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अपनी जन्म कुंडली से मालदार होने के लक्षण कैसे जाने ? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब श्रीमान जी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मालदार या संपन्नता के लिए लक्षण जन्म कुंडली मे विद्यमान ग्रहो के संयोजन से जाना जा सकता है कुछ योग जिनके जन्म कुंडली मे होने पर व्यक्ति अवश्य मालदार या धनी होगा जो इस प्रकार से हैं -● जन्म कुंडली मे द्वितीय व एकादश भाव के स्वामी एक दूसरे के भाव मे विद्यमान हो अथवा दोनो एक साथ किसी भी केंद्र ( प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम)अथवा त्रिकोण स्थान ( पंचम, नवम) मे स्थित होने पर जातक अवश्य ही मालदार होगा ।● यदि धन भाव का स्वामी पंचम मे हो तो जातक मालदार होगा यदि धनेश होकर गुरु पंचम भाव मे विद्यमान हो तो विशेष फल एवं शीघ्र प्रभावकारी योग बनता है ।● यदि द्वितीय व चतुर्थ भाव के स्वामी नवम भाव मे हो तथा लग्नेश उच्च राशि का होकर एकादश भाव मे विद्यमान हो तथा नवम भाव का स्वामी भी बली होकर द्वितीय भाव मे स्थित हो तो जातक अत्यन्त मालदार एवं धनी होगा ।● जन्म कुंडली मे द्वितीय भाव मे चन्द्र, गुरु ,शुक्र हो तथा नवम के स्वामी की तीनो पर द्रष्टि हो तो जातक आवश्यक रूप से मालदार होगा ।● किसी भी पत्रिका मे यदि मंगल और चन्द्र एक साथ विराजमान हो तो ऐसे जातक पर माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है ।● जन्मांक मे पंचम भाव मे शनि अपनी ही राशि अर्थात मकर या कुम्भ मे विराजमान हो तथा एकादश भाव मे बुध विद्यमान होकर शनि पर द्रष्टि हो , तो व्यक्ति को चारो ओर से आय होने के फलस्वरूप मालदार रहेगा ।● जन्म कुंडली मे पंचम भाव मे शुक्र अपनी ही राशि अर्थात वृषभ एवं तुला मे विराजमान हो तथा एकादश भाव मे विद्यमान होकर शनि , शुक्र को द्रष्टिपात करे तो जातक बहुत धनवान होता है ।● जन्म पत्रिका मे यदि लग्नेश द्वितीय भाव मे हो द्वितीयेश एकादश भाव मे हो एकादश भाव का स्वामी लग्न स्थान मे विद्यमान हो तो जातक जन्म से ही अत्यन्त मालदार होता है ।उपरोक्त जन्म कुंडली मे मालदार होने के सिद्ध सूत्र है जो मेरे निजी अनुभव मे सही पाये गये है आप भी जन्म कुंडली पर परख कर देखिये साथ ही टिप्पणीकालम मे अपनी प्रति क्रिया व्यक्त कीजिए से ज्योतिषीय नवीन ज्ञान वर्धन एवं विभिन्न अनुभवो का समावेश हो सकेगा ।आशा करते है आपको व्यक्त किये गये ग्रहो के संयोजन जिससे व्यक्ति मालदार होता है पसंद आये होगे , ज्योतिषीय जिज्ञासा का अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्न करने के लिए आपका ह्दय से आभार आपका उत्साह वर्धन नवीन प्रेरणा प्रदायक एवं मनोबल मे वृद्धि करने वाला रहेगा जी ।मूल स्रोत- श्री गुरुदेव आर्शीवादइमेज स्रोत गूगल

अपनी जन्म कुंडली से मालदार होने के लक्षण कैसे जाने ? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब श्रीमान जी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मालदार या संपन्नता के लिए लक्षण जन्म कुंडली मे विद्यमान ग्रहो के संयोजन से जाना जा सकता है कुछ योग जिनके जन्म कुंडली मे होने पर व्यक्ति अवश्य मालदार या धनी होगा जो इस प्रकार से हैं - ● जन्म कुंडली मे द्वितीय व एकादश भाव के स्वामी एक दूसरे के भाव मे विद्यमान हो अथवा दोनो एक साथ किसी भी केंद्र ( प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम)अथवा त्रिकोण स्थान ( पंचम, नवम) मे स्थित होने पर जातक अवश्य ही मालदार होगा । ● यदि धन भाव का स्वामी पंचम मे हो तो जातक मालदार होगा यदि धनेश होकर गुरु पंचम भाव मे विद्यमान हो तो विशेष फल एवं शीघ्र प्रभावकारी योग बनता है । ● यदि द्वितीय व चतुर्थ भाव के स्वामी नवम भाव मे हो तथा लग्नेश उच्च राशि का होकर एकादश भाव मे विद्यमान हो तथा नवम भाव का स्वामी भी बली होकर द्वितीय भाव मे स्थित हो तो जातक अत्यन्त मालदार एवं धनी होगा । ● जन्म कुंडली मे द्वितीय भाव मे चन्द्र, गुरु ,शुक्र हो तथा नवम के स्वामी की तीनो पर द्रष्टि हो तो जातक आवश्यक रूप से मालदार होगा । ● क...
