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जुलाई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अपनी जन्म कुंडली से मालदार होने के लक्षण कैसे जाने ? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब श्रीमान जी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मालदार या संपन्नता के लिए लक्षण जन्म कुंडली मे विद्यमान ग्रहो के संयोजन से जाना जा सकता है कुछ योग जिनके जन्म कुंडली मे होने पर व्यक्ति अवश्य मालदार या धनी होगा जो इस प्रकार से हैं -● जन्म कुंडली मे द्वितीय व एकादश भाव के स्वामी एक दूसरे के भाव मे विद्यमान हो अथवा दोनो एक साथ किसी भी केंद्र ( प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम)अथवा त्रिकोण स्थान ( पंचम, नवम) मे स्थित होने पर जातक अवश्य ही मालदार होगा ।● यदि धन भाव का स्वामी पंचम मे हो तो जातक मालदार होगा यदि धनेश होकर गुरु पंचम भाव मे विद्यमान हो तो विशेष फल एवं शीघ्र प्रभावकारी योग बनता है ।● यदि द्वितीय व चतुर्थ भाव के स्वामी नवम भाव मे हो तथा लग्नेश उच्च राशि का होकर एकादश भाव मे विद्यमान हो तथा नवम भाव का स्वामी भी बली होकर द्वितीय भाव मे स्थित हो तो जातक अत्यन्त मालदार एवं धनी होगा ।● जन्म कुंडली मे द्वितीय भाव मे चन्द्र, गुरु ,शुक्र हो तथा नवम के स्वामी की तीनो पर द्रष्टि हो तो जातक आवश्यक रूप से मालदार होगा ।● किसी भी पत्रिका मे यदि मंगल और चन्द्र एक साथ विराजमान हो तो ऐसे जातक पर माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है ।● जन्मांक मे पंचम भाव मे शनि अपनी ही राशि अर्थात मकर या कुम्भ मे विराजमान हो तथा एकादश भाव मे बुध विद्यमान होकर शनि पर द्रष्टि हो , तो व्यक्ति को चारो ओर से आय होने के फलस्वरूप मालदार रहेगा ।● जन्म कुंडली मे पंचम भाव मे शुक्र अपनी ही राशि अर्थात वृषभ एवं तुला मे विराजमान हो तथा एकादश भाव मे विद्यमान होकर शनि , शुक्र को द्रष्टिपात करे तो जातक बहुत धनवान होता है ।● जन्म पत्रिका मे यदि लग्नेश द्वितीय भाव मे हो द्वितीयेश एकादश भाव मे हो एकादश भाव का स्वामी लग्न स्थान मे विद्यमान हो तो जातक जन्म से ही अत्यन्त मालदार होता है ।उपरोक्त जन्म कुंडली मे मालदार होने के सिद्ध सूत्र है जो मेरे निजी अनुभव मे सही पाये गये है आप भी जन्म कुंडली पर परख कर देखिये साथ ही टिप्पणीकालम मे अपनी प्रति क्रिया व्यक्त कीजिए से ज्योतिषीय नवीन ज्ञान वर्धन एवं विभिन्न अनुभवो का समावेश हो सकेगा ।आशा करते है आपको व्यक्त किये गये ग्रहो के संयोजन जिससे व्यक्ति मालदार होता है पसंद आये होगे , ज्योतिषीय जिज्ञासा का अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्न करने के लिए आपका ह्दय से आभार आपका उत्साह वर्धन नवीन प्रेरणा प्रदायक एवं मनोबल मे वृद्धि करने वाला रहेगा जी ।मूल स्रोत- श्री गुरुदेव आर्शीवादइमेज स्रोत गूगल

अपनी जन्म कुंडली से मालदार होने के लक्षण कैसे जाने ? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब श्रीमान जी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मालदार या संपन्नता के लिए लक्षण जन्म कुंडली मे विद्यमान ग्रहो के संयोजन से जाना जा सकता है कुछ योग जिनके जन्म कुंडली मे होने पर व्यक्ति अवश्य मालदार या धनी होगा जो इस प्रकार से हैं - ● जन्म कुंडली मे द्वितीय व एकादश भाव के स्वामी एक दूसरे के भाव मे विद्यमान हो अथवा दोनो एक साथ किसी भी केंद्र ( प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम)अथवा त्रिकोण स्थान ( पंचम, नवम) मे स्थित होने पर जातक अवश्य ही मालदार होगा । ● यदि धन भाव का स्वामी पंचम मे हो तो जातक मालदार होगा यदि धनेश होकर गुरु पंचम भाव मे विद्यमान हो तो विशेष फल एवं शीघ्र प्रभावकारी योग बनता है । ● यदि द्वितीय व चतुर्थ भाव के स्वामी नवम भाव मे हो तथा लग्नेश उच्च राशि का होकर एकादश भाव मे विद्यमान हो तथा नवम भाव का स्वामी भी बली होकर द्वितीय भाव मे स्थित हो तो जातक अत्यन्त मालदार एवं धनी होगा । ● जन्म कुंडली मे द्वितीय भाव मे चन्द्र, गुरु ,शुक्र हो तथा नवम के स्वामी की तीनो पर द्रष्टि हो तो जातक आवश्यक रूप से मालदार होगा । ● क...
श्रीसूक्त पाठ विधि By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 धन की कामना के लिए दीपावली पूजन के साथ श्री सूक्त का पाठ अत्यन्त लाभकारी रहता है। (श्रीसूक्त के इस प्रयोग को हृदय अथवा आज्ञा चक्र में करने से सर्वोत्तम लाभ होगा, अन्यथा सामान्य पूजा प्रकरण से ही संपन्न करें .) प्राणायाम आचमन आदि कर आसन पूजन करें :- ॐ अस्य श्री आसन पूजन महामन्त्रस्य कूर्मो देवता मेरूपृष्ठ ऋषि पृथ्वी सुतलं छंद: आसन पूजने विनियोग: । विनियोग हेतु जल भूमि पर गिरा दें । पृथ्वी पर रोली से त्रिकोण का निर्माण कर इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें – ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुनां धृता त्वां च धारय मां देवी पवित्रां कुरू च आसनं ।ॐ आधारशक्तये नम: । ॐ कूर्मासनायै नम: । ॐ पद्‌मासनायै नम: । ॐ सिद्धासनाय नम: । ॐ साध्य सिद्धसिद्धासनाय नम: । तदुपरांत गुरू गणपति गौरी पित्र व स्थान देवता आदि का स्मरण व पंचोपचार पूजन कर श्री चक्र के सम्मुख पुरुष सूक्त का एक बार पाठ करें । निम्न मन्त्रों से करन्यास करें :- 🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶 1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अंगुष्ठाभ्याम नमः । 2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क...

लग्न में बैठा राहु किन स्थितियों में अच्छा प्रभाव देता है?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबश्रीमान जीयदि लग्न भाव मे राहु विद्यमान है तो निम्नवत परिस्थितियो मे अच्छा प्रभाव या फल प्रदान करेगे -● राहु अपनी उच्च राशि वृषभ मे या मूल त्रिकोण राशि मिथुन मे विराजमान होने पर उत्तम फलदायक रहेगे ।● लग्न भाव मे राहु स्वराशि ग्रह के साथ युति मे होने पर लग्नेश के बल मे वृद्धि करेगे उत्तम फलदायी रहेगे ।● जब राहु लग्न भाव मे विद्यमान होकर कुंडली के केन्द्रश से सम्बंध मे हो उत्तम फल प्रदान करते है ।● राहु लग्न मे विराजमान हो और कुंडली के त्रिकोणेश से सम्बंध बनाए तो श्रेष्ठ फल प्रदायक होते है ।● राहु लग्न भाव मे विद्यमान होकर केन्द्रश एवं त्रिकोणेश दोनो से सम्बंध बनाए तो राजयोग का फल प्रदान करते है ।● राहु लग्न भाव मे उच्च राशिगत ग्रह से युत होने पर उत्तम फलदायक रहते है ।● राहु छाया ग्रह है जिस भाव मे जिस राशि मे विद्यमान होते हैं के कारकतत्व ग्रहण कर लेते है यदि राहु लग्न भाव मे विद्यमान हो लग्नेश शुभ प्रभाव युक्त हो एवं बली अवस्था मे कुंडली मे स्थित हो तो राहु उत्तम फल प्रदान करेगे ।आशा है आप सभी बाते स्पष्ट रूप से समझ गये होगे ज्योतिषीय जिज्ञासा का अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्न करने के लिए आपका ह्दय से आभार आपका उत्साह वर्धन नवीन प्रेरणा प्रदायक रहेगा जी ।मूल स्रोत- श्री गुरु कृपाइमेज स्रोत गूगल

लग्न में बैठा राहु किन स्थितियों में अच्छा प्रभाव देता है? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब श्रीमान जी यदि लग्न भाव मे राहु विद्यमान है तो निम्नवत परिस्थितियो मे अच्छा प्रभाव या फल प्रदान करेगे - ● राहु अपनी उच्च राशि वृषभ मे या मूल त्रिकोण राशि मिथुन मे विराजमान होने पर उत्तम फलदायक रहेगे । ● लग्न भाव मे राहु स्वराशि ग्रह के साथ युति मे होने पर लग्नेश के बल मे वृद्धि करेगे उत्तम फलदायी रहेगे । ● जब राहु लग्न भाव मे विद्यमान होकर कुंडली के केन्द्रश से सम्बंध मे हो उत्तम फल प्रदान करते है । ● राहु लग्न मे विराजमान हो और कुंडली के त्रिकोणेश से सम्बंध बनाए तो श्रेष्ठ फल प्रदायक होते है । ● राहु लग्न भाव मे विद्यमान होकर केन्द्रश एवं त्रिकोणेश दोनो से सम्बंध बनाए तो राजयोग का फल प्रदान करते है । ● राहु लग्न भाव मे उच्च राशिगत ग्रह से युत होने पर उत्तम फलदायक रहते है । ● राहु छाया ग्रह है जिस भाव मे जिस राशि मे विद्यमान होते हैं के कारकतत्व ग्रहण कर लेते है यदि राहु लग्न भाव मे विद्यमान हो लग्नेश शुभ प्रभाव युक्त हो एवं बली अवस्था मे कुंडली मे स्थित हो तो राहु उत्तम फल प्रदान करेगे । आशा है...

