवं बृषभ लग्न में शनि जैसे ग्रहों को भी हम कारक कह सकते हैं, क्योंकि यह जहाँ भी बैठेगे वहीं शुभ फल प्रदान करेंगे। इसकी दशा भी अच्छी जाती है। अतः कुंडली में कारक ग्रह की शुभ स्थिति जातक को अपनी दश में अक्सर उपर उठा देती है। चाहें वह ग्रह नीचे के ही क्यों न हो। हाँ, अपवाद में ऐसे वक्री ग्रह कभी-कभी प्रगति में व्यवधान देते हैं।

यदि कुंडली में किसी कारक ग्रहों की स्थिति शुभ हो तो गोचर वश अपने भ्रमण के दौरान यह ग्रह जिन-जिन राशियों से गुजरेगा, वहाँ-वहाँ शुभ फल प्रदान करेगा। जैसे कर्क लग्न में मंगल और कुंभ लग्न में शुक्र ग्रह कारक है। यह ग्रह गोचर में भ्रमण के दौरान कुंडली में जिन-जिन राशियों से गुजरेगा, वहीं लाभ एवं प्रगति देता जायेगा। यदि यह ग्रह स्वग्रही या उच्च के या किसी शुभ स्थान में बैठे हो तो अवश्य गोचर भ्रमण के दौरान उस भाव संबंधी फल में लाभ देता रहेगा। चन्द्र, बुध, शुक्र, सूर्य, मंगल जैसे ग्रह अधिक समय तक किसी राशि में नहीं बैठते, अतः वह भाव संबंधी विशेष फल कुछ समय के लिए ही प्राप्त होता है।

यहाँ एक बात बहुत महत्वपूर्ण है। कुंडली के कारक ग्रह गोचर वश जब-जब शुभ भाव से गुजरेगे तो शुभ फल प्रदान करते हैं। इसी प्रकार अशुभ भाव (3.6.8.12) से जब भी भ्रमण के दौरान पारित होगे तो उस भाव संबंधी फल में असर करेगे। यदि कारक की स्थिति शुभ न हो, वक्री हों या अकारक दशा चल रही हो तो तृतिये में परेशानी, षष्ठ भाव में शत्रु तथा रोग भय, द्वादश में खर्च एं झंझट होती है। कई बार कुंडली का कारक ग्रह बहुत अधिक या कम अंश का हो तो भी कई बार निष्फल हो जाता है।

कुंडली में अकारक ग्रह की दशा अच्छी नहीं जाती। गोचर भ्रमण के दौरान यह शुभ भावों से गुजरते वख्त अशुभ तथा परेशानी वाला फल देता है। परन्तु यही ग्रह गोचर भ्रमण में यदि त्रिक स्थानों (3,6, 8, 12) से गुजरे तो बूरा फल नहीं मिलता इस विषय में अनुसंधान एवं अनुभव की आवश्यकता है।

अब भाग्योदय का एक और पहलू को देखे दशम भी कर्म भाव है। इस भाव में यदि कोई ग्रह उच्च का स्वग्रही या शुभ अवस्था में कोई ग्रह बैठा हो तो उसकी दशा अच्छी जाती है। दशमेश यदि उच्च का होकर एकादश लग्न या द्वितीय भाव में बैठे तो भी दशा अच्छी जाती है। दशम भाव चूंकि कर्म संबंधी भाव है। अतः इसकी दशा में व्यक्ति कार्य करके प्रगति करता है। परन्तु इसके लिए दशम या दशमेश पाप प्रभाव में न हो, यह देखना चाहिए ।

सप्तम स्थान पत्नी भवन है। इसके साथ-साथ यह एक गुप्त स्थान भी है। एक अदृष्य और रहस्यमय शक्ति को अन्दर में छुपाया हुआ स्थान है। सप्तम भाव का संबंध जब दशम भाव से किसी भी प्रकार से हो तो राजयोग प्रदान करता है। यह संबंध युति प्रतियुति या दृष्टि संबंधी कहं भी किसी भी भाव में हो सकता है। ठीक इसी तरह सप्तम भाव का संबंध यदि लग्न से किसी भी प्रकार से हो तो भी उसकी दशा अन्तर्दशा में राजयोग प्राप्त होता है।