श्रीसूक्त पाठ विधि By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 धन की कामना के लिए दीपावली पूजन के साथ श्री सूक्त का पाठ अत्यन्त लाभकारी रहता है। (श्रीसूक्त के इस प्रयोग को हृदय अथवा आज्ञा चक्र में करने से सर्वोत्तम लाभ होगा, अन्यथा सामान्य पूजा प्रकरण से ही संपन्न करें .) प्राणायाम आचमन आदि कर आसन पूजन करें :- ॐ अस्य श्री आसन पूजन महामन्त्रस्य कूर्मो देवता मेरूपृष्ठ ऋषि पृथ्वी सुतलं छंद: आसन पूजने विनियोग: । विनियोग हेतु जल भूमि पर गिरा दें । पृथ्वी पर रोली से त्रिकोण का निर्माण कर इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें – ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुनां धृता त्वां च धारय मां देवी पवित्रां कुरू च आसनं ।ॐ आधारशक्तये नम: । ॐ कूर्मासनायै नम: । ॐ पद्‌मासनायै नम: । ॐ सिद्धासनाय नम: । ॐ साध्य सिद्धसिद्धासनाय नम: । तदुपरांत गुरू गणपति गौरी पित्र व स्थान देवता आदि का स्मरण व पंचोपचार पूजन कर श्री चक्र के सम्मुख पुरुष सूक्त का एक बार पाठ करें । निम्न मन्त्रों से करन्यास करें :- 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अंगुष्ठाभ्याम नमः । 2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क...

लग्न में बैठा राहु किन स्थितियों में अच्छा प्रभाव देता है?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबश्रीमान जीयदि लग्न भाव मे राहु विद्यमान है तो निम्नवत परिस्थितियो मे अच्छा प्रभाव या फल प्रदान करेगे -● राहु अपनी उच्च राशि वृषभ मे या मूल त्रिकोण राशि मिथुन मे विराजमान होने पर उत्तम फलदायक रहेगे ।● लग्न भाव मे राहु स्वराशि ग्रह के साथ युति मे होने पर लग्नेश के बल मे वृद्धि करेगे उत्तम फलदायी रहेगे ।● जब राहु लग्न भाव मे विद्यमान होकर कुंडली के केन्द्रश से सम्बंध मे हो उत्तम फल प्रदान करते है ।● राहु लग्न मे विराजमान हो और कुंडली के त्रिकोणेश से सम्बंध बनाए तो श्रेष्ठ फल प्रदायक होते है ।● राहु लग्न भाव मे विद्यमान होकर केन्द्रश एवं त्रिकोणेश दोनो से सम्बंध बनाए तो राजयोग का फल प्रदान करते है ।● राहु लग्न भाव मे उच्च राशिगत ग्रह से युत होने पर उत्तम फलदायक रहते है ।● राहु छाया ग्रह है जिस भाव मे जिस राशि मे विद्यमान होते हैं के कारकतत्व ग्रहण कर लेते है यदि राहु लग्न भाव मे विद्यमान हो लग्नेश शुभ प्रभाव युक्त हो एवं बली अवस्था मे कुंडली मे स्थित हो तो राहु उत्तम फल प्रदान करेगे ।आशा है आप सभी बाते स्पष्ट रूप से समझ गये होगे ज्योतिषीय जिज्ञासा का अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्न करने के लिए आपका ह्दय से आभार आपका उत्साह वर्धन नवीन प्रेरणा प्रदायक रहेगा जी ।मूल स्रोत- श्री गुरु कृपाइमेज स्रोत गूगल