मंगल मजबूत होने से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबज्योतिष के आधार नवग्रहों में से प्रत्येक की हमारे जीवन संचालन में एक विशेष भूमिका होती है परंतु इसमें भी मंगल हमारी जन्मकुंडली में कुछ ऐसे विशेष घटकों को नियंत्रित करता है जिनसे हमें अपने जीवन के संघर्षों और बाधाओं का सामना करने की हिम्मत और प्रेरणा मिलती है। ज्योतिष में मंगल से सम्बंधित सामान्य जानकारी को देंखें तो मंगल अग्नि तत्व ग्रह है जो लाल रंग और क्षत्रिय वर्ण के गुण रखने वाला है, मेष और वृश्चिक राशि पर मंगल का आधिपत्य है अर्थात मंगल मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है, मकर राशि में मंगल उच्चस्थ तथा कर्क मंगल की नीच राशि है। सूर्य, बृहस्पति और चन्द्रमाँ मंगल के मित्र ग्रह हैं तथा शनि, शुक्र, बुध और राहु से मंगल की शत्रुता है। मंगल किसी भी राशि में लगभग 45 दिन अर्थात डेढ़ महीना गोचर करता है और फिर अगली राशि में प्रवेश करता है।ज्योतिष में वैसे तो मंगल को बहुत सी चीजों का करक माना गया है जैसे तकनीकी कार्यो का कारक मंगल होता है इंजीनियरिंग और शल्यचिकित्सा के क्षेत्र में मंगल की अहम भूमिका होती है धातु, हथियार, बड़े भाई, विधुत, अग्नि, भूमि, सेना, पुलिस, सुरक्षा कर्मी, लड़ाई झगड़ा, रक्त, मांसपेशियां, पित्त, दुर्घटना और स्त्रियों का मांगल्य आदि बहुतसे घटकों का कारक मंगल होता है, परंतु यहाँ हम मंगल के उन कुछ विशेष कारकतत्वों का वर्णन करना चाहते हैं जो हमारे प्रवाह में हमारे विशेष सहायक होते हैं वे हैं – “हिम्मत, शक्ति, पराक्रम, उत्साह, साहस और प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति“अच्छा और बलि मंगल व्यक्ति को हिम्मत शक्ति और पराक्रम से परिपूर्ण एक उत्साही और निडर व्यक्ति बनाता है। जिन लोगों की कुंडली में मंगल स्व या उच्च राशि (मेष, वृश्चिक, मकर) में हो या अन्य प्रकार बली हो तो ऐसा व्यक्ति बहुत साहसी और किसी से ना दबने वाला अटल प्रवर्ति का व्यक्ति होता है, बलवान मंगल व्यक्ति को किलिंग स्प्रिट देता है जिससे व्यक्ति जिस काम को करने की ठान ले उसे पूरा करके ही दम लेता है। कुंडली में मंगल बलवान होने पर व्यक्ति अपने कार्य के प्रति बहुत पैशन रखने वाला होता है और ऐसा व्यक्ति विपरीत परिस्थिति में भी मेहनत करना नहीं छोड़ता। कुंडली में बलवान मंगल व्यक्ति को परिस्पर्धा की कुशलता भी देता है जिससे वह अपने विरोधियों पर सदैव हावी रहता है।ज्योतिष में मंगल को किशोरावस्था का कारक माना गया है जो कभी वृद्ध नहीं होता, फलित ज्योतिष में कोई भी ग्रह किसी राशि में 1 से 30 डिग्री के बीच कितनी डिग्री पर है इसका फलित पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है कोई भी ग्रह जब अधिक डिग्री का विशेषकर 30 डिग्री के आसपास का हो तो वह वृद्धावस्था का होकर कमजोर माना जाता है परंतु एक ऐसा ग्रह है जो अधिक डिग्री का होने पर भी बलि ही रहता है क्योंकि यह किशोरावस्था का कारक है, अतः जिन लोगों की कुंडली में मंगल बहुत बलवान होता है वे 50 की उम्र में भी 25 – 30 के सामान प्रतीत होते हैं। मंगल के इन्ही विशेष गुणधर्मों के कारण सेना, नेवी, एयर फ़ोर्स, पुलिस, सुरक्षा गार्ड, एथलीट, स्पोर्ट्समैन, आदि लोगो के जीवन में उनकी कुंडली में स्थित बलवान मंगल की अहम भूमिका होती हैहमारे स्वास्थ पक्ष में भी मंगल अपनी विशेष भूमिका निभाता है मुख्य रूप से रक्त, मांसपेशियां, और पित्त को मंगल नियंत्रित करता है यदि कुंडली में मंगल छटे, आठवे भाव में हो, नीच राशि में हो या अन्य प्रकार पीड़ित हो तो ऐसे में व्यक्ति को रक्त से जुडी समस्याएं, मसल्सपेन, एसिडिटी, गॉलब्लेडर की समस्याएं, फुंसी फोड़े और मुहासे आदि की समस्याएं अधिक होती हैं इसके आलावा पीड़ित या कमजोर मंगल व्यक्ति को कुछ भयभीत स्वाभाव का भी बनाता है और व्यक्ति प्रतिस्पर्धा से घबराता है।कुंडली में मंगल कमजोर होने पर ” हनुमान चालीस और सुन्दरकाण्ड का पाठ तथा ॐ अंग अंगारकाय नमः का नियमित जाप बहुत लाभकारी होता है।।। श्री हनुमते नमः ।।

 मंगल मजबूत होने से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब ज्योतिष के आधार नवग्रहों में से प्रत्येक की हमारे जीवन संचालन में एक विशेष भूमिका होती है परंतु इसमें भी मंगल हमारी जन्मकुंडली में कुछ ऐसे विशेष घटकों को नियंत्रित करता है जिनसे हमें अपने जीवन के संघर्षों और बाधाओं का सामना करने की हिम्मत और प्रेरणा मिलती है। ज्योतिष में मंगल से सम्बंधित सामान्य जानकारी को देंखें तो मंगल अग्नि तत्व ग्रह है जो लाल रंग और क्षत्रिय वर्ण के गुण रखने वाला है, मेष और वृश्चिक राशि पर मंगल का आधिपत्य है अर्थात मंगल मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है, मकर राशि में मंगल उच्चस्थ तथा कर्क मंगल की नीच राशि है। सूर्य, बृहस्पति और चन्द्रमाँ मंगल के मित्र ग्रह हैं तथा शनि, शुक्र, बुध और राहु से मंगल की शत्रुता है। मंगल किसी भी राशि में लगभग 45 दिन अर्थात डेढ़ महीना गोचर करता है और फिर अगली राशि में प्रवेश करता है। ज्योतिष में वैसे तो मंगल को बहुत सी चीजों का करक माना गया है जैसे तकनीकी कार्यो का कारक मंगल होता है इंजीनियरिंग और शल्यचिकित्सा के क्षेत्र में मंगल की अहम भूमिका होती है ...

संक्षिप्त भविष्य पुराण by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🌸🌸🌸〰️〰️★उत्तरपर्व (चतुर्थ खण्ड)★ (एकसौ चौतीसवां दिन) ॐ श्री परमात्मने नमः श्री गणेशाय नमः ॐ नमो भगवते वासुदेवाय सावित्ति व्रत कथा एवं व्रत विधि...(भाग 1)〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️राजा युधिष्ठिर ने कहा - भगवन् ! अब आप सावित्री-व्रत के विधान का वर्णन करें।भगवान् श्रीकृष्ण बोले- महाराज ! सावित्री नाम की एक राजकन्या ने वन में जिस प्रकार यह व्रत किया था, स्त्रियों के कल्याणार्थ मैं उस व्रत का वर्णन कर रहा हूँ, उसे आप सुनें । प्राचीन काल में मद्रदेश (पंजाब)-में एक बड़ा पराक्रमी, सत्यवादी, क्षमाशील, जितेन्द्रिय और प्रजापालन में तत्पर अश्वपति नाम का राजा राज्य करता था, उसे कोई संतान न थी। इसलिये उसने सपत्नीक व्रत द्वारा सावित्री की आराधना की। कुछ काल के अनन्तर व्रत के प्रभाव से ब्रह्माजी की पत्नी सावित्री ने प्रसन्न हो राजा को वर दिया कि 'राजन्! तुम्हें (मेरे ही अंश से) एक कन्या उत्पन्न होगी।' इतना कहकर सावित्रीदेवी अन्तर्धान हो गयीं और कुछ दिन बाद राजा को एक दिव्य कन्या उत्पन्न हुई। वह सावित्रीदेवी के वर से प्राप्त हुई थी, इसलिये राजा ने उसका नाम सावित्री ही रखा। धीरे-धीरे वह विवाह के योग्य हो गयी। सावित्री ने भी भृगु के उपदेश से सावित्री व्रत किया।एक दिन वह व्रत के अनन्तर अपने पिता के पास गयी और प्रणाम कर वहाँ बैठ गयी। पिता ने सावित्री को विवाहयोग्य जानकर अमात्यों से उसके विवाह के विषय में मन्त्रणा की; पर उसके योग्य किसी श्रेष्ठ वर को न देखकर पिता अश्वपति ने सावित्री से कहा – 'पुत्रि ! तुम वृद्धजनों तथा अमात्यों के साथ जाकर स्वयं ही अपने अनुरूप कोई वर ढूँढ़ लो।' सावित्री भी पिता की आज्ञा स्वीकार कर मन्त्रियों के साथ चल पड़ी। स्वल्प काल में ही राजर्षियों के आश्रमों, सभी तीर्थों और तपोवनों में घूमती हुई तथा वृद्ध ऋषियों का अभिनन्दन करती हुई वह मन्त्रियों सहित पुनः अपने पिता के पास लौट आयी। सावित्री ने देखा कि राजसभा में देवर्षि नारद बैठे हुए हैं। सावित्री ने देवर्षि नारद और पिता को प्रणामकर अपना वृत्तान्त इस प्रकार बताया महाराज! शाल्वदेश में द्युमत्सेन नाम के एक धर्मात्मा राजा हैं। उनके सत्यवान् नामक पुत्र का मैंने वरण किया है।' सावित्री की बात सुनकर देवर्षि नारद कहने लगे—‘राजन्! इसने बाल्य-स्वभाववश उचित निर्णय नहीं लिया। यद्यपि द्युमत्सेन का पुत्र सभी गुणों से सम्पन्न है, परंतु उसमें एक बड़ा भारी दोष है कि आज के ही दिन ठीक एक वर्ष के बाद उसकी मृत्यु हो जायगी। देवर्षि नारद की सुनकर राजा ने सावित्री से किसी अन्य वर को ढूँढ़ने के लिये कहा।बाल वनिता महिला आश्रमजय श्रीरामक्रमश...शेष अगले अंक में〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️

संक्षिप्त भविष्य पुराण  by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰️〰️🌸🌸🌸〰️〰️ ★उत्तरपर्व (चतुर्थ खण्ड)★  (एकसौ चौतीसवां दिन)  ॐ श्री परमात्मने नमः  श्री गणेशाय नमः  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  सावित्ति व्रत कथा एवं व्रत विधि...(भाग 1) 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️ राजा युधिष्ठिर ने कहा - भगवन् ! अब आप सावित्री-व्रत के विधान का वर्णन करें। भगवान् श्रीकृष्ण बोले- महाराज ! सावित्री नाम की एक राजकन्या ने वन में जिस प्रकार यह व्रत किया था, स्त्रियों के कल्याणार्थ मैं उस व्रत का वर्णन कर रहा हूँ, उसे आप सुनें । प्राचीन काल में मद्रदेश (पंजाब)-में एक बड़ा पराक्रमी, सत्यवादी, क्षमाशील, जितेन्द्रिय और प्रजापालन में तत्पर अश्वपति नाम का राजा राज्य करता था, उसे कोई संतान न थी। इसलिये उसने सपत्नीक व्रत द्वारा सावित्री की आराधना की। कुछ काल के अनन्तर व्रत के प्रभाव से ब्रह्माजी की पत्नी सावित्री ने प्रसन्न हो राजा को वर दिया कि 'राजन्! तुम्हें (मेरे ही अंश से) एक कन्या उत्पन्न होगी।' इतना कहकर सावित्रीदेवी अन्तर्धान हो गयीं और कुछ दिन बाद राजा को एक दिव्य कन्या उत्पन्न हुई। वह सावि...

श्रीमद्देवीभागवत (पाँचवा स्कन्ध) By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🌼〰️🌼🌼〰️🌼〰️〰️अध्याय 5 (भाग 1)॥श्रीभगवत्यै नमः ॥बृहस्पतिजी का इन्द्र के प्रति उपदेश, इन्द्र का भगवान् ब्रह्मा, शंकर तथा विष्णु के पास जाना...〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️बृहस्पति जी आगे बोले- हर्ष और शोक शत्रुतुल्य हैं। इन्हें अपने आत्मा को न सौंपे। विवेकी पुरुषों को चाहिये कि इनके उपस्थित होने पर धैर्य का ही अनुसरण करें। अधीर हो जाने पर दुःख का जैसा भयंकर रूप सामने दिखायी पड़ता है, वैसा धैर्य धारण करने पर नहीं दीखता। परंतु दुःख और सुख के सामने आने पर सहनशील बने रहना अवश्य ही दुर्लभ है। जो पुरुष हर्ष और शोक की अवस्था में अपनी सद्बुद्धि से निश्चय करके उनके प्रभाव से प्रभावित नहीं होता, उसके लिये कैसा सुख और कैसा दुःख। वैसी परिस्थिति में वह यह सोचे कि 'मैं निर्गुण हूँ', मेरा कभी नाश नहीं हो सकता। मैं इन चौबीस गुणों से पृथक् हूँ। फिर मुझे दुःख और सुख से क्या प्रयोजन ? भूख और प्यास का प्राण से, शोक और मोह का मन से तथा जरा और मृत्यु का शरीर से सम्बन्ध है । मैं इन छहों ऊर्मियों से रहित कल्याण स्वरूप हूँ। शोक और मोह- ये शरीर के गुण हैं। मैं इनकी चिन्ता में क्यों उलझँ। मैं शरीर नहीं हूँ और न मेरा इससे कोई स्थायी सम्बन्ध ही है। मेरा स्वरूप अखण्ड आनन्दमय है। प्रकृति और विकृति मेरे इस आनन्दमय स्वरूप से पृथक् हैं। फिर मेरा कभी भी दुःख से क्या सम्बन्ध है।' देवराज! तुम सच्चे मन से इस रहस्य को भलीभाँति समझकर ममता रहित हो जाओ। शतक्रतो! तुम्हारे दुःख के अभाव का सर्वप्रथम उपाय यही है। ममता ही परम दुःख है और निर्ममत्व - ममता का अभाव हो जाना परम सुख का साधन है। शचीपते! कोई सुखी होना चाहे तो संतोष का आश्रय ले। संतोष के अतिरिक्त सुख का स्थान और कोई नहीं है। * अथवा देवराज! यदि तुम्हारे पास ममता दूर करने वाले ज्ञान का नितान्त अभाव हो तो प्रारब्ध के विषय में विवेक का आश्रय लेना परम आवश्यक है। प्रारब्ध कर्मों का अभाव बिना भोगे नहीं हो सकता - यह स्पष्ट है। आर्य! सम्पूर्ण देवता तुम्हारे सहायक हैं। तुम स्वयं भी बुद्धिमान् हो। फिर भी जो होनी है, वह होकर ही रहेगी। तुम उसे टाल नहीं सकते। ऐसी स्थिति में सुख और दुःख की चिन्ता में नहीं पड़ना चाहिये। महाभाग ! सुख और दुःख – ये दोनों क्रमश: पुण्य एवं पाप के क्षय के सूचक हैं। अतएव विद्वान् पुरुषों को चाहिये कि सुख के अभाव में भी सर्वथा आनन्द का ही अनुभव । अतएव महाराज! इस अवसर पर सुयोग्य करें। मन्त्रियों से परामर्श लेकर विधिपूर्वक यत्न करने में कटिबद्ध हो जाओ। यत्न करने पर भी, जो होनहार होगा, वह तो सामने आयेगा ही।बाल वनिता महिला आश्रमक्रमश...शेष अगले अंक मेंजय माता जी की〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