उदाहरण स्वरूप हम इंन्दिरा गांधी की कुंडली की कुंडली को ले सकते हैं। इनका कर्क लग्न है। लग्नेश चन्द्रमा सप्तम भाव में बैठा है और सप्तम भाव का स्वामी शनि लग्न में बैठा है। इस तरह दोनों ग्रह (चन्द्र और शनि) एक दूसरे के घर में बैठ कर एक दूसरे को देख भी रहे है। शनि की महादशा भी इनकी कुछ वर्षों से चल रही है। अतः यह राजयोग प्रदान करती है। ऐसे अनेको उदाहरण सप्तम और लग्न से सम्बन्धित मिल सकते है। सप्तम तथा दशम का सम्बंध भी राजयोग वाली कुण्डलियों में मिलेगें ।

परन्तु सप्तम स्थान का सम्बन्ध यदि चतुर्थ से हो। यह सम्बन्ध युति प्रति युति या दृष्टि सम्बन्ध भी हो सकता है। तब वह अच्छा नहीं। बूरा फल प्राप्त होता है। विशेष कर उसकी दशा में व्यक्ति को बदनामी तथा अपयश मिलता है। बदनामी का कारण कोई भी स्त्री पक्ष हो सकता है। इसी प्रकार सप्तम का सम्बन्ध द्वादश भाव के साथ भी ठीक नहीं।

अब हम ग्रहों से सम्बन्धित भाग्योदय वर्ष पर ध्यान दे। हर ग्रह की अपनी विशेषता होती है। प्रत्येक कुण्डली में कोई एक यह आवश्य कारक या आलकारक होता है। उसी प्रकार कोई एक ग्रह आलकारक हो, भाग्येश हो, लग्नेश हो या कर्मेश हो उसी ग्रह के अनुरूप वह कार्य करता है। जैसे सूर्य ग्रह 22 वर्ष की उम्र में भाग्योदय देता है। उसी प्रकार अन्य ग्रहों में चन्द्रमा 24 वर्ष की उम्र में शुक्र 25 वर्ष, शुरू 18 वर्ष, बुध 32, मंगल 28, शनि 36 वर्ष, राहु 42 वर्ष तथा केतु 48 वर्ष में भाग्योदय देता है। भाग्योदय वर्ष से सम्बंधित ग्रह की यदि दशा भी चल रही हो तो शुभ फल प्राप्त होता है। परन्तु इसके लिए यह आवश्यक है कि सम्बंधित ग्रह किसी पाप ग्रह से पीड़ित न हो तथा शुभ स्थान में बैठा हो ।

जैसे चन्द्रमा किसी शुभ कारक या उच्च ग्रह के साथ या अकेले ही दशम भाव में बैठा हो तो उस व्यक्ति को 24 वर्ष की उम्र में कोई कर्म (चन्द्रमा से सम्बंधित) लाभ होता है। ऐसे में यदि चन्द्रमा की महादशा भी चल रही हो तो बहुत शुभ फल मिलता है परन्तु यहाँ दो शर्त भी है। प्रथम तो चन्द्रमा किसी पाप ग्रह से पीड़ित न हो। दूसरा चन्द्रमा उस लग्न कुंडली में अकारक ग्रह न हो। इसकी दशम भाव में स्थिति भी अपने घर से तृतिये, षष्ठ, अष्ठम तथा द्वादश की न हो। तब ही यह शुभ फल देगा।