लग्न में बैठा राहु किन स्थितियों में अच्छा प्रभाव देता है? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब श्रीमान जी यदि लग्न भाव मे राहु विद्यमान है तो निम्नवत परिस्थितियो मे अच्छा प्रभाव या फल प्रदान करेगे - ● राहु अपनी उच्च राशि वृषभ मे या मूल त्रिकोण राशि मिथुन मे विराजमान होने पर उत्तम फलदायक रहेगे । ● लग्न भाव मे राहु स्वराशि ग्रह के साथ युति मे होने पर लग्नेश के बल मे वृद्धि करेगे उत्तम फलदायी रहेगे । ● जब राहु लग्न भाव मे विद्यमान होकर कुंडली के केन्द्रश से सम्बंध मे हो उत्तम फल प्रदान करते है । ● राहु लग्न मे विराजमान हो और कुंडली के त्रिकोणेश से सम्बंध बनाए तो श्रेष्ठ फल प्रदायक होते है । ● राहु लग्न भाव मे विद्यमान होकर केन्द्रश एवं त्रिकोणेश दोनो से सम्बंध बनाए तो राजयोग का फल प्रदान करते है । ● राहु लग्न भाव मे उच्च राशिगत ग्रह से युत होने पर उत्तम फलदायक रहते है । ● राहु छाया ग्रह है जिस भाव मे जिस राशि मे विद्यमान होते हैं के कारकतत्व ग्रहण कर लेते है यदि राहु लग्न भाव मे विद्यमान हो लग्नेश शुभ प्रभाव युक्त हो एवं बली अवस्था मे कुंडली मे स्थित हो तो राहु उत्तम फल प्रदान करेगे । आशा है...

मंगल मजबूत होने से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबज्योतिष के आधार नवग्रहों में से प्रत्येक की हमारे जीवन संचालन में एक विशेष भूमिका होती है परंतु इसमें भी मंगल हमारी जन्मकुंडली में कुछ ऐसे विशेष घटकों को नियंत्रित करता है जिनसे हमें अपने जीवन के संघर्षों और बाधाओं का सामना करने की हिम्मत और प्रेरणा मिलती है। ज्योतिष में मंगल से सम्बंधित सामान्य जानकारी को देंखें तो मंगल अग्नि तत्व ग्रह है जो लाल रंग और क्षत्रिय वर्ण के गुण रखने वाला है, मेष और वृश्चिक राशि पर मंगल का आधिपत्य है अर्थात मंगल मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है, मकर राशि में मंगल उच्चस्थ तथा कर्क मंगल की नीच राशि है। सूर्य, बृहस्पति और चन्द्रमाँ मंगल के मित्र ग्रह हैं तथा शनि, शुक्र, बुध और राहु से मंगल की शत्रुता है। मंगल किसी भी राशि में लगभग 45 दिन अर्थात डेढ़ महीना गोचर करता है और फिर अगली राशि में प्रवेश करता है।ज्योतिष में वैसे तो मंगल को बहुत सी चीजों का करक माना गया है जैसे तकनीकी कार्यो का कारक मंगल होता है इंजीनियरिंग और शल्यचिकित्सा के क्षेत्र में मंगल की अहम भूमिका होती है धातु, हथियार, बड़े भाई, विधुत, अग्नि, भूमि, सेना, पुलिस, सुरक्षा कर्मी, लड़ाई झगड़ा, रक्त, मांसपेशियां, पित्त, दुर्घटना और स्त्रियों का मांगल्य आदि बहुतसे घटकों का कारक मंगल होता है, परंतु यहाँ हम मंगल के उन कुछ विशेष कारकतत्वों का वर्णन करना चाहते हैं जो हमारे प्रवाह में हमारे विशेष सहायक होते हैं वे हैं – “हिम्मत, शक्ति, पराक्रम, उत्साह, साहस और प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति“अच्छा और बलि मंगल व्यक्ति को हिम्मत शक्ति और पराक्रम से परिपूर्ण एक उत्साही और निडर व्यक्ति बनाता है। जिन लोगों की कुंडली में मंगल स्व या उच्च राशि (मेष, वृश्चिक, मकर) में हो या अन्य प्रकार बली हो तो ऐसा व्यक्ति बहुत साहसी और किसी से ना दबने वाला अटल प्रवर्ति का व्यक्ति होता है, बलवान मंगल व्यक्ति को किलिंग स्प्रिट देता है जिससे व्यक्ति जिस काम को करने की ठान ले उसे पूरा करके ही दम लेता है। कुंडली में मंगल बलवान होने पर व्यक्ति अपने कार्य के प्रति बहुत पैशन रखने वाला होता है और ऐसा व्यक्ति विपरीत परिस्थिति में भी मेहनत करना नहीं छोड़ता। कुंडली में बलवान मंगल व्यक्ति को परिस्पर्धा की कुशलता भी देता है जिससे वह अपने विरोधियों पर सदैव हावी रहता है।