श्रीमद्देवीभागवत (पाँचवा स्कन्ध)   By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰️〰️🌼〰️🌼🌼〰️🌼〰️〰️ अध्याय 5 (भाग 1) ॥श्रीभगवत्यै नमः ॥ बृहस्पतिजी का इन्द्र के प्रति उपदेश, इन्द्र का भगवान् ब्रह्मा, शंकर तथा विष्णु के पास जाना... 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ बृहस्पति जी आगे बोले- हर्ष और शोक शत्रुतुल्य हैं। इन्हें अपने आत्मा को न सौंपे। विवेकी पुरुषों को चाहिये कि इनके उपस्थित होने पर धैर्य का ही अनुसरण करें। अधीर हो जाने पर दुःख का जैसा भयंकर रूप सामने दिखायी पड़ता है, वैसा धैर्य धारण करने पर नहीं दीखता। परंतु दुःख और सुख के सामने आने पर सहनशील बने रहना अवश्य ही दुर्लभ है। जो पुरुष हर्ष और शोक की अवस्था में अपनी सद्बुद्धि से निश्चय करके उनके प्रभाव से प्रभावित नहीं होता, उसके लिये कैसा सुख और कैसा दुःख। वैसी परिस्थिति में वह यह सोचे कि 'मैं निर्गुण हूँ', मेरा कभी नाश नहीं हो सकता। मैं इन चौबीस गुणों से पृथक् हूँ। फिर मुझे दुःख और सुख से क्या प्रयोजन ? भूख और प्यास का प्राण से, शोक और मोह का मन से तथा जरा और मृत्यु का शरीर से सम्बन्ध है । मैं इन छहों ऊर्मियों से रहित कल्याण स्वरूप हूँ। श...

श्रीमद्भागवत महापुराणम् By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️षष्ठः स्कन्धः अथ षष्ठोऽध्यायःदक्षप्रजापति की साठ कन्याओं के वशं का विवरण...(भाग 2)〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️सङ्कल्पायाश्च सङ्कल्पः कामः सङ्कल्पजः स्मृतः ।वसवोऽष्टौ वसोः पुत्रास्तेषां नामानि मे शृणु ॥ १०द्रोणः प्राणो ध्रुवोऽर्कोऽग्निर्दोषो वसुर्विभावसुः । द्रोणस्याभिमते: ₹पल्या हर्षशोकभयादयः ॥ ११प्राणस्योर्जस्वती भार्या सह आयुः पुरोजवः । ध्रुवस्य भार्या धरणिरसूत विविधाः पुरः ॥ १२अर्कस्य वासना भार्या पुत्रास्तर्षादयः स्मृताः । अग्नेर्भार्या वसोर्धारा पुत्रा द्रविणकादयः ॥ १३स्कन्दश्च कृत्तिकापुत्रो ये विशाखादयस्ततः ।दोषस्य शर्वरीपुत्रः शिशुमारो हरेः कला ॥ १४वसोराङ्गिरसीपुत्रो विश्वकर्माकृतीपतिः । ततो मनुश्चाक्षुषोऽभूद् विश्वे साध्या मनोः सुताः ॥ १५विभावसोरसूतोषा व्युष्टं रोचिषमातपम् । पञ्चयामोऽथ भूतानि येन जाग्रति कर्मसु ॥ १६सरूपासूत' भूतस्य भार्या रुद्रांश्च कोटिशः ।ला रैवतोऽजो भवो भीमो वाम उग्रो वृषाकपिः ॥ १७अजैकपादहिर्बुध्न्यो बहुरूपो महानिति । रुद्रस्य पार्षदाश्चान्ये घोरा भूतविनायकाः ।। १८श्लोकार्थ〰️〰️〰️ सङ्कल्पा का पुत्र हुआ सङ्कल्प और उसका काम। वसु के पुत्र आठों वसु हुए। उनके नाम मुझसे सुनो ॥ १० ॥ द्रोण, प्राण, ध्रुव, अर्क, अग्नि, दोष, वसु और विभावसु । द्रोण की पत्नी का नाम है अभिमति । उससे हर्ष, शोक, भय आदि के अभिमानी देवता उत्पन्न हुए ॥ ११ ॥ प्राण की पत्नी ऊर्जस्वती के गर्भ से सह, आयु और पुरोजव नाम के तीन पुत्र हुए। धुव की पत्नी धरणी ने अनेक नगरों के अभिमानी देवता उत्पन्न किये ॥ १२ ॥ अर्क की पत्नी वासना के गर्भ से तर्ष (तृष्णा) आदि पुत्र हुए। अग्नि नामक वसु की पत्नी धारा के गर्भ से द्रविणक आदि बहुत-से पुत्र उत्पन्न हुए ॥ १३ ॥ कृत्तिका पुत्र स्कन्द भी अग्नि से ही उत्पन्न हुए। उनसे विशाख आदि का जन्म हुआ। दोष की पत्नी शर्वरी के गर्भ से शिशुमार का जन्म हुआ। वह भगवान्‌ का कलावतार है ॥ १४ ॥ वसु की पत्नी आङ्गिरसी से शिल्पकला के अधिपति विश्वकर्माजी हुए। विश्वकर्मा के उनकी भार्या कृती के गर्भ से चाक्षुष मनु हुए और उनके पुत्र विश्वेदेव एवं साध्यगण हुए ॥ १५ ॥ विभावसु की पत्नी उषा से तीन पुत्र हुए- व्युष्ट, रोचिष् और आतप। उनमें से आतप के पञ्चयाम (दिवस) नामक पुत्र हुआ, उसी के कारण सब जीव अपने-अपने कार्यों में लगे रहते हैं ॥ १६ ॥भूत की पत्नी दक्षनन्दिनी सरूपा ने कोटि-कोटि रुद्रगण उत्पन्न किये। इनमें रैवत, अज, भव, भीम, वाम, उग्र, वृषाकपि, अजैकपाद, अहिर्बुध्न्य, बहुरूप, और महान्— ये ग्यारह मुख्य हैं। भूत की दूसरी पत्नी भूता से भयङ्कर भूत और विनायकादि का जन्म हुआ। ये सब ग्यारह वें प्रधान रुद्र महान् के पार्षद हुए ॥ १७-१८ ॥बाल वनिता महिला आश्रमक्रमशः...शेष अलगे लेख में...〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️

श्रीमद्भागवत महापुराणम्   By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️ षष्ठः स्कन्धः अथ षष्ठोऽध्यायः दक्षप्रजापति की साठ कन्याओं के वशं का विवरण...(भाग 2) 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️ सङ्कल्पायाश्च सङ्कल्पः कामः सङ्कल्पजः स्मृतः । वसवोऽष्टौ वसोः पुत्रास्तेषां नामानि मे शृणु ॥ १० द्रोणः प्राणो ध्रुवोऽर्कोऽग्निर्दोषो वसुर्विभावसुः ।  द्रोणस्याभिमते: ₹पल्या हर्षशोकभयादयः ॥ ११ प्राणस्योर्जस्वती भार्या सह आयुः पुरोजवः । ध्रुवस्य भार्या धरणिरसूत विविधाः पुरः ॥ १२ अर्कस्य वासना भार्या पुत्रास्तर्षादयः स्मृताः ।  अग्नेर्भार्या वसोर्धारा पुत्रा द्रविणकादयः ॥ १३ स्कन्दश्च कृत्तिकापुत्रो ये विशाखादयस्ततः । दोषस्य शर्वरीपुत्रः शिशुमारो हरेः कला ॥ १४ वसोराङ्गिरसीपुत्रो विश्वकर्माकृतीपतिः । ततो मनुश्चाक्षुषोऽभूद् विश्वे साध्या मनोः सुताः ॥ १५ विभावसोरसूतोषा व्युष्टं रोचिषमातपम् । पञ्चयामोऽथ भूतानि येन जाग्रति कर्मसु ॥ १६ सरूपासूत' भूतस्य भार्या रुद्रांश्च कोटिशः ।ला रैवतोऽजो भवो भीमो वाम उग्रो वृषाकपिः ॥ १७ अजैकपादहिर्बुध्न्यो बहुरूपो महानिति । रुद्रस्य पार्षदाश्चान्ये ...