इसी प्रकार यदि नवम भाव में राहु हो तो 42 वर्ष की उम्र में भाग्योदय होगा अर्थात उस समय कुछ विशेष आर्थिक लाभ होता है। एक कुंडली (बृश्चिक लग्न) में नवम स्थान में शुरू उच्च का होकर बैठा है। नवम भाव का स्वामी मंगल लग्न में बैठा है। इस जातक को 19 वर्ष की उम्र से शुरू की महादशा शुरू हुई। गुरू वक्री है। गुरु 18 वर्ष में भाग्योदय देता है। अतः वह व्यक्ति अधिक पढ़ा लिखा न होते हुए भी 18 वर्ष की उम्र से कमाने लगा। इसका शुरू चूंकि वक्री है अतः 19 वर्ष में जब शुरू की दशा शुरू हुई तो उस धंधे में भी इसने बहुत रूपये कमाये। उस समय गोचर में शुरू की स्थिति भी शुभ थी। यदि इस जातक का शुरू वक्री न होता तो यह गलत ढंग से आर्थिक प्रगति न करता बल्कि अच्छे ढंग आगे बढ़ते ।
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कौन बनता है भूत प्रेत?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰〰🌼〰〰🌼〰〰जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में अटका आत्मा भूत बन जाता है। जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है। जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है।आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं। जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं। भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि कहा जाता है।भूतों के प्रकार〰〰〰〰हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है। इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है।84 लाख योनियां〰〰〰〰〰पशुयोनि, पक्षीयोनि, मनुष्य योनि में जीवन यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चले जाते हैं। आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 लाख योनियां है, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं। प्रेतयोनि में जाने वाले लोग अदृश्य और बलवान हो जाते हैं। लेकिन सभी मरने वाले इसी योनि में नहीं जाते और सभी मरने वाले अदृश्य तो होते हैं लेकिन बलवान नहीं होते। यह आत्मा के कर्म और गति पर निर्भर करता है। बहुत से भूत या प्रेत योनि में न जाकर पुन: गर्भधारण कर मानव बन जाते हैं। पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों का तर्पण करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि पितरों का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत-प्रेत के रूप में होता है। गरुड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीमद्‍भागवत पुराण में भी धुंधकारी के प्रेत बन जाने का वर्णन आता है।अतृप्त आत्माएं बनती है भूत〰〰〰〰〰〰〰〰〰जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है। और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है वह भी भू‍त बनकर भटकता है। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं।यम नाम की वायु〰〰〰〰〰वेद अनुसार मृत्युकाल में 'यम' नामक वायु में कुछ काल तक आत्मा स्थिर रहने के बाद पुन: गर्भधारण करती है। जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है तब वह गहरी सुषुप्ति अवस्था में होती है। जन्म से पूर्व भी वह इसी अवस्था में ही रहती है। जो आत्मा ज्यादा स्मृतिवान या ध्यानी है उसे ही अपने मरने का ज्ञान होता है और वही भूत बनती है।जन्म मरण का चक्र〰〰〰〰〰〰जिस तरह सुषुप्ति से स्वप्न और स्वप्न से आत्मा जाग्रति में जाती हैं उसी तरह मृत्युकाल में वह जाग्रति से स्वप्न और स्वप्न से सु‍षुप्ति में चली जाती हैं फिर सुषुप्ति से गहन सुषुप्ति में। यह चक्र चलता रहता है।भूत की भावना〰〰〰〰〰भूतों को खाने की इच्छा अधिक रहती है। इन्हें प्यास भी अधिक लगती है, लेकिन तृप्ति नहीं मिल पाती है। ये बहुत दुखी और चिड़चिड़ा होते हैं। यह हर समय इस बात की खोज करते रहते हैं कि कोई मुक्ति देने वाला मिले। ये कभी घर में तो कभी जंगल में भटकते रहते हैं।