ज्योतिष में मंगल को किशोरावस्था का कारक माना गया है जो कभी वृद्ध नहीं होता, फलित ज्योतिष में कोई भी ग्रह किसी राशि में 1 से 30 डिग्री के बीच कितनी डिग्री पर है इसका फलित पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है कोई भी ग्रह जब अधिक डिग्री का विशेषकर 30 डिग्री के आसपास का हो तो वह वृद्धावस्था का होकर कमजोर माना जाता है परंतु एक ऐसा ग्रह है जो अधिक डिग्री का होने पर भी बलि ही रहता है क्योंकि यह किशोरावस्था का कारक है, अतः जिन लोगों की कुंडली में मंगल बहुत बलवान होता है वे 50 की उम्र में भी 25 – 30 के सामान प्रतीत होते हैं। मंगल के इन्ही विशेष गुणधर्मों के कारण सेना, नेवी, एयर फ़ोर्स, पुलिस, सुरक्षा गार्ड, एथलीट, स्पोर्ट्समैन, आदि लोगो के जीवन में उनकी कुंडली में स्थित बलवान मंगल की अहम भूमिका होती हैहमारे स्वास्थ पक्ष में भी मंगल अपनी विशेष भूमिका निभाता है मुख्य रूप से रक्त, मांसपेशियां, और पित्त को मंगल नियंत्रित करता है यदि कुंडली में मंगल छटे, आठवे भाव में हो, नीच राशि में हो या अन्य प्रकार पीड़ित हो तो ऐसे में व्यक्ति को रक्त से जुडी समस्याएं, मसल्सपेन, एसिडिटी, गॉलब्लेडर की समस्याएं, फुंसी फोड़े और मुहासे आदि की समस्याएं अधिक होती हैं इसके आलावा पीड़ित या कमजोर मंगल व्यक्ति को कुछ भयभीत स्वाभाव का भी बनाता है और व्यक्ति प्रतिस्पर्धा से घबराता है।कुंडली में मंगल कमजोर होने पर ” हनुमान चालीस और सुन्दरकाण्ड का पाठ तथा ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप बहुत लाभकारी होता है।।। श्री हनुमते नमः ।।

 मंगल मजबूत होने से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब ज्योतिष के आधार नवग्रहों में से प्रत्येक की हमारे जीवन संचालन में एक विशेष भूमिका होती है परंतु इसमें भी मंगल हमारी जन्मकुंडली में कुछ ऐसे विशेष घटकों को नियंत्रित करता है जिनसे हमें अपने जीवन के संघर्षों और बाधाओं का सामना करने की हिम्मत और प्रेरणा मिलती है। ज्योतिष में मंगल से सम्बंधित सामान्य जानकारी को देंखें तो मंगल अग्नि तत्व ग्रह है जो लाल रंग और क्षत्रिय वर्ण के गुण रखने वाला है, मेष और वृश्चिक राशि पर मंगल का आधिपत्य है अर्थात मंगल मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है, मकर राशि में मंगल उच्चस्थ तथा कर्क मंगल की नीच राशि है। सूर्य, बृहस्पति और चन्द्रमाँ मंगल के मित्र ग्रह हैं तथा शनि, शुक्र, बुध और राहु से मंगल की शत्रुता है। मंगल किसी भी राशि में लगभग 45 दिन अर्थात डेढ़ महीना गोचर करता है और फिर अगली राशि में प्रवेश करता है। ज्योतिष में वैसे तो मंगल को बहुत सी चीजों का करक माना गया है जैसे तकनीकी कार्यो का कारक मंगल होता है इंजीनियरिंग और शल्यचिकित्सा के क्षेत्र में मंगल की अहम भूमिका होती है ...