कौन बनता है भूत प्रेत?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰〰🌼〰〰🌼〰〰जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में अटका आत्मा भूत बन जाता है। जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है। जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है।आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं। जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं। भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि कहा जाता है।भूतों के प्रकार〰〰〰〰हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है। इसी तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है।84 लाख योनियां〰〰〰〰〰पशुयोनि, पक्षीयोनि, मनुष्य योनि में जीवन यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चले जाते हैं। आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 लाख योनियां है, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं। प्रेतयोनि में जाने वाले लोग अदृश्य और बलवान हो जाते हैं। लेकिन सभी मरने वाले इसी योनि में नहीं जाते और सभी मरने वाले अदृश्य तो होते हैं लेकिन बलवान नहीं होते। यह आत्मा के कर्म और गति पर निर्भर करता है। बहुत से भूत या प्रेत योनि में न जाकर पुन: गर्भधारण कर मानव बन जाते हैं। पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों का तर्पण करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि पितरों का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत-प्रेत के रूप में होता है। गरुड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीमद्‍भागवत पुराण में भी धुंधकारी के प्रेत बन जाने का वर्णन आता है।अतृप्त आत्माएं बनती है भूत〰〰〰〰〰〰〰〰〰जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है अवश्य ही वह भूत बनकर भटकता है। और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है वह भी भू‍त बनकर भटकता है। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं।यम नाम की वायु〰〰〰〰〰वेद अनुसार मृत्युकाल में 'यम' नामक वायु में कुछ काल तक आत्मा स्थिर रहने के बाद पुन: गर्भधारण करती है। जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है तब वह गहरी सुषुप्ति अवस्था में होती है। जन्म से पूर्व भी वह इसी अवस्था में ही रहती है। जो आत्मा ज्यादा स्मृतिवान या ध्यानी है उसे ही अपने मरने का ज्ञान होता है और वही भूत बनती है।जन्म मरण का चक्र〰〰〰〰〰〰जिस तरह सुषुप्ति से स्वप्न और स्वप्न से आत्मा जाग्रति में जाती हैं उसी तरह मृत्युकाल में वह जाग्रति से स्वप्न और स्वप्न से सु‍षुप्ति में चली जाती हैं फिर सुषुप्ति से गहन सुषुप्ति में। यह चक्र चलता रहता है।भूत की भावना〰〰〰〰〰भूतों को खाने की इच्छा अधिक रहती है। इन्हें प्यास भी अधिक लगती है, लेकिन तृप्ति नहीं मिल पाती है। ये बहुत दुखी और चिड़चिड़ा होते हैं। यह हर समय इस बात की खोज करते रहते हैं कि कोई मुक्ति देने वाला मिले। ये कभी घर में तो कभी जंगल में भटकते रहते हैं।भूत की स्थिति〰〰〰〰ज्यादा शोर, उजाला और मंत्र उच्चारण से यह दूर रहते हैं। इसीलिए इन्हें कृष्ण पक्ष ज्यादा पसंद है और तेरस, चौदस तथा अमावस्या को यह मजबूत स्थिति में रहकर सक्रिय रहते हैं। भूत-प्रेत प्रायः उन स्थानों में दृष्टिगत होते हैं जिन स्थानों से मृतक का अपने जीवनकाल में संबंध रहा है या जो एकांत में स्थित है। बहुत दिनों से खाली पड़े घर या बंगले में भी भूतों का वास हो जाता है।भूत की ताकत〰〰〰〰भूत अदृश्य होते हैं। भूत-प्रेतों के शरीर धुंधलके तथा वायु से बने होते हैं अर्थात् वे शरीर-विहीन होते हैं। इसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। आयुर्वेद अनुसार यह 17 तत्वों से बना होता है। कुछ भूत अपने इस शरीर की ताकत को समझ कर उसका इस्तेमाल करना जानते हैं तो कुछ नहीं। कुछ भूतों में स्पर्श करने की ताकत होती है तो कुछ में नहीं। जो भूत स्पर्श करने की ताकत रखता है वह बड़े से बड़े पेड़ों को भी उखाड़ कर फेंक सकता है। ऐसे भूत यदि बुरे हैं तो खतरनाक होते हैं। यह किसी भी देहधारी (व्यक्ति) को अपने होने का अहसास करा देते हैं। इस तरह के भूतों की मानसिक शक्ति इतनी बलशाली होती है कि यह किसी भी व्यक्ति का दिमाग पलट कर उससे अच्छा या बुरा कार्य करा सकते हैं। यह भी कि यह किसी भी व्यक्ति के शरीर का इस्तेमाल करना भी जानते हैं। ठोसपन न होने के कारण ही भूत को यदि गोली, तलवार, लाठी आदि मारी जाए तो उस पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता। भूत में सुख-दुःख अनुभव करने की क्षमता अवश्य होती है। क्योंकि उनके वाह्यकरण में वायु तथा आकाश और अंतःकरण में मन, बुद्धि और चित्त संज्ञाशून्य होती है इसलिए वह केवल सुख-दुःख का ही अनुभव कर सकते हैं।अच्‍छी और बुरी आत्मा〰〰〰〰〰〰〰वासना के अच्छे और बुरे भाव के कारण मृतात्माओं को भी अच्छा और बुरा माना गया है। जहां अच्छी मृतात्माओं का वास होता है उसे पितृलोक तथा बुरी आत्मा का वास होता है उसे प्रेतलोक आदि कहते हैं। अच्छे और बुरे स्वभाव की आत्माएं ऐसे लोगों को तलाश करती है जो उनकी वासनाओं की पूर्ति कर सकता है। बुरी आत्माएं उन लोगों को तलाश करती हैं जो कुकर्मी, अधर्मी, वासनामय जीवन जीने वाले लोग हैं। फिर वह आत्माएं उन लोगों के गुण-कर्म, स्वभाव के अनुसार अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती है। जिस मानसिकता, प्रवृत्ति, कुकर्म, सत्कर्मों आदि के लोग होते हैं उसी के अनुरूप आत्मा उनमें प्रवेश करती है। अधिकांशतः लोगों को इसका पता नहीं चल पाता। अच्छी आत्माएं अच्छे कर्म करने वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे भी तृप्त करती है और बुरी आत्माएं बुरे कर्म वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे बुराई के लिए और प्रेरित करती है। इसीलिए धर्म अनुसार अच्छे कर्म के अलावा धार्मिकता और ईश्वर भक्ति होना जरूरी है तभी आप दोनों ही प्रकार की आत्मा से बचे रहेंगे।कौन बनता है भूत का शिकार〰〰〰〰〰〰〰〰〰धर्म के नियम अनुसार जो लोग तिथि और पवित्रता को नहीं मानते हैं, जो ईश्वर, देवता और गुरु का अपमान करते हैं और जो पाप कर्म में ही सदा रत रहते हैं ऐसे लोग आसानी से भूतों के चंगुल में आ सकते हैं। इनमें से कुछ लोगों को पता ही नहीं चल पाता है कि हम पर शासन करने वाला कोई भूत है। जिन लोगों की मानसिक शक्ति बहुत कमजोर होती है उन पर ये भूत सीधे-सीधे शासन करते हैं। बाल वनिता महिला आश्रमजो लोग रात्रि के कर्म और अनुष्ठान करते हैं और जो निशाचारी हैं वह आसानी से भूतों के शिकार बन जाते हैं। हिन्दू धर्म अनुसार किसी भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात्रि में नहीं किया जाता। रात्रि के कर्म करने वाले भूत, पिशाच, राक्षस और प्रेतयोनि के होते हैं।〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰

कौन बनता है भूत प्रेत? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰〰🌼〰〰🌼〰〰 जिसका कोई वर्तमान न हो, केवल अतीत ही हो वही भूत कहलाता है। अतीत में अटका आत्मा भूत बन जाता है। जीवन न अतीत है और न भविष्य वह सदा वर्तमान है। जो वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर कदम बढ़ाता है। आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं। जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं।  भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि कहा जाता है। भूतों के प्रकार 〰〰〰〰 हिन्दू धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक...

त्याग की कहानी 〰️〰️🌼〰️〰️By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबबहुत पुरानी बात है। किसी नगर में अनाम नाम का एक नवयुवक रहता था । बेचारे के मां-बाप स्वर्ग सिधार चुके थे । गरीब होने के कारण उसके पास अपने खेत भी नहीं थे, औरों के खेतों में वह दिन भर छोटे-मोटे काम करता और बदले में खाने के लिए आटा-चावल ले आता । घर आकर वह अपना भोजन तैयार करता और खा-पीकर सो जाता । जीवन ऐसे ही संघर्षपूर्ण था, ऊपर से एक और मुसीबत उसके पीछे पड़ गयी ।एक दिन उसने अपने लिए चार रोटियाँ बनाई । हाथ-मुंह धो कर वापस आया, तब तक 3 ही बचीं । दूसरे दिन भी यही हुआ । तीसरे दिन उसने रोटियाँ बनाने के बाद उस स्थान पर नज़र रखी । उसने देखा कि कुछ देर बाद वहाँ एक मोटा सा चूहा आता है और एक रोटी उठा कर वहाँ से जाने लगता है । अनाम तैयार रहता है, वह फ़ौरन चूहे को पकड़ लेता है ।चूहा बोला .. “भैया, मेरी किस्मत का क्यों खा रहे हो ? मेरी चपाती मुझे ले जाने दो"।“तुम्हें ले जाने दी तो मेरा पेट कैसे भरेगा ? मैं पहले से ही अपने जीवन से परेशान हूँ, ऊपर से अब पेट भर खाना भी ना मिले तो मैं क्या करूँगा …. ना जाने मेरे जीवन में खुशहाली कब आएगी ?”, अनाम बोला ।इस पर चूहे ने कहा - तुम्हारे सारे सवालों का जवाब तुम्हें मतंग ऋषि दे सकते हैं।अनाम ने पूछा कौन हैं वह ? चूहे ने उत्तर दिया - वह एक पहुँचे हुए संत हैं, उत्तर दिशा में कई पर्वतों और नदियों को पार करके ही उनके आश्रम तक पहुँचा जा सकता है । तुम उन्हीं के पास जाओ, वही तुम्हारा उद्धार करेंगे ।अनाम चूहे की बात मान गया, और अगली सुबह ही खाने-पीने की गठरी बाँध कर आश्रम की ओर बढ़ चला ।काफी दूर चलने के बाद उसे एक हवेली दिखाई दी । अनाम वहाँ गया और रात भर के लिए शरण माँगी ।हवेली की मालकिन ने पूछा – बेटा कहाँ जा रहे हो ?अनाम मैं मतंग ऋषि के आश्रम जा रहा हूँ ।मालकिन – बहुत अच्छा, उनसे मेरे एक प्रश्न का उत्तर मांग कर लाना, कि मेरी बेटी 20 साल की हो गयी है, वह देखने में अत्यंत सुन्दर है, उसके अन्दर हर प्रकार के गुण भी विद्यमान हैं । बेचारी ने अभी तक एक शब्द नहीं बोला है, पूछना वह कब बोलना शुरू करेगी ? और ऐसा कहते-कहते मालकिन रो पड़ीं ।अनाम - जी आप परेशान ना हों, मैं आपका उत्तर ज़रूर लेकर आऊँगा ।अनाम अगले दिन आगे चल पड़ा । रास्ता बहुत ज्यादा लंबा था । रास्ते में उसे बड़े-बड़े बर्फीले पहाड़ मिले । उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे पार करूँ ? समय बीत रहा था । तभी उसे एक तांत्रिक दिखाई दिया जो वहाँ बैठ कर तपस्या कर रहा था ।अनाम, तांत्रिक के पास गया और उससे बोला कि मुझे मतंग ऋषि के दर्शन को जाना है कैसे जाऊँ ? रास्ता तो बहुत ही परेशानी वाला लग रहा है ?तांत्रिक मैं तुम्हारा सफ़र आसान बना दूँगा पर तुम्हे मेरे एक प्रश्न का उत्तर लाना होगा।अनाम- किन्तु जब आप मुझे वहाँ पहुँचा सकते हैं, तो स्वयं क्यों नहीं चले जाते ?तांत्रिक - क्योंकि मैंने इस स्थान को छोड़ा तो मेरी तपस्या भंग हो जायेगी ।अनाम - ठीक है आप अपना प्रश्न बताएँ ।तांत्रिक - पूछना मेरी तपस्या कब सफल होगी ? मुझे ज्ञान कब मिलेगा ?अनाम - ठीक है, मैं इस प्रश्न का उत्तर ज़रूर लाऊँगा ।इसके बाद तांत्रिक ने अपनी तांत्रिक विद्या से लड़के को पहाड़ पार करा दिया।अब आश्रम तक पहुँचने के लिए सिर्फ एक नदी ही पार करनी थी ।अनाम इतनी विशाल नदी देखकर घबरा गया, तभी उसे नदी के किनारे एक बड़ा सा कछुआ दिखाई दिया । लड़के ने कछुए से मदद माँगी । आप मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर नदी पार करा दीजिए ।कछुए ने कहा ठीक है । जब दोनों नदी पार कर रहे थे, तो कछुए ने पूछा- कहाँ जा रहे हो ?अनाम ने उत्तर दिया - मैं मतंग ऋषि से मिलने जा रहा हूँ ।कछुए ने कहा - “ये तो बहुत अच्छी बात है । क्या तुम मेरा एक प्रश्न उनसे पूछ सकते हो ?अनाम - जी अपना प्रश्न बताइए ।कछुआ° – मैं एक असाधारण कछुआ हूँ जो समय आने पर ड्रैगन बन सकता है । 500 सालों से मै इसी नदी में हूँ और ड्रैगन बनने की कोशिश कर रहा हूँ । मैं ड्रैगन कब बनूँगा ? बस यह पूछ कर के आ जाना ।नदी पार करके कुछ दूर जाने पर मतंग ऋषि का आश्रम दिखाई देने लगा ।आश्रम में प्रवेश करने पर शिष्यों ने अनाम का स्वागत किया ।संध्या समय ऋषि ने अनाम को दर्शन दिए और बोले – पुत्र, मैं तुम्हारे किन्ही भी तीन प्रश्नों का उत्तर दे सकता हूँ । पूछो अपने प्रश्न ।अनाम असमंजस में फंस गया कि वह अपना प्रश्न पूछे या उसकी मदद करने वाली मालकिन, तांत्रिक और कछुए का !वह अपना प्रश्न पूछना चाहता था, पर उसने सोचा कि उसे मुसीबत में मदद करने वाले लोगों का उपकार नहीं भूलना चाहिये, उसे ये नहीं भूलना चाहिए कि उसने उन लोगों से उनके प्रश्नों के उत्तर लाने का वादा किया है ।उसी पल उसने निश्चय किया कि वह खूब मेहनत करेगा और अपनी ज़िन्दगी बदल देगा … लेकिन इस समय उन 3 लोगों की जिंदगी में बदलाव लाना जरूरी है । और यही सोचते-सोचते उसने ऋषि से पूछा हवेली के मालिक की बेटी कब बोलेगी ?ऋषि° – जैसे ही उसका विवाह होगा, वह बोलना शुरू कर देगी ।अनाम – तांत्रिक को मोक्ष कब प्राप्त होगा ?ऋषि – जब वह अपनी तांत्रिक विद्या का मोह छोड़ उसे किसी और को दे देगा तब उसे ज्ञान की प्राप्ति हो जाएगी ।अनाम – वह कछुआ ड्रैगन कब बनेगा ?ऋषि – जिस दिन उसने अपना कवच उतार दिया वह ड्रैगन बन जाएगा ।अनाम ऋषि से उत्तर जानकर बहुत प्रसन्न हुआ । अगली सुबह वह ऋषि का चरण स्पर्श कर वहाँ से प्रस्थान कर गया। वापस रास्ते में कछुआ मिला । उसने अनाम को नदी पार करा दी और अपने प्रश्न के बारे में पूछा । तब अनाम ने कछुए से कहा कि भैया अगर तुम अपना कवच उतार दो तो तुम ड्रैगन बन जाओगे ।कछुए ने जैसे ही कवच उतारा, उसमे से ढेरों मोती झड़ने लगे, कछुए ने वे सारे मोती अनाम को दे दिए और कुछ ही पलों में ड्रैगन में बदल गया । उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा । उसने फ़ौरन अनाम को अपने ऊपर बिठाया और बर्फीली पहाड़ियाँ पार करा दीं । थोड़ा आगे जाने पर उसे तांत्रिक मिला ।अनाम- ने उसे ऋषि की बात बता दी, कि जब आप अपनी तांत्रिक विद्या किसी और को दे देंगे तो आपको ज्ञान की प्राप्ति हो जाएगी ।तांत्रिक- बोला, अब मैं कहाँ किसे ढूँढ़ने जाऊँगा, ऐसा करो तुम ही मेरी विद्या ले लो और ऐसा कहते हुए तांत्रिक ने अपनी सारी विद्या अनाम को दे दी और अगले ही क्षण उसे ज्ञान प्राप्ति की अनुभूति हो गयी ।अनाम वहाँ से आगे बढ़ा और तांत्रिक से मिली विद्या के दम पर जल्द ही हवेली पहुँच गया ।मालकिन ने उसे देखते ही पूछा क्या कहा, ऋषि मतंग ने मेरी बिटिया के बारे में ?“जिस दिन उसकी शादी हो जायेगी, वह बोलने लगेगी ।”, अनाम ने उत्तर दिया ।मालकिन बोलीं तो देर किस बात की है, तुम इतनी बड़ी खुशखबरी लाये हो भला तुम से अच्छा लड़का उसके लिए कौन हो सकता है ?दोनों की शादी करा दी गयी और सचमुच लड़की बोलने लगी ।अनाम- अपनी पत्नी को लेकर गाँव पहुँचा । उसने सबसे पहले उस चूहे को धन्यवाद दिया और अपनी नयी हवेली में उसके लिए भी रहने की एक जगह बनवा दी ।बाल वनिता महिला आश्रमकभी जीवन से हार चुके अनाम के पास आज धन-दौलत,परिवार,ताकत सब कुछ था,सिर्फ इसलिए क्योंकि उसने अपने प्रश्न का त्याग किया था,उसने खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचा था और यही जीवन में कामयाब होने का फार्मूला है,ये मत पूछिए कि औरों ने आपके लिए क्या किया ये सोचिये कि आपने औरों के लिए क्या किया ? जब आप इस सेवा भाव के साथ दुनियाँ की सेवा करेंगे और दूसरों के लिए अपनी इच्छा का त्याग करेंगे तो ईश्वर आपके जीवन में भी चमत्कार करेगा और त्याग की ताकत से आपको जीवन की हर खुशियाँ सहज ही प्राप्त हो जायेंगी ..!!〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