भूत की स्थिति〰〰〰〰ज्यादा शोर, उजाला और मंत्र उच्चारण से यह दूर रहते हैं। इसीलिए इन्हें कृष्ण पक्ष ज्यादा पसंद है और तेरस, चौदस तथा अमावस्या को यह मजबूत स्थिति में रहकर सक्रिय रहते हैं। भूत-प्रेत प्रायः उन स्थानों में दृष्टिगत होते हैं जिन स्थानों से मृतक का अपने जीवनकाल में संबंध रहा है या जो एकांत में स्थित है। बहुत दिनों से खाली पड़े घर या बंगले में भी भूतों का वास हो जाता है।भूत की ताकत〰〰〰〰भूत अदृश्य होते हैं। भूत-प्रेतों के शरीर धुंधलके तथा वायु से बने होते हैं अर्थात् वे शरीर-विहीन होते हैं। इसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। आयुर्वेद अनुसार यह 17 तत्वों से बना होता है। कुछ भूत अपने इस शरीर की ताकत को समझ कर उसका इस्तेमाल करना जानते हैं तो कुछ नहीं। कुछ भूतों में स्पर्श करने की ताकत होती है तो कुछ में नहीं। जो भूत स्पर्श करने की ताकत रखता है वह बड़े से बड़े पेड़ों को भी उखाड़ कर फेंक सकता है। ऐसे भूत यदि बुरे हैं तो खतरनाक होते हैं। यह किसी भी देहधारी (व्यक्ति) को अपने होने का अहसास करा देते हैं। इस तरह के भूतों की मानसिक शक्ति इतनी बलशाली होती है कि यह किसी भी व्यक्ति का दिमाग पलट कर उससे अच्छा या बुरा कार्य करा सकते हैं। यह भी कि यह किसी भी व्यक्ति के शरीर का इस्तेमाल करना भी जानते हैं। ठोसपन न होने के कारण ही भूत को यदि गोली, तलवार, लाठी आदि मारी जाए तो उस पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता। भूत में सुख-दुःख अनुभव करने की क्षमता अवश्य होती है। क्योंकि उनके वाह्यकरण में वायु तथा आकाश और अंतःकरण में मन, बुद्धि और चित्त संज्ञाशून्य होती है इसलिए वह केवल सुख-दुःख का ही अनुभव कर सकते हैं।अच्‍छी और बुरी आत्मा〰〰〰〰〰〰〰वासना के अच्छे और बुरे भाव के कारण मृतात्माओं को भी अच्छा और बुरा माना गया है। जहां अच्छी मृतात्माओं का वास होता है उसे पितृलोक तथा बुरी आत्मा का वास होता है उसे प्रेतलोक आदि कहते हैं। अच्छे और बुरे स्वभाव की आत्माएं ऐसे लोगों को तलाश करती है जो उनकी वासनाओं की पूर्ति कर सकता है। बुरी आत्माएं उन लोगों को तलाश करती हैं जो कुकर्मी, अधर्मी, वासनामय जीवन जीने वाले लोग हैं। फिर वह आत्माएं उन लोगों के गुण-कर्म, स्वभाव के अनुसार अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती है। जिस मानसिकता, प्रवृत्ति, कुकर्म, सत्कर्मों आदि के लोग होते हैं उसी के अनुरूप आत्मा उनमें प्रवेश करती है। अधिकांशतः लोगों को इसका पता नहीं चल पाता। अच्छी आत्माएं अच्छे कर्म करने वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे भी तृप्त करती है और बुरी आत्माएं बुरे कर्म वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे बुराई के लिए और प्रेरित करती है। इसीलिए धर्म अनुसार अच्छे कर्म के अलावा धार्मिकता और ईश्वर भक्ति होना जरूरी है तभी आप दोनों ही प्रकार की आत्मा से बचे रहेंगे।कौन बनता है भूत का शिकार〰〰〰〰〰〰〰〰〰धर्म के नियम अनुसार जो लोग तिथि और पवित्रता को नहीं मानते हैं, जो ईश्वर, देवता और गुरु का अपमान करते हैं और जो पाप कर्म में ही सदा रत रहते हैं ऐसे लोग आसानी से भूतों के चंगुल में आ सकते हैं। इनमें से कुछ लोगों को पता ही नहीं चल पाता है कि हम पर शासन करने वाला कोई भूत है। जिन लोगों की मानसिक शक्ति बहुत कमजोर होती है उन पर ये भूत सीधे-सीधे शासन करते हैं। बाल वनिता महिला आश्रमजो लोग रात्रि के कर्म और अनुष्ठान करते हैं और जो निशाचारी हैं वह आसानी से भूतों के शिकार बन जाते हैं। हिन्दू धर्म अनुसार किसी भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात्रि में नहीं किया जाता। रात्रि के कर्म करने वाले भूत, पिशाच, राक्षस और प्रेतयोनि के होते हैं।〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