संक्षिप्त भविष्य पुराण by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🌸🌸🌸〰️〰️★उत्तरपर्व (चतुर्थ खण्ड)★ (एकसौ चौतीसवां दिन) ॐ श्री परमात्मने नमः श्री गणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय सावित्ति व्रत कथा एवं व्रत विधि...(भाग 1)〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️राजा युधिष्ठिर ने कहा - भगवन् ! अब आप सावित्री-व्रत के विधान का वर्णन करें।भगवान् श्रीकृष्ण बोले- महाराज ! सावित्री नाम की एक राजकन्या ने वन में जिस प्रकार यह व्रत किया था, स्त्रियों के कल्याणार्थ मैं उस व्रत का वर्णन कर रहा हूँ, उसे आप सुनें । प्राचीन काल में मद्रदेश (पंजाब)-में एक बड़ा पराक्रमी, सत्यवादी, क्षमाशील, जितेन्द्रिय और प्रजापालन में तत्पर अश्वपति नाम का राजा राज्य करता था, उसे कोई संतान न थी। इसलिये उसने सपत्नीक व्रत द्वारा सावित्री की आराधना की। कुछ काल के अनन्तर व्रत के प्रभाव से ब्रह्माजी की पत्नी सावित्री ने प्रसन्न हो राजा को वर दिया कि 'राजन्! तुम्हें (मेरे ही अंश से) एक कन्या उत्पन्न होगी।' इतना कहकर सावित्रीदेवी अन्तर्धान हो गयीं और कुछ दिन बाद राजा को एक दिव्य कन्या उत्पन्न हुई। वह सावित्रीदेवी के वर से प्राप्त हुई थी, इसलिये राजा ने उसका नाम सावित्री ही रखा। धीरे-धीरे वह विवाह के योग्य हो गयी। सावित्री ने भी भृगु के उपदेश से सावित्री व्रत किया।एक दिन वह व्रत के अनन्तर अपने पिता के पास गयी और प्रणाम कर वहाँ बैठ गयी। पिता ने सावित्री को विवाहयोग्य जानकर अमात्यों से उसके विवाह के विषय में मन्त्रणा की; पर उसके योग्य किसी श्रेष्ठ वर को न देखकर पिता अश्वपति ने सावित्री से कहा – 'पुत्रि ! तुम वृद्धजनों तथा अमात्यों के साथ जाकर स्वयं ही अपने अनुरूप कोई वर ढूँढ़ लो।' सावित्री भी पिता की आज्ञा स्वीकार कर मन्त्रियों के साथ चल पड़ी। स्वल्प काल में ही राजर्षियों के आश्रमों, सभी तीर्थों और तपोवनों में घूमती हुई तथा वृद्ध ऋषियों का अभिनन्दन करती हुई वह मन्त्रियों सहित पुनः अपने पिता के पास लौट आयी। सावित्री ने देखा कि राजसभा में देवर्षि नारद बैठे हुए हैं। सावित्री ने देवर्षि नारद और पिता को प्रणामकर अपना वृत्तान्त इस प्रकार बताया महाराज! शाल्वदेश में द्युमत्सेन नाम के एक धर्मात्मा राजा हैं। उनके सत्यवान् नामक पुत्र का मैंने वरण किया है।' सावित्री की बात सुनकर देवर्षि नारद कहने लगे—‘राजन्! इसने बाल्य-स्वभाववश उचित निर्णय नहीं लिया। यद्यपि द्युमत्सेन का पुत्र सभी गुणों से सम्पन्न है, परंतु उसमें एक बड़ा भारी दोष है कि आज के ही दिन ठीक एक वर्ष के बाद उसकी मृत्यु हो जायगी। देवर्षि नारद की सुनकर राजा ने सावित्री से किसी अन्य वर को ढूँढ़ने के लिये कहा।बाल वनिता महिला आश्रमजय श्रीरामक्रमश...शेष अगले अंक में〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️

संक्षिप्त भविष्य पुराण  by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰️〰️🌸🌸🌸〰️〰️ ★उत्तरपर्व (चतुर्थ खण्ड)★  (एकसौ चौतीसवां दिन)  ॐ श्री परमात्मने नमः  श्री गणेशाय नमः  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  सावित्ति व्रत कथा एवं व्रत विधि...(भाग 1) 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️ राजा युधिष्ठिर ने कहा - भगवन् ! अब आप सावित्री-व्रत के विधान का वर्णन करें। भगवान् श्रीकृष्ण बोले- महाराज ! सावित्री नाम की एक राजकन्या ने वन में जिस प्रकार यह व्रत किया था, स्त्रियों के कल्याणार्थ मैं उस व्रत का वर्णन कर रहा हूँ, उसे आप सुनें । प्राचीन काल में मद्रदेश (पंजाब)-में एक बड़ा पराक्रमी, सत्यवादी, क्षमाशील, जितेन्द्रिय और प्रजापालन में तत्पर अश्वपति नाम का राजा राज्य करता था, उसे कोई संतान न थी। इसलिये उसने सपत्नीक व्रत द्वारा सावित्री की आराधना की। कुछ काल के अनन्तर व्रत के प्रभाव से ब्रह्माजी की पत्नी सावित्री ने प्रसन्न हो राजा को वर दिया कि 'राजन्! तुम्हें (मेरे ही अंश से) एक कन्या उत्पन्न होगी।' इतना कहकर सावित्रीदेवी अन्तर्धान हो गयीं और कुछ दिन बाद राजा को एक दिव्य कन्या उत्पन्न हुई। वह सावि...