त्याग की कहानी  〰️〰️🌼〰️〰️ By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब बहुत पुरानी बात है। किसी नगर में अनाम नाम का एक नवयुवक रहता था । बेचारे के मां-बाप स्वर्ग सिधार चुके थे । गरीब होने के कारण उसके पास अपने खेत भी नहीं थे, औरों के खेतों में वह दिन भर छोटे-मोटे काम करता और बदले में खाने के लिए आटा-चावल ले आता । घर आकर वह अपना भोजन तैयार करता और खा-पीकर सो जाता । जीवन ऐसे ही संघर्षपूर्ण था, ऊपर से एक और मुसीबत उसके पीछे पड़ गयी । एक दिन उसने अपने लिए चार रोटियाँ बनाई । हाथ-मुंह धो कर वापस आया, तब तक 3 ही बचीं । दूसरे दिन भी यही हुआ । तीसरे दिन उसने रोटियाँ बनाने के बाद उस स्थान पर नज़र रखी । उसने देखा कि कुछ देर बाद वहाँ एक मोटा सा चूहा आता है और एक रोटी उठा कर वहाँ से जाने लगता है । अनाम तैयार रहता है, वह फ़ौरन चूहे को पकड़ लेता है । चूहा बोला .. “भैया, मेरी किस्मत का क्यों खा रहे हो ? मेरी चपाती मुझे ले जाने दो"। “तुम्हें ले जाने दी तो मेरा पेट कैसे भरेगा ? मैं पहले से ही अपने जीवन से परेशान हूँ, ऊपर से अब पेट भर खाना भी ना मिले तो मैं क्या करूँगा …. ना जाने मेरे जीवन में खुशहाली कब आएगी ?”, ...

*बुरी नज़र उतारने के ज्योतिषीय उपाय-*By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️यदि किसी घर को नज़र लग जाए तो उस घर में क्लेश पैदा हो जाता है। घर में चोरी-चकारी की घटना होती है और उस घर में अशांति का माहौल बना रहता है। घर के सदस्य किसी न किसी रोग से पीड़ित होने लगते हैं। उस घर में दरिद्रता आने लगती है।यदि काम-धंधे को नज़र लग जाए तो व्यापार ठप होने लगता है। बिज़नेस में उसे लाभ की बजाय हानि होती है।यदि किसी व्यक्ति को नज़र लग जाए तो वह रोगी अथवा किसी बुरी संगति में फंस जाता है जिससे समाज में उसकी प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है अथवा उसके बने बनाए काम बिगड़ जाते हैं।यदि किसी शिशु को नज़र लग जाए तो वह बीमार पड़ जाता है अथवा वह बिना बात के ज़ोर-ज़ोर से रोता है।नज़र उतारने के ज्योतिषीय उपाय-〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ज्योतिष के अनुसार यदि किसी जातक की कुंडली में लग्नेश और चंद्रमा राहु से पीड़ित हों तो आपको नज़र दोष का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा जन्मकुंडली में नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो। इस स्थिति में उस जातक को किसी की बुरी नज़र लग सकती है। अतः कुंडली में राहु ग्रह के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए उपाय करने चाहिए। इसके अलावा सूर्य को क्रूर ग्रह माना जाता है। इसलिए सूर्य के उपाय भी ज़रुरी है। इसमें आपके लिए शनि ग्रह के उपाय भी ज़रुरी है। जैसे -👉 बुधवार के दिन सप्त धान्य (सात प्रकार के अनाज) का दान करें।👉 बुधवार के दिन नागरमोथा की जड़ धारण करें।👉 राहु यंत्र की स्थापना कर उसी पूजा करें।👉 नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।बुरी नज़र उतारने के उपाय-〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️निम्न टोटकों को अपनाकर भी आप अपने व्यापार में बढ़ोत्तरी ला सकते हैंः👉 पंचमुखी का हनुमान जी का लॉकेट धारण करें।👉 हनुमान चालीसा एवं बजरंग बाण का नित्य जापा करें।👉 हनुमान जी के मंदिर जाकर उसके कंधों का सिंदूर माथे पर लगाएँ।👉 यदि कोई व्यक्ति बुरी नज़र से प्रभावित है तो उसे भैरो बाबा के मंदिर से मिलने वाला काला धागा धारण करना चाहिए। इससे उप पर लगी बुरी नज़र उतर जाएगी।👉 यदि बार-बार धन हानि हो रही है तो लाल कपड़े में दो कौड़ियां बांधकर तिजोरी में रख दे।👉 एक रोटी बनाएं और उसे केवल एक तरफ़ से ही सेंकें। अब सिके हुए भाग पर तेल लगाकर उसमें लाल मिर्च एवं नमक दो डेली रखें। अब नज़र दोष से पीड़ित व्यक्ति के ऊपर सात बार इसे फिराकर चुपचाप से इसे किसी चौराह पर रखें।बच्चों की नजर उतारने के उपाय〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️👉 बच्चों की बुरी नजर उतारने के उपाय हेतूु बचपन में हमारी दादी, नानी या माँ के द्वारा सूखी लाल मिर्च, फिटकरी, मुठ्ठी भर नमक या फिर नीम की टहनी आदि के टोटके से हमारी नज़र उतारी गई होगी। नज़र उतारने के दादी मां के घरेलू नुस्खे होते हैं। इसके अलावा जानते हैं अन्य टोटके।👉 पीली कौड़ी में छेद करके उसे बच्चे को पहनाना चाहिए।👉 बच्चों को मोती चांद का लॉकेट पहनाएं या काले-सफेद मोती जड़ित नज़रबंद का ब्रेसलेट पहनाएं।👉 यदि बच्चा दूध पीने में आनाकानी कर रहा है तो उसके ऊपर से दूध को उसारकर कुत्ते को पिला दें।👉यदि आप किसी को शक़ है कि बच्चे को उसी की नज़र लगी है तो उसका हाथ बच्चे के ऊपर फिरवाएं।दो लाल सूखी मिर्च, थोड़ा सेंधा नमक, थोड़े सरसो के बीज लें। इसके बाद बच्चे के उपर से नीचे, आगे और पीछे तीन बार घुमाए अब एक गर्म पर यह सब डाल दें। धुआं उठने के बाद कुछ ही देर में बुरी नजर उतर जाएगी।बाल वनिता महिला आश्रम〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️नोट; अधिक जानकारी अथवा कुंडली विश्लेषण के लिए मैसेंजर पर संपर्क करें।धन्यवाद#बाल_वनिता_महिला_आश्रम.

*बुरी नज़र उतारने के ज्योतिषीय उपाय-* By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ यदि किसी घर को नज़र लग जाए तो उस घर में क्लेश पैदा हो जाता है। घर में चोरी-चकारी की घटना होती है और उस घर में अशांति का माहौल बना रहता है। घर के सदस्य किसी न किसी रोग से पीड़ित होने लगते हैं। उस घर में दरिद्रता आने लगती है। यदि काम-धंधे को नज़र लग जाए तो व्यापार ठप होने लगता है। बिज़नेस में उसे लाभ की बजाय हानि होती है। यदि किसी व्यक्ति को नज़र लग जाए तो वह रोगी अथवा किसी बुरी संगति में फंस जाता है जिससे समाज में उसकी प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है अथवा उसके बने बनाए काम बिगड़ जाते हैं। यदि किसी शिशु को नज़र लग जाए तो वह बीमार पड़ जाता है अथवा वह बिना बात के ज़ोर-ज़ोर से रोता है। नज़र उतारने के ज्योतिषीय उपाय- 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ज्योतिष के अनुसार यदि किसी जातक की कुंडली में लग्नेश और चंद्रमा राहु से पीड़ित हों तो आपको नज़र दोष का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा जन्मकुंडली में नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो। इस स्थिति में उस जातक को किसी की बुरी नज़र ...