कौन बनता है भूत प्रेत? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰〰🌼〰〰🌼〰〰 जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में अटका आत्मा भूत बन जाता है। जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है। जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है। आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं। जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं।  भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि कहा जाता है। भूतों के प्रकार 〰〰〰〰 हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक...

मनो वैज्ञानिक तथ्य क्या हैं जो लोग नहीं जानते हैं? By वनिता कासनियां पंजाब नफरत करने वाले आपसे वास्तव में नफरत नहीं करते हैं, वास्तव में वे खुद से नफरत करते हैं क्योंकि आप जो चाहते हैं उसका प्रतिबिंब हैं।2. एक व्यक्ति दूसरे लोगों के बारे में आपसे कैसे बात करता है, इसे ध्यान से सुनना सुनिश्चित करें। इस तरह वे आपके बारे में दूसरे लोगों से बात करते हैं।3. हमें केवल दो करीबी दोस्त चाहिए जिन पर हम भरोसा कर सकें। बहुत सारे दोस्त अवसाद और तनाव से जुड़े हुए हैं।4. जो लोग ज्यादा मेलजोल नहीं करते वे असल में असामाजिक नहीं होते, उनमें ड्रामा और नकली लोगों को बर्दाश्त नहीं होता।5. अपनी समस्याओं को दूसरों को बताना बंद करें, 20% परवाह नहीं है और अन्य 80% खुश हैं कि आपके पास यह है।6. पढ़ाई के दौरान चॉकलेट खाने से मस्तिष्क को नई जानकारी बनाए रखने में मदद मिलती है और यह उच्च परीक्षण स्कोर से जुड़ा होता है।7. जिसे आप नापसंद करते हैं उसके साथ अच्छा होने का मतलब यह नहीं है कि आप नकली हैं, इसका आम तौर पर मतलब है कि आप उस व्यक्ति को सहन करने के लिए पर्याप्त परिपक्व हैं।8. किसी को अपने दिमाग से निकालना मुश्किल है, इसका कारण यह है कि वे आपके बारे में भी सोच रहे हैं।9. जो लोग कटाक्ष को अच्छी तरह समझते हैं वे अक्सर लोगों के मन को पढ़ने में अच्छे होते हैं।10. यदि आपका मन बार-बार भटकता है, तो 85% संभावना है कि आप अवचेतन रूप से अपने जीवन से नाखुश हैं।11. माता-पिता अपने बच्चों से जिस तरह से बात करते हैं, वह उनकी अंतरात्मा की आवाज बन जाती है।12. अपने नकारात्मक विचारों को लिखना और उन्हें कूड़ेदान में फेंक देना आपके मूड को बेहतर बना सकता है। (मैंने कोशिश की और यह वास्तव में काम करता है :)13. ध्यान मात्र 8 सप्ताह में मस्तिष्क की संरचना को बदल सकता है। यह सीखने से जुड़े मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में ग्रे मैटर को भी बढ़ाता है।मनोविज्ञान कहता है कि जो लोग अच्छी सामग्री लिखते हैं और अपने उत्तरों में स्क्रीनशॉट पोस्ट नहीं करते हैं, उन्हें कम व्यू और कम अपवोट मिलते हैं

मनो वैज्ञानिक तथ्य क्या हैं जो लोग नहीं जानते हैं? By वनिता कासनियां पंजाब नफरत करने वाले आपसे वास्तव में नफरत नहीं करते हैं, वास्तव में वे खुद से नफरत करते हैं क्योंकि आप जो चाहते हैं उसका प्रतिबिंब हैं। 2. एक व्यक्ति दूसरे लोगों के बारे में आपसे कैसे बात करता है, इसे ध्यान से सुनना सुनिश्चित करें। इस तरह वे आपके बारे में दूसरे लोगों से बात करते हैं। 3. हमें केवल दो करीबी दोस्त चाहिए जिन पर हम भरोसा कर सकें। बहुत सारे दोस्त अवसाद और तनाव से जुड़े हुए हैं। 4. जो लोग ज्यादा मेलजोल नहीं करते वे असल में असामाजिक नहीं होते, उनमें ड्रामा और नकली लोगों को बर्दाश्त नहीं होता। 5. अपनी समस्याओं को दूसरों को बताना बंद करें, 20% परवाह नहीं है और अन्य 80% खुश हैं कि आपके पास यह है। 6. पढ़ाई के दौरान चॉकलेट खाने से मस्तिष्क को नई जानकारी बनाए रखने में मदद मिलती है और यह उच्च परीक्षण स्कोर से जुड़ा होता है। 7. जिसे आप नापसंद करते हैं उसके साथ अच्छा होने का मतलब यह नहीं है कि आप नकली हैं, इसका आम तौर पर मतलब है कि आप उस व्यक्ति को सहन करने के लिए पर्याप्त परिपक्व हैं। 8. किसी को अपने दिमाग से निकालना...