श्रीमद्देवीभागवत (पाँचवा स्कन्ध) By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🌼〰️🌼🌼〰️🌼〰️〰️अध्याय 5 (भाग 1)॥श्रीभगवत्यै नमः ॥बृहस्पतिजी का इन्द्र के प्रति उपदेश, इन्द्र का भगवान् ब्रह्मा, शंकर तथा विष्णु के पास जाना...〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️बृहस्पति जी आगे बोले- हर्ष और शोक शत्रुतुल्य हैं। इन्हें अपने आत्मा को न सौंपे। विवेकी पुरुषों को चाहिये कि इनके उपस्थित होने पर धैर्य का ही अनुसरण करें। अधीर हो जाने पर दुःख का जैसा भयंकर रूप सामने दिखायी पड़ता है, वैसा धैर्य धारण करने पर नहीं दीखता। परंतु दुःख और सुख के सामने आने पर सहनशील बने रहना अवश्य ही दुर्लभ है। जो पुरुष हर्ष और शोक की अवस्था में अपनी सद्बुद्धि से निश्चय करके उनके प्रभाव से प्रभावित नहीं होता, उसके लिये कैसा सुख और कैसा दुःख। वैसी परिस्थिति में वह यह सोचे कि 'मैं निर्गुण हूँ', मेरा कभी नाश नहीं हो सकता। मैं इन चौबीस गुणों से पृथक् हूँ। फिर मुझे दुःख और सुख से क्या प्रयोजन ? भूख और प्यास का प्राण से, शोक और मोह का मन से तथा जरा और मृत्यु का शरीर से सम्बन्ध है । मैं इन छहों ऊर्मियों से रहित कल्याण स्वरूप हूँ। शोक और मोह- ये शरीर के गुण हैं। मैं इनकी चिन्ता में क्यों उलझँ। मैं शरीर नहीं हूँ और न मेरा इससे कोई स्थायी सम्बन्ध ही है। मेरा स्वरूप अखण्ड आनन्दमय है। प्रकृति और विकृति मेरे इस आनन्दमय स्वरूप से पृथक् हैं। फिर मेरा कभी भी दुःख से क्या सम्बन्ध है।' देवराज! तुम सच्चे मन से इस रहस्य को भलीभाँति समझकर ममता रहित हो जाओ। शतक्रतो! तुम्हारे दुःख के अभाव का सर्वप्रथम उपाय यही है। ममता ही परम दुःख है और निर्ममत्व - ममता का अभाव हो जाना परम सुख का साधन है। शचीपते! कोई सुखी होना चाहे तो संतोष का आश्रय ले। संतोष के अतिरिक्त सुख का स्थान और कोई नहीं है। * अथवा देवराज! यदि तुम्हारे पास ममता दूर करने वाले ज्ञान का नितान्त अभाव हो तो प्रारब्ध के विषय में विवेक का आश्रय लेना परम आवश्यक है। प्रारब्ध कर्मों का अभाव बिना भोगे नहीं हो सकता - यह स्पष्ट है। आर्य! सम्पूर्ण देवता तुम्हारे सहायक हैं। तुम स्वयं भी बुद्धिमान् हो। फिर भी जो होनी है, वह होकर ही रहेगी। तुम उसे टाल नहीं सकते। ऐसी स्थिति में सुख और दुःख की चिन्ता में नहीं पड़ना चाहिये। महाभाग ! सुख और दुःख – ये दोनों क्रमश: पुण्य एवं पाप के क्षय के सूचक हैं। अतएव विद्वान् पुरुषों को चाहिये कि सुख के अभाव में भी सर्वथा आनन्द का ही अनुभव । अतएव महाराज! इस अवसर पर सुयोग्य करें। मन्त्रियों से परामर्श लेकर विधिपूर्वक यत्न करने में कटिबद्ध हो जाओ। यत्न करने पर भी, जो होनहार होगा, वह तो सामने आयेगा ही।बाल वनिता महिला आश्रमक्रमश...शेष अगले अंक मेंजय माता जी की〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