वर कन्या चयन शुभ-अशुभ योग के By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब01. वर के सप्तमेश की राशि में कन्या की राशि हो तो शुभफल प्रद । -02. कन्या की राशि वर के सप्तमेश का उच्च स्थान हो ।03. वर के सप्तमेश के नीच राशि में कन्या की राशि हो ।04. वर का शुक्र जिस राशि में हो। वही राशि कन्या की हो ।05. वर का लग्नेश जिस राशि में हो वही राशि कन्या की हो ।06. वर की जन्म राशि से सप्तम स्थान में जो राशि पड़े वही राशि कन्या की हो । 07. इन योगों में दाम्पत्य जीवन सुखमय व्यतीत होता है। सप्तमेश 6, 8, 12 भाव में होऔर शुभ ग्रह से दृष्टि नहीं हो। सप्तमेश नीच का हो। सप्तमेश अस्तंगत हो इन 3 योगों में स्त्री सुख में बाधा होती है ।०८. यदि सप्तमेश द्वादश भाव में हो और लग्नेश व जन्म राशीश सप्तम भाव में हो तब या तो अविवाहित जीवन बने अथवा दाम्पत्य जीवन दुखमय हो ।09. चन्द्र और शुक्र पर शनि मंगल की दृष्टि भी विवाह सम्बन्ध में बाधक होती है ।10. 1,7,12 भाव में पाप ग्रह हो चन्द्रमा 5वें निर्वली हो तो अविवाहित जीवन ।11. श+चं सप्तम में होने से स्त्री बन्ध्या होती है। 12. बु+शु सप्तम में स्त्री सुख में बाधा ।13. शु+मं ७वें या त्रिकोण में शु+ मं नवम में शु मं पञ्चम में होने से दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं होता। + से14. पापयुक्त शुक्र 5,7,9 वे भाव होने पर भी स्त्री का वियोग रहता है ।15. लग्न सप्तम और चन्द्र तीनों लग्न द्विस्वभाव राशि में अथवा लग्नेश सप्तमेश, जन्मराशीश तीनों द्विस्वभाव राशि में हो अथवा शुक्र द्विस्वभाव राशि में (3,6, 9, 12) हो तो 2 विवाह होते हैं।16. सप्तमेश शुभ ग्रह सहित 6, 8, 12 वें भाव में और सप्तम में पापग्रह के होने से 2 विवाह होते हैं।17. यदि शुक्र पापग्रह के साथ हो । शुक्र नीच राशि का हो । शुक्र नीच नवांश का हो ।18. शुक्र अस्त हो पापाक्रान्त हो तो 2 विवाह होते हैं।19. सप्तमेश की दृष्टि रहित मंगल 7, 8, 12वें भाव में होने से 2 विवाह होते हैं। यदि 1,2,7 भाव में कोई एक पापग्रह स्थिति हो और सप्तमेश नीच राशिगत हो तो अथवा अस्त हो तो 3 विवाह होते हैं। 20. सप्तमेश एकादशेश का दृष्टि सम्बंध हो और बली त्रिशांश में हो तो अधिक स्त्रियाँ होती हैं।21. चं+श सप्तम में बहुपत्नी योग बनाते हैं ।22. गुरु अपने उच्च नवमांश का हो तो बहुपत्नी योग बनाता है। 23. 1,7 भाव के स्वामी और जन्म राशि के स्वामी तथा शुक्र उच्च राशि के होने पर बहुदारा योग बनाता है।24. बलवान् बुध लग्नेश से दशमस्थ हो और चन्द्रमा लग्न से तीसरे या सातवें हो तो जातक स्त्री समूह से घिरा हुआ रहता है। 25. सप्तमेश दशम में दशमेश सप्तम में द्वितीयेश 7वें या 10वें हो तो अनेक स्त्रियों का योग बनता है।26. लग्नेश दशम में बली बुध के साथ सप्तमेश चन्द्र के साथ तृतीय भाव में होने से स्त्रियों का शिकार बनकर जीवनयापन करता है ।27. सप्तम स्थान का शुक्र द्विस्वभाव राशि में स्थित होकर पापग्रह से द्रष्ट हो तो एक सेअधिक विवाह होते हैं, शुक्र सप्तम में स्वराशि का भी हो तो यह कल घटित होगा। 28. सप्तम स्थान में कोई क्लीव (नपुंसक) ग्रह हो और एकादश में 2 ग्रह स्थित हो तो स्त्री के जीवित रहने पर ही दूसरी स्त्री होती है।स्त्री के गुणदोषादि का विचार 01. शुक्र चर राशि में हो, गुरु सप्तमस्थ हो लग्नेश बली हो तो स्त्री पतिव्रता होती है ।02. सप्तमेश या शुक्र गुरु से युत या द्रष्ट होने पर शुभ लक्षण स्त्री |03. गुरु सप्तमस्थ हो या सप्तमेश हो उस पर बुध शुक्र की दृष्टि से स्त्री सुलक्षणा । 04. सप्तमेश केन्द्रस्थ शुभग्रह के साथ हो अथवा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो स्त्री सुलक्षणा तथा स्वयं धनी व अधिकारी होती है ।05. गुरु से द्रष्ट सप्तम भाव होने पर भी स्त्री दयालु सुन्दरी व चरित्रवान् होती है ।06. सप्तमेश शनि सप्तमस्थ हो तो स्त्री झगड़ालू होते हुए भी सुलक्षणा होती है। 07. लग्नाधिपति सप्तम में सप्तमेश पंचम में होने से पति स्त्री का आज्ञाकारी होता है।08. लग्न में राहु व केतु रहने से स्त्री पति के वशीभूत होती है । 09. यदि शुक्र उच्च हो या शुभ नवमांश में हो अथवा सप्तमेश ग्रह से युक्त द्रष्ट हो अथवा सप्तमेश शुभग्रह के साथ हो तो स्त्री अच्छी मिलती है।10. सप्तमेश सूर्य शुभ ग्रहयुक्त दृष्ट हो अथवा शुभराशि गत हो या शुभ नवमांश में हो तो स्त्री आज्ञाकारी होती है।11. सप्तमस्थ चन्द्र पापयुत दृष्ट या पाप राशिगत या पाप नवमांश में हो तो कुटिल स्वभाव की स्त्री होती है। यदि चन्द्रशुभ ग्रहयुत दृष्ट या शुभ नवमांश में हो तो श्रेष्ठ स्वभाव वाली चंचल स्त्री होती है।12. सप्तमस्थ मंगल उच्चस्थ व शुभयुत दृष्ट हो तो स्त्री निर्दयी परन्तु आज्ञाकारी। 13. सप्तमेश बुध नीचस्थ, पापयुत द्रष्ट, अष्टम द्वादश भावगत, अस्तगंत, पापक्रान्त आदि हो तो स्त्री पति की जानलेवा होती है।14. शुक्र सप्तमेश पापयुक्तदृश्य नीचस्थ अस्तंगत, शत्रु राशिगत आदि हो तो स्त्री (व्यभिचारिणी) होती है।15. ससमेश शनि भी शुक्र जैसी स्थिति में हो तो स्त्री कुल्टा होती है । 16. राहु केतु सप्तमस्थ होने से उस पर पाप ग्रह की दृष्टि भी हो तो स्त्री पति को विषपान कराने वाली होती है ।17. सप्तमेश 6, 8, 12 भाव में शुक्र निर्बली से उसकी स्त्री अच्छी नहीं होती ।विवाह समय01. सप्तमेश जिस राशि व नवमांश में हो, दोनों में जो बलवान् हो उसके दशाकाल मेंजब गोचर में गुरु सप्तमेश स्थित राशि से त्रिकोण में आने पर विवाह होता है।02. चन्द्र और शुक्र में जो बली हो उसकी महादशा या अन्तर्दशा काल में बली ग्रह से त्रिकोण में गुरु आने पर विवाह होता है ।03. यदि सप्तेश शुक्र के साथ बैठा हो तो सप्तमेश की दशा व अन्तर्दशा में विवाह होता है। इसी प्रकार द्वितीयेश जिस राशि में बैठा हो उस राशि के स्वामी की दशा अन्तदर्शा में अथवा नवमेश दशमेश की दशादि में अथवा सप्तमस्थ ग्रह के दशादि अथवा सप्तमेश के साथ जो ग्रह बैठा हो उसकी दशा अन्तर्दशा में विवाह होता है ।04. जब लग्नेश गोचर में ससमस्थ राशि में अथवा सप्तमेश व शुक्र लग्नेश की राशि या नवमांश में आनेपर अथवा सप्तमस्थ ग्रह की दशादि में अथवा सप्तम को देखने से ग्रह की दशा अन्तर्दशा में विवाह होता है।05. शुक्र चन्द्रमा और लग्न से सप्तमाधि पति की दशादि में विवाह होता है। 06. विवाह कारक ग्रह शुभ ग्रह शुभ राशिगत से दशा व अन्तर्दशा में आदि में यदि वह ग्रह शुभ तो हो किन्तु पापराशि में स्थित हो, दशादि के मध्यम में यदि वह ग्रह पापी हो और पापग्रह की राशि में होतो दशादि के अन्तिम समय में विवाह काल समझना चाहिये।07. यदि लग्नेश व सप्तमेश समीपवर्ती हों तो विवाह कम अवस्था में, यदि दूरी अधिक हो तो विलम्ब से विवाह होता है।08. 1,2,7 वे भाव में शुभग्रह स्थित हो या शुभग्रह की दृष्टि हो तो कम अवस्था में विवाह योग बन जाता है।09. सप्तमेश बलवान् होकर केन्द्रस्थ हो या त्रिकोण में हो तो बाल्य काल में विवाह होता है ।10. 1,2,7 वे भाव शुक्र के पापयुत द्रष्ट होने से विवाह विलम्ब से होता है। के11. शुक्र से सप्तमेश की दिशा में अथवा सप्तमस्थ ग्रह की दिशा में अथवा सप्तम कोदेखने वाली की दिशा में विवाह होता है। शीघ्र वैधव्य योगद्वितीय भाव और द्वितीयेश, बुध तथा गुरु पर मंश, के, श. का प्रभाव होने पर शीघ्र ही वैधव्य योग प्राप्त हो जाता है। स्त्री की कुण्डली वृषलग्न की है दूसरे भाव में शुक्र 12 वें में राहु तीसरे में सूर्य 4थे में बुध, गुरु, षष्ठ में केतु मंगल, सप्तम में चन्द्र और नवम में शनि स्थित है। यहाँ द्वितीय भावेश बुध और सप्तम भाव के कारक गुरु पर राहु की पंचम दृष्टि पड़ रही है तथा द्वितीय भाव पर केतु की नवम दृष्टि पड़ रही है अत- द्वितीय भाव तथा भावेश बुध एवं सप्तम का कारक गुरु तीनों पर पापदृष्टि होने से वैधव्य योग बन रहा है, किन्तु शीघ्र वैधव्य योग को बुध प्रदर्शित कर रहा है। क्योंकि बुध की कुमार अवस्था होती है तो जो जीवन के बाल्यकाल में ही प्रभावित होता है। अतः विवाह के अतिशीघ्र वैधव्य की प्राप्ति करवाता है सुन्दर पति, पत्नि प्राप्ति योगयदि सप्तम भाव में समराशि हो तथा सप्तमेश और शुक्र भी समराशि में होने पर और अष्टम अष्टमेश शनि की दृष्टि में नहीं होने पर सुन्दर स्त्री की प्राप्ति होती है स्त्री की कुण्डली में सप्तम भाव और भावेश पुरुष राशि में होकर गुरु आदि शुभ पुरुष राशि ग्रह से दृष्ट होने पर सुन्दर पति की प्राप्ति होती है। पति त्याग योगसप्तम भाव और भावेश एवं स्त्री भाव कारक ग्रह पर जब सूर्य मंगल राहु क्षीणचन्द्र, इन पापी ग्रहों की युति दृष्टि हो या ये पापीग्रह जिन राशियों में स्थित हों उनके स्वामियों की दृष्टि युति हो, तो पुरुष का उसकी स्त्री से वियोग होता है।बाल वनिता महिला आश्रमकन्या लग्न की कुण्डली में, सूर्य, बुध, गुरु, शुक्र पंचम में, शनि की राशि में है। चन्द्र चतुर्थ भाव में, राहु षष्ठ में, शनि नवम में, मंगल दशम में तथा केतु व्यय में है। यहाँ सप्तमेश शुक्र सप्तम का कारक गुरु सूर्य, जो पृथकता जनक है उसके साथ स्थित है। व्ययेश सूर्य शत्रु क्षेत्र जो भी पृथकता जनक है पंचम भाव पापाक्रान्त राहु और क्षीण चन्द्र से है तथा दशमस्थ मंगल पापग्रह से पंचम भाव दृष्ट है।

वर कन्या चयन शुभ-अशुभ योग के  By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 01. वर के सप्तमेश की राशि में कन्या की राशि हो तो शुभफल प्रद । - 02. कन्या की राशि वर के सप्तमेश का उच्च स्थान हो । 03. वर के सप्तमेश के नीच राशि में कन्या की राशि हो । 04. वर का शुक्र जिस राशि में हो। वही राशि कन्या की हो । 05. वर का लग्नेश जिस राशि में हो वही राशि कन्या की हो । 06. वर की जन्म राशि से सप्तम स्थान में जो राशि पड़े वही राशि कन्या की हो । 07. इन योगों में दाम्पत्य जीवन सुखमय व्यतीत होता है। सप्तमेश 6, 8, 12 भाव में हो और शुभ ग्रह से दृष्टि नहीं हो। सप्तमेश नीच का हो। सप्तमेश अस्तंगत हो इन 3 योगों में स्त्री सुख में बाधा होती है । ०८. यदि सप्तमेश द्वादश भाव में हो और लग्नेश व जन्म राशीश सप्तम भाव में हो तब या तो अविवाहित जीवन बने अथवा दाम्पत्य जीवन दुखमय हो । 09. चन्द्र और शुक्र पर शनि मंगल की दृष्टि भी विवाह सम्बन्ध में बाधक होती है । 10. 1,7,12 भाव में पाप ग्रह हो चन्द्रमा 5वें निर्वली हो तो अविवाहित जीवन । 11. श+चं सप्तम में होने से स्त्री बन्ध्या होती है। 12. बु+शु सप्तम में स्त्री सुख में बाधा । 13. श...