मानव गजब के मनोवैज्ञानिक तथ्य कौन से हैं? By वनिता कासनियां पंजाब सबसे पहले जवाब दिया गया: गजब के साइक्लोजिकल तथ्य कौन से हैं? 1. अगर आप अपने आप को 1 हफ्ते के लिए पूरे समाज से अपने परिवार से अपने दोस्तों से दूर कर लेते हो अक्सर तो आप इस दुनिया के दो % बुद्धिमान लोगों में से एक व्यक्ति में से एक हैं।2. जब भी आपको दुविधा महसूस हो तो आप एक पेपर पर अपने विचारों को लिखना शुरू करते हैं। लिखते लिखते आपकी सारी की सारी दुविधा साफ होनी शुरू हो जाएगी।3. अगर आप किसी सवाल का जवाब ढूंढना चाहते हैं आप किसी दुविधा में है तो सोने से पहले उस दुविधा के बारे में सोच कर सोए आपको कुछ दिनों में अपनी दुविधा का जवाब खुद ब खुद मिल जाएगा।4. अगर आप सामने वाले व्यक्ति के बारे में जानना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने बारे में कुछ थोड़ा बताइए था कि आप सामने वाले व्यक्ति के इंटरेस्ट के बारे में जान सकें।5. अगर आप नीले रंग के कपड़े पहनकर अपने कॉलेज या फिर अपने ऑफिस में जाते हैं तो आप पर लोग ज्यादा विश्वास करेंगे।6. कुछ चीज में पाया गया है कि रात को देर में सोने वाले व्यक्ति अक्सर जल्दी सोने वाले व्यक्ति से ज्यादा दिमागदार होता है।7. अगर आप चाहते हैं कि कोई व्यक्ति आपसे प्यार करने लगे तो आप उस व्यक्ति का ज्यादा से ज्यादा टाइम लेने की कोशिश करें परंतु उस व्यक्ति से चिपके नहीं। ऐसा भी ना हो कि वह व्यक्ति आपके समय की कीमत ना करें।8. अगर आप किसी व्यक्ति से उसके दाहिने कान की तरफ बोल कर उससे मदद मांगेंगे तो संभावना ज्यादा है कि व्यक्ति आपकी मदद करेगा।मैं आशा करती हूं कि आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आ

मानव गजब के मनोवैज्ञानिक तथ्य कौन से हैं? By वनिता कासनियां पंजाब सबसे पहले जवाब दिया गया: गजब के साइक्लोजिकल तथ्य कौन से हैं? 1. अगर आप अपने आप को 1 हफ्ते के लिए पूरे समाज से अपने परिवार से अपने दोस्तों से दूर कर लेते हो अक्सर तो आप इस दुनिया के दो % बुद्धिमान लोगों में से एक व्यक्ति में से एक हैं। 2. जब भी आपको दुविधा महसूस हो तो आप एक पेपर पर अपने विचारों को लिखना शुरू करते हैं। लिखते लिखते आपकी सारी की सारी दुविधा साफ होनी शुरू हो जाएगी। 3. अगर आप किसी सवाल का जवाब ढूंढना चाहते हैं आप किसी दुविधा में है तो सोने से पहले उस दुविधा के बारे में सोच कर सोए आपको कुछ दिनों में अपनी दुविधा का जवाब खुद ब खुद मिल जाएगा। 4. अगर आप सामने वाले व्यक्ति के बारे में जानना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने बारे में कुछ थोड़ा बताइए था कि आप सामने वाले व्यक्ति के इंटरेस्ट के बारे में जान सकें। 5. अगर आप नीले रंग के कपड़े पहनकर अपने कॉलेज या फिर अपने ऑफिस में जाते हैं तो आप पर लोग ज्यादा विश्वास करेंगे। 6. कुछ चीज में पाया गया है कि रात को देर में सोने वाले व्यक्ति अक्सर जल्दी सोने वाले व्यक्ति से ज्याद...