श्रीमद्देवीभागवत (पाँचवा स्कन्ध)   By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰️〰️🌼〰️🌼🌼〰️🌼〰️〰️ अध्याय 5 (भाग 1) ॥श्रीभगवत्यै नमः ॥ बृहस्पतिजी का इन्द्र के प्रति उपदेश, इन्द्र का भगवान् ब्रह्मा, शंकर तथा विष्णु के पास जाना... 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ बृहस्पति जी आगे बोले- हर्ष और शोक शत्रुतुल्य हैं। इन्हें अपने आत्मा को न सौंपे। विवेकी पुरुषों को चाहिये कि इनके उपस्थित होने पर धैर्य का ही अनुसरण करें। अधीर हो जाने पर दुःख का जैसा भयंकर रूप सामने दिखायी पड़ता है, वैसा धैर्य धारण करने पर नहीं दीखता। परंतु दुःख और सुख के सामने आने पर सहनशील बने रहना अवश्य ही दुर्लभ है। जो पुरुष हर्ष और शोक की अवस्था में अपनी सद्बुद्धि से निश्चय करके उनके प्रभाव से प्रभावित नहीं होता, उसके लिये कैसा सुख और कैसा दुःख। वैसी परिस्थिति में वह यह सोचे कि 'मैं निर्गुण हूँ', मेरा कभी नाश नहीं हो सकता। मैं इन चौबीस गुणों से पृथक् हूँ। फिर मुझे दुःख और सुख से क्या प्रयोजन ? भूख और प्यास का प्राण से, शोक और मोह का मन से तथा जरा और मृत्यु का शरीर से सम्बन्ध है । मैं इन छहों ऊर्मियों से रहित कल्याण स्वरूप हूँ। श...

श्रीमद्भागवत महापुराणम् By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️षष्ठः स्कन्धः अथ षष्ठोऽध्यायःदक्षप्रजापति की साठ कन्याओं के वशं का विवरण...(भाग 2)〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️सङ्कल्पायाश्च सङ्कल्पः कामः सङ्कल्पजः स्मृतः ।वसवोऽष्टौ वसोः पुत्रास्तेषां नामानि मे शृणु ॥ १०द्रोणः प्राणो ध्रुवोऽर्कोऽग्निर्दोषो वसुर्विभावसुः । द्रोणस्याभिमते: ₹पल्या हर्षशोकभयादयः ॥ ११प्राणस्योर्जस्वती भार्या सह आयुः पुरोजवः । ध्रुवस्य भार्या धरणिरसूत विविधाः पुरः ॥ १२अर्कस्य वासना भार्या पुत्रास्तर्षादयः स्मृताः । अग्नेर्भार्या वसोर्धारा पुत्रा द्रविणकादयः ॥ १३स्कन्दश्च कृत्तिकापुत्रो ये विशाखादयस्ततः ।दोषस्य शर्वरीपुत्रः शिशुमारो हरेः कला ॥ १४वसोराङ्गिरसीपुत्रो विश्वकर्माकृतीपतिः । ततो मनुश्चाक्षुषोऽभूद् विश्वे साध्या मनोः सुताः ॥ १५विभावसोरसूतोषा व्युष्टं रोचिषमातपम् । पञ्चयामोऽथ भूतानि येन जाग्रति कर्मसु ॥ १६सरूपासूत' भूतस्य भार्या रुद्रांश्च कोटिशः ।ला रैवतोऽजो भवो भीमो वाम उग्रो वृषाकपिः ॥ १७अजैकपादहिर्बुध्न्यो बहुरूपो महानिति । रुद्रस्य पार्षदाश्चान्ये घोरा भूतविनायकाः ।। १८श्लोकार्थ〰️〰️〰️ सङ्कल्पा का पुत्र हुआ सङ्कल्प और उसका काम। वसु के पुत्र आठों वसु हुए। उनके नाम मुझसे सुनो ॥ १० ॥ द्रोण, प्राण, ध्रुव, अर्क, अग्नि, दोष, वसु और विभावसु । द्रोण की पत्नी का नाम है अभिमति । उससे हर्ष, शोक, भय आदि के अभिमानी देवता उत्पन्न हुए ॥ ११ ॥ प्राण की पत्नी ऊर्जस्वती के गर्भ से सह, आयु और पुरोजव नाम के तीन पुत्र हुए। धुव की पत्नी धरणी ने अनेक नगरों के अभिमानी देवता उत्पन्न किये ॥ १२ ॥ अर्क की पत्नी वासना के गर्भ से तर्ष (तृष्णा) आदि पुत्र हुए। अग्नि नामक वसु की पत्नी धारा के गर्भ से द्रविणक आदि बहुत-से पुत्र उत्पन्न हुए ॥ १३ ॥ कृत्तिका पुत्र स्कन्द भी अग्नि से ही उत्पन्न हुए। उनसे विशाख आदि का जन्म हुआ। दोष की पत्नी शर्वरी के गर्भ से शिशुमार का जन्म हुआ। वह भगवान्‌ का कलावतार है ॥ १४ ॥ वसु की पत्नी आङ्गिरसी से शिल्पकला के अधिपति विश्वकर्माजी हुए। विश्वकर्मा के उनकी भार्या कृती के गर्भ से चाक्षुष मनु हुए और उनके पुत्र विश्वेदेव एवं साध्यगण हुए ॥ १५ ॥ विभावसु की पत्नी उषा से तीन पुत्र हुए- व्युष्ट, रोचिष् और आतप। उनमें से आतप के पञ्चयाम (दिवस) नामक पुत्र हुआ, उसी के कारण सब जीव अपने-अपने कार्यों में लगे रहते हैं ॥ १६ ॥भूत की पत्नी दक्षनन्दिनी सरूपा ने कोटि-कोटि रुद्रगण उत्पन्न किये। इनमें रैवत, अज, भव, भीम, वाम, उग्र, वृषाकपि, अजैकपाद, अहिर्बुध्न्य, बहुरूप, और महान्— ये ग्यारह मुख्य हैं। भूत की दूसरी पत्नी भूता से भयङ्कर भूत और विनायकादि का जन्म हुआ। ये सब ग्यारह वें प्रधान रुद्र महान् के पार्षद हुए ॥ १७-१८ ॥बाल वनिता महिला आश्रमक्रमशः...शेष अलगे लेख में...〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️

श्रीमद्भागवत महापुराणम्   By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️ षष्ठः स्कन्धः अथ षष्ठोऽध्यायः दक्षप्रजापति की साठ कन्याओं के वशं का विवरण...(भाग 2) 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️ सङ्कल्पायाश्च सङ्कल्पः कामः सङ्कल्पजः स्मृतः । वसवोऽष्टौ वसोः पुत्रास्तेषां नामानि मे शृणु ॥ १० द्रोणः प्राणो ध्रुवोऽर्कोऽग्निर्दोषो वसुर्विभावसुः ।  द्रोणस्याभिमते: ₹पल्या हर्षशोकभयादयः ॥ ११ प्राणस्योर्जस्वती भार्या सह आयुः पुरोजवः । ध्रुवस्य भार्या धरणिरसूत विविधाः पुरः ॥ १२ अर्कस्य वासना भार्या पुत्रास्तर्षादयः स्मृताः ।  अग्नेर्भार्या वसोर्धारा पुत्रा द्रविणकादयः ॥ १३ स्कन्दश्च कृत्तिकापुत्रो ये विशाखादयस्ततः । दोषस्य शर्वरीपुत्रः शिशुमारो हरेः कला ॥ १४ वसोराङ्गिरसीपुत्रो विश्वकर्माकृतीपतिः । ततो मनुश्चाक्षुषोऽभूद् विश्वे साध्या मनोः सुताः ॥ १५ विभावसोरसूतोषा व्युष्टं रोचिषमातपम् । पञ्चयामोऽथ भूतानि येन जाग्रति कर्मसु ॥ १६ सरूपासूत' भूतस्य भार्या रुद्रांश्च कोटिशः ।ला रैवतोऽजो भवो भीमो वाम उग्रो वृषाकपिः ॥ १७ अजैकपादहिर्बुध्न्यो बहुरूपो महानिति । रुद्रस्य पार्षदाश्चान्ये ...