जन्मकुंडली के बारह भाव मानव जीवन के विभिन्न अवयवों को दर्शाते हैं। किसी भाव के फल का विचार करते समय सर्वप्रथम उस भाव और भावेश के बल का आकलन किया जाता है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबजिस भाव में उसके स्वामी या शुभ ग्रह की स्थिति हो, या उनकी दृष्टि पड़ती हो, तब वह भाव बलवान होकर शुभ फलदायक होता है। इसके विपरीत स्थिति में वह भाव निर्बल होकर शुभ फल नहीं देता है। जब भाव का स्वामी स्रवोच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित होकर शुभ भावाधिपतियों से संबंध बनाता है तब वह बलवान होता है और अपने स्वामित्व भाव का उत्तम फल देता है। भावेश का बली होना भाव की शुभता बढ़ाता है। भाव व भावेश के साथ ही उस भाव के 'नित्य कारक' ग्रह का भी आंकलन आवश्यक होता है। 'भाव कारक', 'वस्तु कारक', 'योग कारक' व 'जैमिनी कारक' सर्वथा भिन्न हैं। महर्षि पाराशर ने प्रत्येक भाव का एक 'नित्य कारक' निर्धारित किया था - सूर्यो गुरुः कुजः सोमो गुरुभौमः सितः शनिः। गुरुंचन्द्रसुतो जीवो मन्द´च भावकारकाः।। परंतु कालांतर में रचित ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित 'नित्य भावकारक' इस प्रकार हैं- प्रथम भाव -सूर्य, द्वितीय भाव-बृहस्पति, तृतीय भाव-मंगल, चतुर्थ भाव - चंद्र व बुध, पंचम भाव -बृहस्पति, षष्ठ भाव -शनि व मंगल, सप्तम भाव - शुक्र, अष्टम भाव - शनि, नवम भाव - सूर्य व बृहस्पति, दशम भाव - सूर्य, बुध, बृहस्पति व शनि, एकादश भाव - बृहस्पति, द्वादश भाव - शनि। फलदीपिका ग्रंथ (15, 25) के अनुसार- तस्मिन भावे कारके भावनाथे वीर्योपेते तस्य भावस्य सौरव्यम्। अर्थात्, "जब भाव, भावेश और कारक तीनों बलवान हों तब उस भाव का अच्छा फल व्यक्ति को प्राप्त होता है।" 'भाव प्रकाश' ग्रंथ के अनुसार- भवन्ति भावभावेशकारका बलसंयुताः। तदा पूर्ण फलं द्वाभ्याम एकेनाल्प फलं वदेत्।। अर्थात् " यदि भाव, भाव का स्वामी तथा भाव का कारक तीनों बलवान हों तब उस भाव का पूर्ण फल कहना चाहिए, और यदि तीन में से दो बलवान हों तो आधा फल कहना चाहिए, तथा केवल एक ही बलवान होने पर बहुत थोड़ा फल होता है। 'जातक पारिजात' ग्रंथ (अ. 2-51) ने प्रचलित भाव कारकों का विवरण देने के बाद अगले श्लोक (अ. 2-52) में कहा है कि यदि शुक्र, बुध और बृहस्पति लग्न से क्रमशः सप्तम, चतुर्थ और पंचम भाव में हानिप्रद होते हैं तथा शनि अष्टम भाव में शुभ फल करता है। ज्ञातव्य है कि उपरोक्त ग्रह इन भावों के कारक माने गये हैं। परंतु 'भावार्थ रत्नाकर' ग्रंथ के रचयिता श्री रामानुजाचार्य ने निम्न श्लोक में सभी कारक ग्रहों को संबंधित भाव में हानिकारक बताया है- सर्वेषु भाव स्थानेषु तत्त्द भावादिकारकः। विद्यते तस्यभावस्य फलमस्वंल्पमुदीरितय्।। अर्थात्, "सभी कारक ग्रह अपने संबंधित भाव में स्थित होने पर उस भाव के फल को बहुत कम करते हैं।" उपरोक्त श्लोक कालांतर में "कारको भाव नाशाय" नामक लोकोक्ति के रूप में प्रचलित हो गया। इसी आधार पर बृहस्पति का पंचम भाव में होना पुत्र अभाव का सूचक, शुक्र की सप्तम भाव में स्थिति वैवाहिक सुख का अभाव सूचक, तथा छोटे भाई के कारक मंगल ग्रह का तृतीय भाव में सिथति छोटे भाई के अभाव का सूचक कहा जाता है। अपवाह स्वरूप केवल शनि ग्रह का अष्टम (आयु) में होना दीर्घायु देता है। 'कारको भाव नाशाय' के पीछे जो हेतु है उस पर विचार करने से ज्ञात होता है कि जब किसी भाव का कारक उसी भाव में स्थित होता है तब साझे विषय के दो द्योतक (भाव व कारक) इकट्ठे होंगे और उन पर किसी पापी ग्रह का प्रभाव होने पर उनके साझे तथ्य की हानि होगी। वहीं शनि ग्रह की अष्टम आयु) भाव में स्थिति अपनी धीमी चाल से आयु को बढ़ायेगा। अनुभव में भी आता है कि जब भाव में उसका कारक शत्रु राशि में या अशुभ प्रभावी होने पर ही उस भाव के फल में कमी आती है। परंतु जब कोई ग्रह उस भाव में स्थित हो जिसका वह कारक है और वह स्वराशि अथवा मित्र राशि में स्थित हो वा शुभ दृष्ट हो तब अवश्य ही भाव फल की वृद्धि होती है। जैसे तृतीय भाव में मंगल यदि स्वराशि या मित्र राशि में हो और शुभ दृष्ट हो तो जातक का भाई अवश्य होता है। इसी प्रकार चतुर्थ भाव में चंद्रमा शुभ राशि में शुभ दृष्ट होने पर माता दीर्घजीवी होती है तथा सप्तम भाव में शुभ राशि स्थित व दृष्ट शुक्र वैवाहिक सुख देता है।बाल वनिता महिला आश्रम

जन्मकुंडली के बारह भाव मानव जीवन के विभिन्न अवयवों को दर्शाते हैं। किसी भाव के फल का विचार करते समय सर्वप्रथम उस भाव और भावेश के बल का आकलन किया जाता है।  By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब जिस भाव में उसके स्वामी या शुभ ग्रह की स्थिति हो, या उनकी दृष्टि पड़ती हो, तब वह भाव बलवान होकर शुभ फलदायक होता है। इसके विपरीत स्थिति में वह भाव निर्बल होकर शुभ फल नहीं देता है। जब भाव का स्वामी स्रवोच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित होकर शुभ भावाधिपतियों से संबंध बनाता है तब वह बलवान होता है और अपने स्वामित्व भाव का उत्तम फल देता है। भावेश का बली होना भाव की शुभता बढ़ाता है। भाव व भावेश के साथ ही उस भाव के 'नित्य कारक' ग्रह का भी आंकलन आवश्यक होता है। 'भाव कारक', 'वस्तु कारक', 'योग कारक' व 'जैमिनी कारक' सर्वथा भिन्न हैं। महर्षि पाराशर ने प्रत्येक भाव का एक 'नित्य कारक' निर्धारित किया था - सूर्यो गुरुः कुजः सोमो गुरुभौमः सितः शनिः। गुरुंचन्द्रसुतो जीवो मन्द´च भावकारकाः।। परंतु कालांतर में रचित ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित 'नित्य भावकारक' इस प्रकार हैं...

कुंडली द्वारा फलित कथन करते समय कुछ सामान्य नियमों की जानकारी होना भी आवश्यक है। उन्हीं के आधार पर ग्रहों के बलाबल का निर्णय लेकर सटीक कथन (फलादेश) किया जा सकता है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब- जो ग्रह शत्रु क्षेत्री, पापी अथवा अस्त हो, वे अशुभ फल प्रदान करते हैं। यदि पापी ग्रह स्वराशि के हों, उच्च हों या योगकारक ग्रह से संबंध करते हों, तो अशुभ नहीं होते।- जो भाव न तो किसी ग्रह द्वारा देखा जा रहा हो, न ही उसमें कोई ग्रह बैठा हो तो उस भाव का फल मध्यम मिलता है।- शुभ भावों के स्वामी ग्रह यदि मित्र क्षेत्री स्वग्रही, मूल त्रिकोणी या उच्च के हों तो भावों की वृद्धि करते हैं ।- जो भाव अपने स्वामी से युक्त अथवा दृष्ट होता है, उसकी वृद्धि होती है।- जो भाव किसी पापी ग्रह से युक्त या दृष्ट हो (6, 8, 12 को छोड़) उसकी हानि होती है।- कोई ग्रह कुंडली में उच्च का हो, मगर नवांश में नीच या पापी हो, तो वह लग्नेश होने पर भी शुभ फल नहीं देता ।- केंद्र व त्रिकोण के स्वामी शुभ होते हैं। इनका परस्परसंबंध योगकारक होता है। इनके संपर्क में आया अन्य ग्रह भी शुभफल प्रदान करता है।- यदि भावेश लग्न से केंद्र, त्रिकोण या लाभ में हो तो शुभ होता है।- यदि दुष्ट स्थान (6, 8, 12) का अधिपति ग्रह दूसरे दुष्ट स्थान में हो, तो शुभ फल देता है । कुंडली द्वारा फलित कथन करते समय कुछ सामान्य नियमों की जानकारी होना भी आवश्यक है। उन्हीं के आधार पर ग्रहों के बलाबल का निर्णय लेकर सटीक कथन (फलादेश) किया जा सकता है। 👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻👉🏻किस व्यक्ति का भाग्योदय कब, कहाँ और कैसे होगा यह कोई नहीं जानता। एक मामूली व्यक्ति भी निम्न स्थान से उठकर उच्च स्थान पर पहुंच जाता है। इन का कारण उसके मजबूत ग्रह है। कभी-कभी किसी को थोड़े समय के लिए लाभ एवं प्रगति होती है। कुछ लम्बे समय तक सुख भोगते हैं। इसे हम विवेचन द्वारा समझ सकते हैं।जातक की कुंडली में उसके जन्म लग्न तथा चन्द्र लग्न में एक या दो ग्रह अवश्य कारक होता है। कारक का अर्थ केवल शुभ ग्रह ही नहीं, बल्कि क्रूर ग्रह भी हो सकते हैं। जैसे कर्क लग्न में मंगल एवं बृषभ लग्न में शनि जैसे ग्रहों को भी हम कारक कह सकते हैं, क्योंकि यह जहाँ भी बैठेगे वहीं शुभ फल प्रदान करेंगे। इसकी दशा भी अच्छी जाती है। अतः कुंडली में कारक ग्रह की शुभ स्थिति जातक को अपनी दश में अक्सर उपर उठा देती है। चाहें वह ग्रह नीचे के ही क्यों न हो। हाँ, अपवाद में ऐसे वक्री ग्रह कभी-कभी प्रगति में व्यवधान देते हैं।यदि कुंडली में किसी कारक ग्रहों की स्थिति शुभ हो तो गोचर वश अपने भ्रमण के दौरान यह ग्रह जिन-जिन राशियों से गुजरेगा, वहाँ-वहाँ शुभ फल प्रदान करेगा। जैसे कर्क लग्न में मंगल और कुंभ लग्न में शुक्र ग्रह कारक है। यह ग्रह गोचर में भ्रमण के दौरान कुंडली में जिन-जिन राशियों से गुजरेगा, वहीं लाभ एवं प्रगति देता जायेगा। यदि यह ग्रह स्वग्रही या उच्च के या किसी शुभ स्थान में बैठे हो तो अवश्य गोचर भ्रमण के दौरान उस भाव संबंधी फल में लाभ देता रहेगा। चन्द्र, बुध, शुक्र, सूर्य, मंगल जैसे ग्रह अधिक समय तक किसी राशि में नहीं बैठते, अतः वह भाव संबंधी विशेष फल कुछ समय के लिए ही प्राप्त होता है।यहाँ एक बात बहुत महत्वपूर्ण है। कुंडली के कारक ग्रह गोचर वश जब-जब शुभ भाव से गुजरेगे तो शुभ फल प्रदान करते हैं। इसी प्रकार अशुभ भाव (3.6.8.12) से जब भी भ्रमण के दौरान पारित होगे तो उस भाव संबंधी फल में असर करेगे। यदि कारक की स्थिति शुभ न हो, वक्री हों या अकारक दशा चल रही हो तो तृतिये में परेशानी, षष्ठ भाव में शत्रु तथा रोग भय, द्वादश में खर्च एं झंझट होती है। कई बार कुंडली का कारक ग्रह बहुत अधिक या कम अंश का हो तो भी कई बार निष्फल हो जाता है।कुंडली में अकारक ग्रह की दशा अच्छी नहीं जाती। गोचर भ्रमण के दौरान यह शुभ भावों से गुजरते वख्त अशुभ तथा परेशानी वाला फल देता है। परन्तु यही ग्रह गोचर भ्रमण में यदि त्रिक स्थानों (3,6, 8, 12) से गुजरे तो बूरा फल नहीं मिलता इस विषय में अनुसंधान एवं अनुभव की आवश्यकता है।अब भाग्योदय का एक और पहलू को देखे दशम भी कर्म भाव है। इस भाव में यदि कोई ग्रह उच्च का स्वग्रही या शुभ अवस्था में कोई ग्रह बैठा हो तो उसकी दशा अच्छी जाती है। दशमेश यदि उच्च का होकर एकादश लग्न या द्वितीय भाव में बैठे तो भी दशा अच्छी जाती है। दशम भाव चूंकि कर्म संबंधी भाव है। अतः इसकी दशा में व्यक्ति कार्य करके प्रगति करता है। परन्तु इसके लिए दशम या दशमेश पाप प्रभाव में न हो, यह देखना चाहिए ।सप्तम स्थान पत्नी भवन है। इसके साथ-साथ यह एक गुप्त स्थान भी है। एक अदृष्य और रहस्यमय शक्ति को अन्दर में छुपाया हुआ स्थान है। सप्तम भाव का संबंध जब दशम भाव से किसी भी प्रकार से हो तो राजयोग प्रदान करता है। यह संबंध युति प्रतियुति या दृष्टि संबंधी कहं भी किसी भी भाव में हो सकता है। ठीक इसी तरह सप्तम भाव का संबंध यदि लग्न से किसी भी प्रकार से हो तो भी उसकी दशा अन्तर्दशा में राजयोग प्राप्त होता है।उदाहरण स्वरूप हम इंन्दिरा गांधी की कुंडली की कुंडली को ले सकते हैं। इनका कर्क लग्न है। लग्नेश चन्द्रमा सप्तम भाव में बैठा है और सप्तम भाव का स्वामी शनि लग्न में बैठा है। इस तरह दोनों ग्रह (चन्द्र और शनि) एक दूसरे के घर में बैठ कर एक दूसरे को देख भी रहे है। शनि की महादशा भी इनकी कुछ वर्षों से चल रही है। अतः यह राजयोग प्रदान करती है। ऐसे अनेको उदाहरण सप्तम और लग्न से सम्बन्धित मिल सकते है। सप्तम तथा दशम का सम्बंध भी राजयोग वाली कुण्डलियों में मिलेगें ।परन्तु सप्तम स्थान का सम्बन्ध यदि चतुर्थ से हो। यह सम्बन्ध युति प्रति युति या दृष्टि सम्बन्ध भी हो सकता है। तब वह अच्छा नहीं। बूरा फल प्राप्त होता है। विशेष कर उसकी दशा में व्यक्ति को बदनामी तथा अपयश मिलता है। बदनामी का कारण कोई भी स्त्री पक्ष हो सकता है। इसी प्रकार सप्तम का सम्बन्ध द्वादश भाव के साथ भी ठीक नहीं।अब हम ग्रहों से सम्बन्धित भाग्योदय वर्ष पर ध्यान दे। हर ग्रह की अपनी विशेषता होती है। प्रत्येक कुण्डली में कोई एक यह आवश्य कारक या आलकारक होता है। उसी प्रकार कोई एक ग्रह आलकारक हो, भाग्येश हो, लग्नेश हो या कर्मेश हो उसी ग्रह के अनुरूप वह कार्य करता है। जैसे सूर्य ग्रह 22 वर्ष की उम्र में भाग्योदय देता है। उसी प्रकार अन्य ग्रहों में चन्द्रमा 24 वर्ष की उम्र में शुक्र 25 वर्ष, शुरू 18 वर्ष, बुध 32, मंगल 28, शनि 36 वर्ष, राहु 42 वर्ष तथा केतु 48 वर्ष में भाग्योदय देता है। भाग्योदय वर्ष से सम्बंधित ग्रह की यदि दशा भी चल रही हो तो शुभ फल प्राप्त होता है। परन्तु इसके लिए यह आवश्यक है कि सम्बंधित ग्रह किसी पाप ग्रह से पीड़ित न हो तथा शुभ स्थान में बैठा हो ।जैसे चन्द्रमा किसी शुभ कारक या उच्च ग्रह के साथ या अकेले ही दशम भाव में बैठा हो तो उस व्यक्ति को 24 वर्ष की उम्र में कोई कर्म (चन्द्रमा से सम्बंधित) लाभ होता है। ऐसे में यदि चन्द्रमा की महादशा भी चल रही हो तो बहुत शुभ फल मिलता है परन्तु यहाँ दो शर्त भी है। प्रथम तो चन्द्रमा किसी पाप ग्रह से पीड़ित न हो। दूसरा चन्द्रमा उस लग्न कुंडली में अकारक ग्रह न हो। इसकी दशम भाव में स्थिति भी अपने घर से तृतिये, षष्ठ, अष्ठम तथा द्वादश की न हो। तब ही यह शुभ फल देगा।इसी प्रकार यदि नवम भाव में राहु हो तो 42 वर्ष की उम्र में भाग्योदय होगा अर्थात उस समय कुछ विशेष आर्थिक लाभ होता है। एक कुंडली (बृश्चिक लग्न) में नवम स्थान में शुरू उच्च का होकर बैठा है। नवम भाव का स्वामी मंगल लग्न में बैठा है। इस जातक को 19 वर्ष की उम्र से शुरू की महादशा शुरू हुई। गुरू वक्री है। गुरु 18 वर्ष में भाग्योदय देता है। अतः वह व्यक्ति अधिक पढ़ा लिखा न होते हुए भी 18 वर्ष की उम्र से कमाने लगा। इसका शुरू चूंकि वक्री है अतः 19 वर्ष में जब शुरू की दशा शुरू हुई तो उस धंधे में भी इसने बहुत रूपये कमाये। उस समय गोचर में शुरू की स्थिति भी शुभ थी। यदि इस जातक का शुरू वक्री न होता तो यह गलत ढंग से आर्थिक प्रगति न करता बल्कि अच्छे ढंग आगे बढ़ते ।बाल वनिता महिला आश्रम -----*****----

कुंडली द्वारा फलित कथन करते समय कुछ सामान्य नियमों की जानकारी होना भी आवश्यक है। उन्हीं के आधार पर ग्रहों के बलाबल का निर्णय लेकर सटीक कथन (फलादेश) किया जा सकता है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब - जो ग्रह शत्रु क्षेत्री, पापी अथवा अस्त हो, वे अशुभ फल प्रदान करते हैं। यदि पापी ग्रह स्वराशि के हों, उच्च हों या योगकारक ग्रह से संबंध करते हों, तो अशुभ नहीं होते। - जो भाव न तो किसी ग्रह द्वारा देखा जा रहा हो, न ही उसमें कोई ग्रह बैठा हो तो उस भाव का फल मध्यम मिलता है। - शुभ भावों के स्वामी ग्रह यदि मित्र क्षेत्री स्वग्रही, मूल त्रिकोणी या उच्च के हों तो भावों की वृद्धि करते हैं । - जो भाव अपने स्वामी से युक्त अथवा दृष्ट होता है, उसकी वृद्धि होती है। - जो भाव किसी पापी ग्रह से युक्त या दृष्ट हो (6, 8, 12 को छोड़) उसकी हानि होती है। - कोई ग्रह कुंडली में उच्च का हो, मगर नवांश में नीच या पापी हो, तो वह लग्नेश होने पर भी शुभ फल नहीं देता । - केंद्र व त्रिकोण के स्वामी शुभ होते हैं। इनका परस्परसंबंध योगकारक होता है। इनके संपर्क में आया अन्य ग्रह भी शुभफल प्रदान करता है। - यदि भावेश लग्न से कें...

Be afraid of deeds, not from God, these things have been told in this post, if you like the post, then say Jai Shri RamBy philanthropist Vanitha Kasniya Punjab*li.duniya.chale.na.shriram.k.bina.li**li.ramji.chale.na.hanuman.kb

कर्मो से डरो ईश्वर से नही यह बातें इस पोस्ट में बताई गई है पोस्ट अच्छी लगे तो जय श्री राम बोलो By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब *li.दुनियाँ.चले.ना.श्रीराम.के.बिना.li* *li.रामजी.चले.ना.हनुमान.के.बिना.li* जब से रामायण पढ ली है इक बात मैने समझ ली है ! रावण मरे ना *श्रीराम* के बिना लंका जले ना *हनुमान* के बिना !! *li.दुनियाँ.चले.ना.श्रीराम.के.बिना.li* *li.रामजी.चले.ना.हनुमान.के.बिना.li* *लक्ष्मण* का बचना मुश्किल था कोन बुटी लाने के काबिल था ! *लक्ष्मण* बचे ना *श्रीराम* के बिना बुटी मिले ना *हनुमान* के बिना !! *li.दुनियाँ.चले.ना.श्रीराम.के.बिना.li* *li.रामजी.चले.ना.हनुमान.के.बिना.li* *सीता* हरण की कहानी सुनो बनवारी मेरी जुबानी सुनो ! वापस मिले ना *श्रीराम* के बिना पता चले ना *हनुमान* के बिना !! *li.दुनियाँ.चले.ना.श्रीराम.के.बिना.li* *li.रामजी.चले.ना.हनुमान.के.बिना.li* सिहांसन पे बैठे हैं *श्रीराम* जी , चरणों में बैठे है *हनुमान* जी ! मुक्ती मिले ना *श्रीराम* के बिना, भक्ति मिले ना *हनुमान* के बिना !! *li.दुनियाँ.चले.ना.श्रीराम.के.बिना.li* *li.रामजी.चले.ना.हनुमान.के.बिना.li* दुनि...

In which house of the horoscope Saturn gives inauspicious effects? By philanthropist Vnita Kasnia PunjabSaturn is such a planet towards which everyone's fear always remains. In which house Saturn is in the horoscope of any person,

शनि कुंडली के किस भाव में अशुभ प्रभाव प्रदान करता है? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब शनि ऐसा ग्रह है जिसके प्रति सभी का डर सदैव बना रहता है. किसी भी मनुष्‍य की कुंडली में शनि किस भाव में है, इससे मनुष्‍य के जीवन की दिशा, सुख, दुख आदि सभी बात निर्धारित हो जाती है. शनि को कष्टप्रदाता के रूप में अधिक जाना जाता है. शनि कुंडली के त्रिक (6, 8, 12) भावों का कारक है. शनि को सूर्य पुत्र माना जाता है. लेकिन इसे पिता का शत्रु भी कहा जाता है. पहला घर सूर्य और मंगल ग्रह से प्रभावित होता है। पहले घर में शनि तभी अच्छे परिणाम देगा जब तीसरे, सातवें या दसवें घर में शनि के शत्रु ग्रह न हों. यदि, बुध या शुक्र, राहू या केतू, सातवें भाव में हों तो शनि हमेशा अच्छे परिणाम देगा. शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है. लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है. इसलिये वह शत्रु नही मित्र है. मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है. सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ न्याय करता है. जो लोग अनुचित विष...